मुंबई:
इंडोनेशिया में अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन की गिरफ्तारी के बाद वर्ष 2000 का वह वाकया फिर से लोगों के जहन में ताजा हो गया है जब अस्पताल में इलाज करा रहा डॉन एक रात अचानक फरार हो गया, जबकि उसकी सुरक्षा में तैनात थाईलैंड पुलिस को भनक तक नहीं लगी थी ? फिल्मी अंदाज में हुई उस फरारी की कहानी हालांकि कई बार सामने आई है, लेकिन NDTV के हाथ उस अपने तरह के अनोखे ऑपरेशन की जो जानकरी लगी है वह हैरान करने वाली है।
कोई था, जो नहीं चाहता था, छोटा राजन की दाऊद से लड़ाई कमजोर पड़े
उस ऑपरेशन में शामिल रहे एक शख्स के मुताबिक अस्पताल में इलाज के दौरान एक ऐसा वक्त आया था जब छोटा राजन और भरत नेपाली भारत वापस जाने का मन बना चुके थे, लेकिन कोई था जो नहीं चाहता था कि 1993 के धमाकों के आरोपी दाऊद इब्राहिम के खिलाफ उसकी लड़ाई कमजोर पड़े। लिहाजा उसने छोटा राजन को अस्पताल से भगाने की योजना बनाई और छोटा राजन को भरोसा भी दिलाया कि वह उसे सुरक्षित बाहर निकाल ले जाएगा।
निजी अस्पताल में इलाज की अवधि बढ़वाई
उस शख्स के सामने सबसे पहली चुनौती थी घायल राजन को उस निजी अस्पताल में ही रहने देना, जबकि थाई सरकार चाहती थी कि उसे सरकारी अस्पताल में भेज दिया जाए। एक बार राजन अगर सरकारी अस्पताल में भेज दिया जाता तो वहां से भागना असंभव हो जाता क्योंकि उसमें जेल वार्ड काफी भीतर की तरफ था और चारों तरफ सख्त सुरक्षा रहती थी। यही कारण है कि सबसे पहले उस निजी अस्पताल के सर्जन से एक पत्र का जुगाड़ कराया गया कि ऐसी हालत में राजन को अस्पताल से निकालना खतरे से खाली नहीं होगा। सर्जन के उस पत्र से राजन को 15 दिन और उस अस्पताल में रहने की अनुमति मिल गई।
सुजाता के बैंकॉक पहुंचने का उठाया फायदा
इसके बाद 15 दिन के भीतर पूरे ऑपरेशन को अंजाम देना था। इसी बीच छोटा राजन की पत्नी सुजाता निखालजे उर्फ नानी बैंकॉक पहुंच गई। नानी का वहां पहुंचना राजन के लिए वरदान साबित हुआ। राजन की सुरक्षा में कमरे में 24 घंटे तैनात कमांडो को यह कहकर बगल के कमरे में रहने को मना लिया गया, कि पत्नी के साथ एकांत में रहने दिया जाए। कुछ दिनों तक लगातार ऐसा किया गया ताकि वे दूसरे कमरे में रहने के आदी हो जाएं।
भगाने के लिए दो लोगों ने ली ट्रेनिंग
राजन को अस्पताल के जिस कमरे में रखा गया था वह चौथी मंजिल पर था। जाहिर है दरवाजे से उसे निकालना मुश्किल था, इसलिए तय किया गया कि खिड़की के रास्ते उसे बाहर निकाला जाए, लेकिन कैसे ? राजन की जांघ में गोली का जख्म था और उसका वजन भी ज्यादा था। उस समय राजन के साथ साये की तरह मौजूद रहे संतोष शेट्टी ने तय किया कि राजन को खिड़की के रास्ते रस्सी से नीचे उतारा जाए फिर एक कार में बिठाकर सड़क से होते हुए सीमा पार कर कम्बोडिया में प्रवेश कर लिया जाए। लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था। जरा सी भी चूक सभी को सलाखों के पीछे या फिर थाई पुलिस की गोली का शिकार बना सकती थी। काम को अंजाम देने से पहले संतोष शेट्टी और भरत नेपाली पट्टाया गए। कुछ दिन वहां रहकर उन्होंने रस्सी से चढ़ने और उतरने की ट्रेनिंग ली।
