याकूब मेमन की फाइल फोटो
नागपुर:
सुप्रीम कोर्ट में याकूब मेमन की क्यूरेटिव पिटीशन ख़ारिज होने के बाद नागपुर सेंट्रल जेल में उसे फांसी देने की तैयारी शुरू हो गई है। सन 1993 में मुंबई के बम धमाकों के मामले में गुनाहगार याक़ूब मेमन को 30 जुलाई को सज़ा-ए-मौत दी जाएगी। जेल में मनोचिकित्सक और फिजीशियन मेमन की जांच कर रहे हैं।
फांसी मिलने तक अब जेल में याक़ूब मेमन अकेले बंद रहेगा। उसके रिश्तेदार उससे मिल सकते हैं और उनकी संख्या पर पाबंदी नहीं है। हर दिन याक़ूब का स्वास्थ्य परीक्षण होगा। फ़ांसी देने के लिए तीन कांस्टेबलों को ट्रेनिंग दी जा रही है और फंदा कौन खींचेगा, यह आख़िरी वक़्त तय होगा। फ़ांसी के वक़्त परिजन जेल में मौजूद रह सकते हैं। जेल अधीक्षक, डॉक्टर, दो सरकारी गवाह भी फांसी यार्ड में मौजूद रहेंगे।
नागपुर सेंट्रल जेल के पूर्व अधीक्षक वैभव कांबले का कहना है कि अक्सर फांसी के लिए रात के ढाई से साढ़े तीन का वक्त तय किया जाता है क्योंकि इस वक्त किसी तरह का कोई व्यवधान नहीं होता है। अब हर दिन याक़ूब से मनोचिकित्सक भी मिलेंगे, क्योंकि कई बार ऐसी हालत में क़ैदी डिप्रेशन का शिकार होकर ख़ुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है।
मुंबई के मशहूर मनोचिकित्सक डॉ यूसुफ माचिसवाला के मुताबिक, 'कई बार जब सज़ा-ए-मौत की तारीख तय हो तो कैदी नर्वस ब्रेकडाउन का शिकार हो सकता है। उसे पुरानी बातें, नाते-रिश्तेदार याद आते हैं। कई बार वह अलग तरह की चीजें दिखने या आवाज़ आने की भी शिकायत करते हैं। ऐसे में रोज़ाना उनकी काउंसलिंग बहुत ज़रूरी है।
फांसी के बाद याक़ूब का शव परिजनों को सौंपा जाएगा या नहीं इसको लेकर सवाल बरकरार है। कुछ लोगों का कहना है कि चूंकि याकूब पर आतंकवाद में शामिल होने का जुर्म साबित हो चुका है, ऐसी स्थिति में शव परिजनों को न सौंपकर जेल परिसर के अंदर ही अज्ञात तरीके से दफनाया जा सकता है।
फांसी मिलने तक अब जेल में याक़ूब मेमन अकेले बंद रहेगा। उसके रिश्तेदार उससे मिल सकते हैं और उनकी संख्या पर पाबंदी नहीं है। हर दिन याक़ूब का स्वास्थ्य परीक्षण होगा। फ़ांसी देने के लिए तीन कांस्टेबलों को ट्रेनिंग दी जा रही है और फंदा कौन खींचेगा, यह आख़िरी वक़्त तय होगा। फ़ांसी के वक़्त परिजन जेल में मौजूद रह सकते हैं। जेल अधीक्षक, डॉक्टर, दो सरकारी गवाह भी फांसी यार्ड में मौजूद रहेंगे।
नागपुर सेंट्रल जेल के पूर्व अधीक्षक वैभव कांबले का कहना है कि अक्सर फांसी के लिए रात के ढाई से साढ़े तीन का वक्त तय किया जाता है क्योंकि इस वक्त किसी तरह का कोई व्यवधान नहीं होता है। अब हर दिन याक़ूब से मनोचिकित्सक भी मिलेंगे, क्योंकि कई बार ऐसी हालत में क़ैदी डिप्रेशन का शिकार होकर ख़ुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है।
मुंबई के मशहूर मनोचिकित्सक डॉ यूसुफ माचिसवाला के मुताबिक, 'कई बार जब सज़ा-ए-मौत की तारीख तय हो तो कैदी नर्वस ब्रेकडाउन का शिकार हो सकता है। उसे पुरानी बातें, नाते-रिश्तेदार याद आते हैं। कई बार वह अलग तरह की चीजें दिखने या आवाज़ आने की भी शिकायत करते हैं। ऐसे में रोज़ाना उनकी काउंसलिंग बहुत ज़रूरी है।
फांसी के बाद याक़ूब का शव परिजनों को सौंपा जाएगा या नहीं इसको लेकर सवाल बरकरार है। कुछ लोगों का कहना है कि चूंकि याकूब पर आतंकवाद में शामिल होने का जुर्म साबित हो चुका है, ऐसी स्थिति में शव परिजनों को न सौंपकर जेल परिसर के अंदर ही अज्ञात तरीके से दफनाया जा सकता है।
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