मानव कवच का प्रयोग करने वाले भारतीय सेना के अधिकारी मेजर गोगोई.
नई दिल्ली:
भारतीय सेना के एक अधिकारी द्वारा जम्मू कश्मीर में एक पत्थरबाज को सेना की जीप के आगे बांधने के मुद्दे पर सेना पहले ही अपना जवाब दे चुकी है. सेना ने मौके की नजाकत को भांपते हुए इस कदम को साहसिक और सूझबूझ वाला बताया और अपने इस अधिकारी को पुरस्कृत भी किया.
अब इस विवाद में घिरे भारतीय थलसेना के मेजर लीतुल गोगोई अब मीडिया के सामने आए हैं. उन्होंने उस दिन की घटना का ब्यौरा सभी के सामने रखा. उन्होंने बताया कि कैसे हालात थे और क्यों यह कदम उठाया गया. उन्होंने कहा कि पिछले महीने पत्थरबाजी से बचने के लिए एक शख्स को जीप में बांधकर मानव कवच के तौर पर इस्तेमाल करने के उनके कदम से कई लोगों की जान बच पाई.
मेजर गोगोई ने अपने कदम का बचाव किया. भारतीय सेना में किसी मेजर रैंक के अधिकारी का मीडिया के सामने आकर इस तरह अपना पक्ष रखने का वाकया कभी-कभार ही होता है. शायद ही इससे पहले कोई सेना का मेजर इस प्रकार किसी घटना पर बयान दे रहा हो.
इस पूरे मामले में भारत सरकार ने भी मेजर गोगोई का बचाव किया है और उनका समर्थन भी किया. केंद्रीय मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि उन्होंने ‘‘अपवादजनक परिस्थितियों’’ में कई लोगों की जान बचाई.
अपनी कार्रवाई पर कई लोगों के उठते सवालों का जवाब देने के लिए मेजर गोगोई को सेना ने इस बात की इजाजत की वह सभी को जवाब दें. मीडिया के सामने आकर गोगोई ने कहा कि 9 अप्रैल को बडगाम जिले के उटलीगाम में एक मतदान केंद्र में सुरक्षाकर्मियों के एक छोटे से समूह को करीब 1200 पत्थरबाजों ने घेर लिया था और यदि उन्होंने फायरिंग का आदेश दिया होता तो कम से कम 12 जानें जातीं.
सोमवारको थलसेना अध्यक्ष की ओर से सम्मानित किए गए गोगोई ने कहा कि भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के कुछ जवानों और कुछ मतदान कर्मियों को जब करीब 1200 पत्थरबाजों ने घेर लिया और ‘संकट में होने की सूचना’ दी तो वह और 5 अन्य थलसैनिक उस मतदान केंद्र पर गए थे.
उन्होंने कहा कि भीड़ में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे और वे मतदान केंद्र को आग के हवाले करने की धमकी दे रहे थे. गोगोई ने कहा कि भीड़ के बीच उन्होंने एक ऐसे शख्स को देखा जो 'अगुवा' जैसा लग रहा था, क्योंकि वह उटलीगाम में पत्थरबाजों को 'उकसा' रहा था.
सैन्य अधिकारी ने कहा कि फारूक अहमद डार नाम के शख्स को जीप के बोनट से बांधने का विचार उनके दिमाग में अचानक कौंधा ताकि मतदान कर्मियों और अर्धसैनिक बल के जवानों को वहां से सुरक्षित बाहर निकाला जा सके और किसी को किसी तरह का नुकसान भी नहीं हो. उन्होंने कहा कि डार को जीप से बांधे जाने के बाद कुछ देर के लिए पत्थरबाजी थम गई और इससे मतदान कर्मियों और अर्धसैनिक बल के जवानों को सुरक्षित निकलने का मौका मिल गया.
बडगाम जिले में अपने बीरवाह कैंप में पत्रकारों से बातचीत में घटना की विस्तार से जानकारी देते हुए गोगोई ने बताया, ‘‘मैंने सिर्फ स्थानीय लोगों को बचाने की खातिर ऐसा किया. यदि मैंने गोली चलाई होती तो 12 से ज्यादा जानें जाती. इस विचार के साथ मैंने कई लोगों की जिंदगी बचाई.’’