आर्मी अफसर और गवर्नर को लालच देकर खरीदा
बैंकॉक में उस अस्पताल से सड़क के रास्ते कम्बोडिया सीमा तक की दूरी तकरीबन 3 घंटे की थी। इतना लंबा सफर एक फरार आरोपी के साथ तय करना खतरनाक था। कहीं भी तलाशी में पकड़े जा सकते थे, लिहाजा वहां की आर्मी के एक बड़े अफसर को लालच देकर खरीदा गया। योजना भागने के लिए आर्मी की जीप के इस्तेमाल की बनी ताकि किसी को कोई शक न हो। पहले तय किया गया था कि सड़क के रास्ते ही कम्बोडिया की सीमा में प्रवेश किया जाएगा, लेकिन उसमें खतरा था। इसके बाद कम्बोडिया में वहां के स्थानीय गवर्नर को भरोसे में लिया गया कि वह हेलीकॉप्टर को उनके यहां उतरने दें। सूत्रों के मुताबिक अस्पताल से कम्बोडिया की सीमा तक आर्मी जीप और फिर वहां से हेलीकॉप्टर के जरिए कम्बोडिया में सुरक्षित उतरने का पूरा पैकेज एक करोड़ में तय हुआ।
कई बार की रेकी
बताया जाता है कि इतना फूलप्रूफ प्लान बनाने के बाद भी संतोष शेट्टी और भरत नेपाली ने अस्पताल से हेलिपैड तक कार से दूरी तय कर कई बार रेकी की थी, ताकि यह पता चल सके कि कहां पर किस तरह की मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है।
शराब के नशे में धुत कमांडो सोते रह गए
आखिर वह रात आ गई जब छोटा राजन को खिड़की से उतारकर फरार कराना था। अब तक राजन के एक और गुर्गे फरीद तनाशा ने राजन की सुरक्षा में तैनात सभी 8 कमांडो से दोस्ती गांठ ली थी। उसका काम था सभी को शराब पिलाकर नशे में धुत करा देना ताकि वे कुछ समझ ही न पाएं। फरीद ने बखूबी अपने काम को अंजाम दिया। बगल के कमरे में सभी को इतनी शराब पिलाई कि वे सभी मदहोश होकर सो गए। फरीद भी उनके साथ सोने का अभिनय करता रहा। छोटा राजन की पत्नी सुजाता निखालजे को कुछ दिन पहले ही भारत रवाना कर दिया गया था। फरीद और बाकी का हवाई जहाज का टिकट भी तैयार था। काम होते ही सभी को वहां से गायब हो जाना था।
यदि समय पर मदद न की जाती तो...
रात तीन बजे साजिश के मुताबिक भरत नेपाली, जो कद-काठी से मजबूत था, ने छोटा राजन को एक खास जैकेट पहनाकर, जिसमें बंधी रस्सी के सहारे उतारना शुरू किया। राजन का वजन अनुमान से ज्यादा निकला। उसका शरीर तेजी से नीचे की तरफ गिरने लगा। भरत नेपाली का संतुलन बिगड़ गया और रस्सी उसके पैर में कुछ इस तरह फंस गई कि राजन बीच हवा में ही लटक गया। वह भरत रस्सी छोड़, रस्सी छोड़ चिल्लाने लगा। एक पल को लगा कि ऑपरेशन फेल हो गया। ऊपर भरत नेपाली कुछ इस हालात में फंसा था कि न तो वह रस्सी छोड़ सकता था और न ही अपना पैर छुड़ा सकता था। तभी नीचे राजन को सहारा देने के लिए खड़ा संतोष शेट्टी सीढियां चढ़कर ऊपर चौथी मंजिल पर पहुंचा और भरत की मदद की। तब तक डॉन हवा में ही लटका रहा।
...और थाई पुलिस हाथ मलते रह गई
