देश की राजधानी दिल्ली पिछले कुछ समय से भयानक वायु प्रदूषण का सामना कर रही है. यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है. सर्दियां शुरू होते ही हर दिल्ली और उससे सटे शहर धुएं और धुंध की चादर में लिपट जाते हैं. इस दौरान वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) खतरनाक स्तर तक पहुंच जाती है.हवा की गुणवत्ता पर नजर रखने वाली स्विट्जरलैंड स्थित संस्था एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग ग्रुप 'आईक्यूएयर' ने दिल्ली को दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बताया था.दिल्ली में इस तरह का प्रदूषण पिछले कई सालों से देखा जा रहा है और दिल्ली इससे लड़ने की भरपूर कोशिश भी कर रही है. आइए जानते हैं कि यह प्रदूषण दिल्ली में क्या-क्या बदलाव लेकर आया है.
एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) आसपास की हवा में मौजूद प्रदूषक तत्वों के स्तर को मापता है. यह सूचकांक 0 से 500 के बीच होता है. लेकिन प्रदूषण अत्यधिक होने पर यह 500 से भी ऊपर जा सकता है.शून्य से 50 तक के एक्यूआई को अच्छा माना जाता है.वहीं 150 से अधिक एक्यूआई को हानिकारक श्रेणी में रखा जाता है. दिल्ली में प्रदूषण का सबसे बड़ा श्रोत ट्रांसपोर्ट, इंडस्ट्री, पावर प्लांट, सड़क की धूल और निर्माण कार्य से निकलने वाले धूल के कण को माना जाता है.
खटारा बसों की दिल्ली से विदाई

Photo Credit: दिल्ली के सड़कों पर पहले ब्लू लाइन और ग्रीन लाइन बसों का बोलबाला था. ये ट्रैफिक बिगाड़ने के साथ-साथ प्रदूषण भी फैलाती थीं.
नई सदी की शुरुआत में दिल्ली की सड़कों पर प्राइवेट यात्री बसों का बोलबाला था. हर जगह ब्लू लाइन, ग्रीन लाइन, ह्वाइट लाइन जैसी बसों का बोलबाला था.इन बसों से निकलने वाले धुएं लोगों का सड़क पर निकलना दूभर था. बाहर निकलते ही लोगों की आंखों से आंसू निकलने लगते थे. उस समय दिल्ली के वायु प्रदूषण में इन बसों का योगदान सबसे अधिक था.इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट तक को निर्देश देना पड़ा.वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 2001 से शहर में सार्वजनिक परिवहन को सीएनजी पर शिफ्ट करना शुरू किया गया.ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि सीएनजी बसें डीजल बसों की तुलना में कम हानिकारक हैं. इस कदम ने दिल्ली में वायु प्रदूषण को काफी हद तक नियंत्रित किया.इलेक्ट्रिक बसों के आने के साथ-साथ सरकार दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के बेड़े से सीएनजी बसों को भी हटाने का सिलसिला शुरू कर दिया.उम्मीद की जा रही हैं कि अगले साल के मार्च तक डीटीसी के बेड़े से सभी सीएनजी बसें हटा ली जाएंगी.
सीएनजी बसों की जगह पर दिल्ली में बैट्री से चलने वाली इलेक्ट्रिक बसें को सड़कों पर उतारा गया है. अनुमान है कि दिल्ली में इस समय करीब साढ़े तीन हजार इलेक्ट्रिक बसें चल रही हैं. डीटीसी के बेड़े में अगले साल 3500 और बसें जोड़ने की योजना है.
दिल्ली में मेट्रो का आगमन

दिल्ली में प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में मेट्रो ट्रेनों ने बड़ा योगदान दिया है, जो दिसंबर 2002 में चलनी शुरू हुई थीं.
दिल्ली में मेट्रो का आगमन का एक कारण प्रदूषण पर नियंत्रण भी था. दिल्ली में पहली मेट्रो रेल 24 दिसंबर 2002 को शाहदरा से तीस हजारी के बीच दौड़ी थी. इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था. उसके बाद से मेट्रो का दिल्ली के साथ-साथ उसके पड़ोसी शहरों में भी विस्तार किया गया है. एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में मेट्रो की वजह से सात लाख से अधिक वाहन सड़कों से हटे हैं.मेट्रो का उपयोग करने वाला हर यात्री 10 किमी की यात्रा में करीब 100 मिलीग्राम कॉर्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन कम करता है, इससे हवा साफ होती है.इसे देखते हुए ही सरकार मेट्रो रेल को दिल्ली के साथ-साथ देश के दूसरे शहरों में भी ले जा रही है.
बंद हुए दो बड़े बिजली घर