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा कि मामले की जांच जारी है, क्योंकि प्राथमिकी निरस्त नहीं की गई है. थलसेना की कोर्ट ऑफ एन्क्वायरी भी चल रही है.
पुलिस महानिरीक्षक (कश्मीर) मुनीर खान ने कहा, ‘‘जांच की जाएगी और नतीजा साझा किया जाएगा.’’ बहरहाल, डार इससे खुश नहीं हैं. जांच के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘यह पूरी तरह छलावा है.’’ डार ने कहा, ‘‘वे कभी गंभीर नहीं थे. मैं एक छोटा आदमी हूं और कोई मेरा ख्याल क्यों रखेगा?’’ शॉल पर कढ़ाई का काम करने वाले कारीगर फारूक अहमद डार ने कहा कि वह पथराव करने वाला नहीं बल्कि एक ‘छोटा आदमी’ है और वह केवल वोट देने के लिए घर से बाहर गया था. सेना ने पिछले महीने डार को जीप के बोनट से बांधकर शहर भर में घुमाया था.
डार को जीप से बांधने वाले मेजर लीतुल गोगोई ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में उस पर सुरक्षा बलों पर पथराव करने वाले लोगों के समूह में शामिल होने का आरोप लगाया, जिसे उसने खारिज कर दिया.
डार ने कहा, ‘‘अगर ऐसा होता तो वे मुझे पुलिस को सौंप देते.’’ उसने कहा कि संबंधित मेजर को प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किए जाने के बारे में जानकर उसे ताज्जुब हुआ. उसने याद किया कि वह 9 अप्रैल को श्रीनगर लोकसभा उपचुनाव के लिए मतदान करने के बाद अपने एक रिश्तेदार की शोकसभा में हिस्सा लेने जा रहा था और रयार गांव के पास मेजर ने उसे उठा लिया और उसका इस्तेमाल कश्मीर में पथराव करने वालों के खिलाफ ‘मानव कवच’ के रूप में किया.
डार ने बताया, ‘‘रयार में सेना के 13 राष्ट्रीय राइफल के शिविर के सामने छोड़े जाने से पहले मुझे कई गांवों में घुमाया गया था.’’ मेजर ने हालांकि मीडिया के समक्ष दावा किया कि डार को सैनिकों ने पथराव करते समय पकड़ा था. इस बीच, वैश्विक मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने गोगोई को सम्मानित करने के थलसेना के फैसले की आलोचना की.
अब इस विवाद में घिरे भारतीय थलसेना के मेजर लीतुल गोगोई अब मीडिया के सामने आए हैं. उन्होंने उस दिन की घटना का ब्यौरा सभी के सामने रखा. उन्होंने बताया कि कैसे हालात थे और क्यों यह कदम उठाया गया. उन्होंने कहा कि पिछले महीने पत्थरबाजी से बचने के लिए एक शख्स को जीप में बांधकर मानव कवच के तौर पर इस्तेमाल करने के उनके कदम से कई लोगों की जान बच पाई.
मेजर गोगोई ने अपने कदम का बचाव किया. भारतीय सेना में किसी मेजर रैंक के अधिकारी का मीडिया के सामने आकर इस तरह अपना पक्ष रखने का वाकया कभी-कभार ही होता है. शायद ही इससे पहले कोई सेना का मेजर इस प्रकार किसी घटना पर बयान दे रहा हो.
इस पूरे मामले में भारत सरकार ने भी मेजर गोगोई का बचाव किया है और उनका समर्थन भी किया. केंद्रीय मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि उन्होंने ‘‘अपवादजनक परिस्थितियों’’ में कई लोगों की जान बचाई.
अपनी कार्रवाई पर कई लोगों के उठते सवालों का जवाब देने के लिए मेजर गोगोई को सेना ने इस बात की इजाजत की वह सभी को जवाब दें. मीडिया के सामने आकर गोगोई ने कहा कि 9 अप्रैल को बडगाम जिले के उटलीगाम में एक मतदान केंद्र में सुरक्षाकर्मियों के एक छोटे से समूह को करीब 1200 पत्थरबाजों ने घेर लिया था और यदि उन्होंने फायरिंग का आदेश दिया होता तो कम से कम 12 जानें जातीं.
