
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के एक सामाजिक कार्यकर्ता को जनहित याचिका के सिद्धांत के दुरुपयोग का दोषी पाते हुए 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है.
- कर्नाटक विधानसभा के विस्तार के विरोध में दाखिल हुई थी जनहित याचिका
- सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता का इस मामले से कुछ भी लेना देना नहीं
- सामाजिक कार्यकर्ता टीजे अब्राहम ने बिना वजह याचिका दाखिल की
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सामाजिक कार्यकर्ता टीजे अब्राहम ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर कर्नाटक सरकार के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें सरकार ने गुलबर्ग जिले में लघु विधानसभा स्थानांतरित करने का प्रस्ताव किया था.
जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर की बेंच ने कहा कि लघु विधानसभा स्थानांतरित करने का मामला प्रशासनिक मामला है इसमें जनहित कहां से आ गया? यह जनहित से जुड़ा मामला ही नहीं है.
याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद ने कोर्ट से गुजारिश की कि 25 लाख रुपये का जुर्माना बहुत ज्यादा है. इस जुर्माने को कम किया जाए. लेकिन कोर्ट ने कहा कि यह 25 लाख रुपये आप रजिस्ट्री में जमा कराएं.
मामले की सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार ने कहा कि याचिकाकर्ता का इस मामले से कुछ भी लेना देना नहीं है. याची ने बिना वजह याचिका दाखिल कर दी है.
दरअसल सरकार ने प्रशासनिक दफ्तरों के लिए सरकार की कृषि विभाग की पांच एकड़ जमीन को चिन्हित किया है. लेकिन याचिकाकर्ता का कहना है कि इससे सीड फार्मिंग को नुकसान पहुंचेगा. इससे पहले हाईकोर्ट ने मामले में दखल देने से इनकार कर दिया था.
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