बढ़ते वायु प्रदूषण की वजह से ही सुप्रीम कोर्ट ने बदरपुर के थर्मल पॉवर प्लांट को बंद करने का निर्देश दिया था.
दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस के पास स्थित इंद्रप्रस्थ बिजली संयंत्र को 2010 में प्रदूषण की वजह से बंद कर दिया गया था. यह प्लांट कोयला से बिजली बनाता था. इस संयंत्र से 240 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता था. इससे बड़ी मात्रा में प्रदूषण फैलता था. अब इस बिजली घर की जमीन पर सोलर पॉवर जनरेशन की कोशिश की जा रही है. सरकार की योजना यहां से पांच मेगावाट सौर उर्जा उत्पादन की है.
दिल्ली में प्रदूषण को रोकने के लिए दिल्ली-हरियाणा सीमा पर स्थित बदरपुर में एनटीपीसी के कोयला आधारित बिजली घर को 15 अक्टूबर 2018 को स्थायी रूप से बंद कर दिया गया. यह संयंत्र 1981 के आसपास शुरू हुआ था. इसकी कुल क्षमता 705 मेगावाट थी. इसे सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर बंद किया गया. इस संयंत्र के 884 एकड़ जमीन पर इको-पार्क और वन्यजीव सफारी बनाने की तैयारी है.
एयर प्यूरिफायर की बढती मांग

बढ़ते वायु प्रदूषण की वजह से दिल्ली और उसके आसपास के शहरों में एयर प्यूरीफायर की मांग में बेतहाशा बढोतरी हुई है.
बढ़ते प्रदूषण से लड़ने में एयर प्यूरिफायर को एक हथियार के रूप में देखा जाता है. दिल्ली में पिछले कुछ सालों में जिस तरह से प्रदूषण बढ़ा है, उससे एयर प्यूरिफायर की मांग में दिन-रात इजाफा हो रहा है. कारोबार जगत की गतिविधियों पर नजर रखने वाली पत्रिका 'फार्च्यून इंडिया' की एक स्टोरी के मुताबिक ईकॉमर्स साइट अमेजन पर दिल्ली-एनसीआर से एयर प्यूरिफायर की मांग में 20 गुना से अधिक का इजाफा हुआ है. वहीं ईकॉमर्स की एक और साइट फ्लिपकार्ट के मुताबिक अक्तूबर के पहले हफ्ते की तुलना में नवंबर के पहले दो दिनों में ही दिल्ली एनसीआर से एयर प्यूरिफायर की मांग में आठ गुने का इजाफा देखा गया.यह वह समय था जब दिल्ली में हवा की गुणवत्ता पर नजर रखने वाले सभी 28 सेंटरों पर एक्यूआई 300 से अधिक दर्ज किया गया था. सबसे अधिक मांग 10 हजार से कम कीमत वाले एयर प्यूरिफायर की है.
मास्क बना जरूरत

बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटने में लोग फेस मास्क का भी सहारा ले रहे हैं.
कोरोनाकाल के बाद भारत में फेसमास्क की जरूरत बढ़ गई. हर तरफ लोग फेस मास्क लगाए हुए नजर आते थे. लेकिन कोरोनाकाल खत्म होने के बाद भी दिल्ली में फेस मास्क पहले हुए लोग नजर आते हैं. दरअसल वो कोरोना की जगह वायु प्रदूषण से लड़ने की कोशिश करते हैं. विशेषज्ञ भी वायु प्रदूषण से लड़ने के लिए मास्क के उपयोग की सलाह देते हैं. यह मास्क वायु प्रदूषण के साथ-साथ खराब हवा से होने वाले संक्रमण से लड़ने का भी काम करता है. दिल्ली में N90 और N95 मास्क की मांग अधिक है. हालांकि दिल्ली के प्रदूषण को देखते हुए विशेषज्ञ इस बात को लेकर सहमत नहीं हैं कि ये मास्क लोगों की मदद कर पाएंगे.
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