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This Article is From Mar 02, 2023

क्‍या त्रिपुरा में 'किंगमेकर' की भूमिका निभाएगी 'टिपरा मोथा', भाजपा इस मांग के अलावा हर शर्त के लिए राजी

त्रिपुरा में 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित दस सीटें जीती थीं, जबकि उसकी सहयोगी आईपीएफटी ने आठ सीटें हासिल की थीं.

टिपरा मोथा राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा के वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाने में सफल रहा(प्रतीकात्‍मक फोटो)

नई दिल्‍ली:

त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव के लिए मतगणना जारी है. इस बीच पल-पल स्थिति बदलती नजर आ रही है. हालांकि, भाजपा गठबंधन रुझानों में बहुमत का आंकड़ा पार करता हुआ नजर आ रहा है. ऐसे में त्रिपुरा में शाही वंशज प्रद्योत माणिक्य देबबर्मा द्वारा बनाई गई नयी पार्टी ‘टिपरा मोथा' राज्य में अगली सरकार के गठन में अहम भूमिका निभा सकती है. त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव के लिए जारी मतगणना के बीच टिपरा मोथा अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 20 में से 11 सीटों पर आगे है, जिससे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)-इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) गठबंधन और विपक्षी कांग्रेस-वाम गठबंधन की जीत की संभावनाओं पर पानी फिरता नजर आ रहा है.

ताजा रुझानों के मुताबिक, भाजपा-आईपीएफटी गठबंधन 34 सीटों पर आगे है. इस तरह, वह बहुमत के जादुई आंकड़े को पार कर चुकी है. रुझानों के अनुसार, विपक्षी कांग्रेस-वाम गठबंधन को 15 सीटों पर बढ़त हासिल है. रुझान संकेत देते हैं कि टिपरा मोथा राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा के वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाने में सफल रहा है.

त्रिपुरा में 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित दस सीटें जीती थीं, जबकि उसकी सहयोगी आईपीएफटी ने आठ सीटें हासिल की थीं. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित दो सीटें जीती थीं. इस बार, टिपरा मोथा प्रमुख आदिवासी पार्टी के रूप में आईपीएफटी की जगह लेने में सफल रही है, क्योंकि देबबर्मा के ‘ग्रेटर टिपरालैंड' की स्थापना के वादे के बलबूते उसे आदिवासी मतदाताओं के एक बड़े वर्ग के बीच व्यापक समर्थन हासिल हुआ है.

आईपीएफटी के साथ भाजपा के गठबंधन को 2018 के चुनाव में वाम मोर्चा सरकार को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाने वाले प्रमुख कारकों में शुमार किया गया था. आईपीएफटी के 2018 के चुनावों से पहले किए गए ‘टिपरालैंड' की स्थापना के वादे को पूरा करने में नाकाम रहने के बाद देबबर्मा ने अपनी शाही विरासत को भुनाते हुए व्यवस्थित रूप से आदिवासी क्षेत्रों में पैठ बनानी शुरू कर दी.

धीरे-धीरे वह खुद को आदिवासियों के संरक्षक के रूप में चित्रित करने में कामयाब रहे, जिन्होंने उन्हें ‘बुबगरा' (राजा) कहना शुरू कर दिया. इससे आदिवासी बहुल क्षेत्रों में आईपीएफटी की लोकप्रियता में भारी गिरावट आने लगी. देबबर्मा की टिपरा मोथा अप्रैल 2022 में अपने गठन के महज तीन महीने बाद त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) के लिए हुए चुनावों में आईपीएफटी को शून्य पर समेटने में सफल रही.

कभी पहाड़ों में दबदबा रखने वाली माकपा का जनाधार भी टिपरा मोथा के कारण कमजोर पड़ा है. टीटीएएडीसी चुनाव में टिपरा मोथा ने 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि भाजपा को दस सीटों से संतोष करना पड़ा था. दोस्ती की कई कोशिशों के बावजूद न तो सत्तारूढ़ भाजपा और न ही विपक्षी दल माकपा विधानसभा चुनावों के लिए टिपरा मोथा के साथ गठबंधन करने में कामयाब हो पाई.

इस बीच त्रिपुरा में सरकार गठन को लेकर रणनीति बनाने पर भी पार्टियों ने काम शुरू कर दिया है. त्रिपुरा भाजपा के मुख्य प्रवक्ता सुब्रत चक्रवर्ती ने कहा कि ग्रेटर तिपरा लैंड को छोड़कर टिपरा मोथा की सभी मांगों को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं. 

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