इसके बाद राजन को पहले से खिड़की के नीचे ही खड़ी की गई आर्मी की जीप में बैठाया गया और फिर सभी कम्बोडिया के लिए निकल गए। सीमा से कुछ दूरी पर पहले ही तैयार खड़े हेलीकॉप्टर में बैठकर वह थाईलैंड से निकल गए। ऑपरेशन की कामयाबी की खबर मिलते ही फरीद और बाकी लोग भी सुबह की फ्लाइट से उड़ गए। सुबह 7 बजे के करीब जब थाई पुलिस को होश आया तो उनके पैरों तले की जमीन खिसक चुकी थी।
कोई था, जो नहीं चाहता था, छोटा राजन की दाऊद से लड़ाई कमजोर पड़े
उस ऑपरेशन में शामिल रहे एक शख्स के मुताबिक अस्पताल में इलाज के दौरान एक ऐसा वक्त आया था जब छोटा राजन और भरत नेपाली भारत वापस जाने का मन बना चुके थे, लेकिन कोई था जो नहीं चाहता था कि 1993 के धमाकों के आरोपी दाऊद इब्राहिम के खिलाफ उसकी लड़ाई कमजोर पड़े। लिहाजा उसने छोटा राजन को अस्पताल से भगाने की योजना बनाई और छोटा राजन को भरोसा भी दिलाया कि वह उसे सुरक्षित बाहर निकाल ले जाएगा।
निजी अस्पताल में इलाज की अवधि बढ़वाई
उस शख्स के सामने सबसे पहली चुनौती थी घायल राजन को उस निजी अस्पताल में ही रहने देना, जबकि थाई सरकार चाहती थी कि उसे सरकारी अस्पताल में भेज दिया जाए। एक बार राजन अगर सरकारी अस्पताल में भेज दिया जाता तो वहां से भागना असंभव हो जाता क्योंकि उसमें जेल वार्ड काफी भीतर की तरफ था और चारों तरफ सख्त सुरक्षा रहती थी। यही कारण है कि सबसे पहले उस निजी अस्पताल के सर्जन से एक पत्र का जुगाड़ कराया गया कि ऐसी हालत में राजन को अस्पताल से निकालना खतरे से खाली नहीं होगा। सर्जन के उस पत्र से राजन को 15 दिन और उस अस्पताल में रहने की अनुमति मिल गई।
सुजाता के बैंकॉक पहुंचने का उठाया फायदा
इसके बाद 15 दिन के भीतर पूरे ऑपरेशन को अंजाम देना था। इसी बीच छोटा राजन की पत्नी सुजाता निखालजे उर्फ नानी बैंकॉक पहुंच गई। नानी का वहां पहुंचना राजन के लिए वरदान साबित हुआ। राजन की सुरक्षा में कमरे में 24 घंटे तैनात कमांडो को यह कहकर बगल के कमरे में रहने को मना लिया गया, कि पत्नी के साथ एकांत में रहने दिया जाए। कुछ दिनों तक लगातार ऐसा किया गया ताकि वे दूसरे कमरे में रहने के आदी हो जाएं।
भगाने के लिए दो लोगों ने ली ट्रेनिंग
राजन को अस्पताल के जिस कमरे में रखा गया था वह चौथी मंजिल पर था। जाहिर है दरवाजे से उसे निकालना मुश्किल था, इसलिए तय किया गया कि खिड़की के रास्ते उसे बाहर निकाला जाए, लेकिन कैसे ? राजन की जांघ में गोली का जख्म था और उसका वजन भी ज्यादा था। उस समय राजन के साथ साये की तरह मौजूद रहे संतोष शेट्टी ने तय किया कि राजन को खिड़की के रास्ते रस्सी से नीचे उतारा जाए फिर एक कार में बिठाकर सड़क से होते हुए सीमा पार कर कम्बोडिया में प्रवेश कर लिया जाए। लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था। जरा सी भी चूक सभी को सलाखों के पीछे या फिर थाई पुलिस की गोली का शिकार बना सकती थी। काम को अंजाम देने से पहले संतोष शेट्टी और भरत नेपाली पट्टाया गए। कुछ दिन वहां रहकर उन्होंने रस्सी से चढ़ने और उतरने की ट्रेनिंग ली।
आर्मी अफसर और गवर्नर को लालच देकर खरीदा
