सुप्रीम कोर्ट के 75वें स्थापना दिवस के मौके पर 29 जुलाई से 3 अगस्त तक सुप्रीम कोर्ट में लोक अदालत लगी. 3 अगस्त को आयोजित कार्यक्रम में मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत का उद्देश्य लोगों के घरों तक न्याय पहुंचाना और यह सुनिश्चित करना है कि सुप्रीम कोर्ट न केवल बड़े मामलों को संभाले बल्कि सबके लिए है- 'न्याय सबके द्वार' है. भारत के सुप्रीम कोर्ट में विशेष लोक अदालत के स्मरणोत्सव को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि भारत सरकार के एक वरिष्ठ सचिव और पूर्व सिविल सेवक ने कहा कि उन्हें कभी पता ही नहीं चला कि सुप्रीम कोर्ट इतने छोटे मामलों को भी निपटाता है, क्योंकि हम सुप्रीम कोर्ट को बड़े मामलों को निपटाते हुए देखने के आदी हो गए हैं. जिनकी खबर हर सुबह अखबारों के पहले पन्ने पर छपती है.
अदालत की भूमिका पर डाला प्रकाश
डी वाई चंद्रचूड़ ने लोक अदालतों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि लोग अदालतों के मामलों से ‘इतने तंग' आ गए हैं कि वे बस समझौता चाहते हैं. लोक अदालतें ऐसा मंच हैं जहां न्यायालयों में लंबित या मुकदमेबाजी से पहले के विवादों और मामलों का निपटारा या सौहार्दपूर्ण ढंग से समझौता किया जाता है. पारस्परिक रूप से स्वीकृत समझौते के विरुद्ध कोई अपील दायर नहीं की जा सकती.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन्हें हर स्तर पर लोक अदालत के आयोजन में बार और बेंच सहित सभी से जबरदस्त समर्थन और सहयोग मिला. चंद्रचूड़ ने कहा कि जब लोक अदालत के लिए पैनल गठित किए गए थे तो यह सुनिश्चित किया गया था कि प्रत्येक पैनल में दो न्यायाधीश और बार के दो सदस्य होंगे. चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्हें सचमुच में लगता है कि सुप्रीम कोर्ट भले ही दिल्ली में स्थित हो, लेकिन यह दिल्ली का सुप्रीम कोर्ट नहीं है. यह भारत का सुप्रीम कोर्ट है. चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘लोक अदालत का उद्देश्य लोगों के घरों तक न्याय पहुंचाना और लोगों को यह सुनिश्चित करना है कि हम उनके जीवन में निरंतर मौजूद हैं.'' (भाषा इनपुट के साथ)
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