सोमवारको थलसेना अध्यक्ष की ओर से सम्मानित किए गए गोगोई ने कहा कि भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के कुछ जवानों और कुछ मतदान कर्मियों को जब करीब 1200 पत्थरबाजों ने घेर लिया और ‘संकट में होने की सूचना’ दी तो वह और 5 अन्य थलसैनिक उस मतदान केंद्र पर गए थे.
उन्होंने कहा कि भीड़ में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे और वे मतदान केंद्र को आग के हवाले करने की धमकी दे रहे थे. गोगोई ने कहा कि भीड़ के बीच उन्होंने एक ऐसे शख्स को देखा जो 'अगुवा' जैसा लग रहा था, क्योंकि वह उटलीगाम में पत्थरबाजों को 'उकसा' रहा था.
सैन्य अधिकारी ने कहा कि फारूक अहमद डार नाम के शख्स को जीप के बोनट से बांधने का विचार उनके दिमाग में अचानक कौंधा ताकि मतदान कर्मियों और अर्धसैनिक बल के जवानों को वहां से सुरक्षित बाहर निकाला जा सके और किसी को किसी तरह का नुकसान भी नहीं हो. उन्होंने कहा कि डार को जीप से बांधे जाने के बाद कुछ देर के लिए पत्थरबाजी थम गई और इससे मतदान कर्मियों और अर्धसैनिक बल के जवानों को सुरक्षित निकलने का मौका मिल गया.
बडगाम जिले में अपने बीरवाह कैंप में पत्रकारों से बातचीत में घटना की विस्तार से जानकारी देते हुए गोगोई ने बताया, ‘‘मैंने सिर्फ स्थानीय लोगों को बचाने की खातिर ऐसा किया. यदि मैंने गोली चलाई होती तो 12 से ज्यादा जानें जाती. इस विचार के साथ मैंने कई लोगों की जिंदगी बचाई.’’
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने कहा कि मामले की जांच जारी है, क्योंकि प्राथमिकी निरस्त नहीं की गई है. थलसेना की कोर्ट ऑफ एन्क्वायरी भी चल रही है.
पुलिस महानिरीक्षक (कश्मीर) मुनीर खान ने कहा, ‘‘जांच की जाएगी और नतीजा साझा किया जाएगा.’’ बहरहाल, डार इससे खुश नहीं हैं. जांच के बारे में उन्होंने कहा, ‘‘यह पूरी तरह छलावा है.’’ डार ने कहा, ‘‘वे कभी गंभीर नहीं थे. मैं एक छोटा आदमी हूं और कोई मेरा ख्याल क्यों रखेगा?’’ शॉल पर कढ़ाई का काम करने वाले कारीगर फारूक अहमद डार ने कहा कि वह पथराव करने वाला नहीं बल्कि एक ‘छोटा आदमी’ है और वह केवल वोट देने के लिए घर से बाहर गया था. सेना ने पिछले महीने डार को जीप के बोनट से बांधकर शहर भर में घुमाया था.
डार को जीप से बांधने वाले मेजर लीतुल गोगोई ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में उस पर सुरक्षा बलों पर पथराव करने वाले लोगों के समूह में शामिल होने का आरोप लगाया, जिसे उसने खारिज कर दिया.
डार ने कहा, ‘‘अगर ऐसा होता तो वे मुझे पुलिस को सौंप देते.’’ उसने कहा कि संबंधित मेजर को प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किए जाने के बारे में जानकर उसे ताज्जुब हुआ. उसने याद किया कि वह 9 अप्रैल को श्रीनगर लोकसभा उपचुनाव के लिए मतदान करने के बाद अपने एक रिश्तेदार की शोकसभा में हिस्सा लेने जा रहा था और रयार गांव के पास मेजर ने उसे उठा लिया और उसका इस्तेमाल कश्मीर में पथराव करने वालों के खिलाफ ‘मानव कवच’ के रूप में किया.
डार ने बताया, ‘‘रयार में सेना के 13 राष्ट्रीय राइफल के शिविर के सामने छोड़े जाने से पहले मुझे कई गांवों में घुमाया गया था.’’ मेजर ने हालांकि मीडिया के समक्ष दावा किया कि डार को सैनिकों ने पथराव करते समय पकड़ा था. इस बीच, वैश्विक मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने गोगोई को सम्मानित करने के थलसेना के फैसले की आलोचना की.
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