बैंकॉक में उस अस्पताल से सड़क के रास्ते कम्बोडिया सीमा तक की दूरी तकरीबन 3 घंटे की थी। इतना लंबा सफर एक फरार आरोपी के साथ तय करना खतरनाक था। कहीं भी तलाशी में पकड़े जा सकते थे, लिहाजा वहां की आर्मी के एक बड़े अफसर को लालच देकर खरीदा गया। योजना भागने के लिए आर्मी की जीप के इस्तेमाल की बनी ताकि किसी को कोई शक न हो। पहले तय किया गया था कि सड़क के रास्ते ही कम्बोडिया की सीमा में प्रवेश किया जाएगा, लेकिन उसमें खतरा था। इसके बाद कम्बोडिया में वहां के स्थानीय गवर्नर को भरोसे में लिया गया कि वह हेलीकॉप्टर को उनके यहां उतरने दें। सूत्रों के मुताबिक अस्पताल से कम्बोडिया की सीमा तक आर्मी जीप और फिर वहां से हेलीकॉप्टर के जरिए कम्बोडिया में सुरक्षित उतरने का पूरा पैकेज एक करोड़ में तय हुआ।
कई बार की रेकी
बताया जाता है कि इतना फूलप्रूफ प्लान बनाने के बाद भी संतोष शेट्टी और भरत नेपाली ने अस्पताल से हेलिपैड तक कार से दूरी तय कर कई बार रेकी की थी, ताकि यह पता चल सके कि कहां पर किस तरह की मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है।
शराब के नशे में धुत कमांडो सोते रह गए
आखिर वह रात आ गई जब छोटा राजन को खिड़की से उतारकर फरार कराना था। अब तक राजन के एक और गुर्गे फरीद तनाशा ने राजन की सुरक्षा में तैनात सभी 8 कमांडो से दोस्ती गांठ ली थी। उसका काम था सभी को शराब पिलाकर नशे में धुत करा देना ताकि वे कुछ समझ ही न पाएं। फरीद ने बखूबी अपने काम को अंजाम दिया। बगल के कमरे में सभी को इतनी शराब पिलाई कि वे सभी मदहोश होकर सो गए। फरीद भी उनके साथ सोने का अभिनय करता रहा। छोटा राजन की पत्नी सुजाता निखालजे को कुछ दिन पहले ही भारत रवाना कर दिया गया था। फरीद और बाकी का हवाई जहाज का टिकट भी तैयार था। काम होते ही सभी को वहां से गायब हो जाना था।
यदि समय पर मदद न की जाती तो...
रात तीन बजे साजिश के मुताबिक भरत नेपाली, जो कद-काठी से मजबूत था, ने छोटा राजन को एक खास जैकेट पहनाकर, जिसमें बंधी रस्सी के सहारे उतारना शुरू किया। राजन का वजन अनुमान से ज्यादा निकला। उसका शरीर तेजी से नीचे की तरफ गिरने लगा। भरत नेपाली का संतुलन बिगड़ गया और रस्सी उसके पैर में कुछ इस तरह फंस गई कि राजन बीच हवा में ही लटक गया। वह भरत रस्सी छोड़, रस्सी छोड़ चिल्लाने लगा। एक पल को लगा कि ऑपरेशन फेल हो गया। ऊपर भरत नेपाली कुछ इस हालात में फंसा था कि न तो वह रस्सी छोड़ सकता था और न ही अपना पैर छुड़ा सकता था। तभी नीचे राजन को सहारा देने के लिए खड़ा संतोष शेट्टी सीढियां चढ़कर ऊपर चौथी मंजिल पर पहुंचा और भरत की मदद की। तब तक डॉन हवा में ही लटका रहा।
...और थाई पुलिस हाथ मलते रह गई
इसके बाद राजन को पहले से खिड़की के नीचे ही खड़ी की गई आर्मी की जीप में बैठाया गया और फिर सभी कम्बोडिया के लिए निकल गए। सीमा से कुछ दूरी पर पहले ही तैयार खड़े हेलीकॉप्टर में बैठकर वह थाईलैंड से निकल गए। ऑपरेशन की कामयाबी की खबर मिलते ही फरीद और बाकी लोग भी सुबह की फ्लाइट से उड़ गए। सुबह 7 बजे के करीब जब थाई पुलिस को होश आया तो उनके पैरों तले की जमीन खिसक चुकी थी।
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