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This Article is From Feb 27, 2015

बनारस के बुनकरों को नहीं चाहिए पैकेज की भीख

बनारस के बुनकरों को नहीं चाहिए पैकेज की भीख
वाराणसी:

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि भारत वर्ष में खेती के बाद अगर कोई दूसरा बड़ा रोजगार का सेक्टर है तो वो है टेक्सटाइल इंडस्ट्री और उसमें भी बनारस इसका बड़ा केन्द्र सदियों से रहा है। लेकिन पिछले कई सालों से बनारसी वस्त्र उद्योग बीमार है।

हर बजट में इसको लेकर चिंता व्यक्त की जाती है और इसे ठीक करने के लिए बड़े-बड़े पैकेज का ऐलान भी होता है, पर ये रुपया कहां जाता है खुद बुनकरों को नहीं पता क्योंकि उनकी ये बिमारी लगातार बढ़ती जा रही है। यही वजह है कि इस बजट में अब बुनकर और बनारसी वस्त्र उद्योग के लोग पैसे की भीख नहीं बल्कि सस्ते दरों पर इस कारीगरी से जुड़े रॉ मैटेरियल और बाजार चाहते हैं जिससे वो खुद अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बीते महीने बनारस आए थे तब उन्होंने बुनकरों के लिए लालपुर में ट्रेड फेसिलि‍टेट सेन्टर का उद्घाटन किया और उस समय कहा कि भारत की ऐसी कोई भी स्त्री गरीब से गरीब और अमीर से अमीर नहीं होगी जिसने बनारसी साड़ी का नाम नहीं सुना होगा और कोई भी ऐसी महिला नहीं होगी जो अपनी बेटी की शादी में एक बनारसी साड़ी न देना चाहे।'

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बनारसी साड़ी की जो बात बता रहे हैं ये उसके खुद की समाज के आखिरी पायदान तक पहुंचने के रसूख की कहानी है। सदियों से जिस कारीगरी ने कपड़ा जगत पर राज किया वो आज कई सालों से बीमार है और अब तो आखिरी सांसें भी गिन रहा है। इसे ठीक करने के लिए पिछली कई सरकारों ने बड़े-बड़े वादे किए, तमाम उपाय किए, करोड़ों रुपये भी दिए। लेकिन ये पैसा कहां गया खुद वाराणसी वस्त्र उद्योग को भी नहीं पता।

वाराणसी वस्त्र उद्योग के सेक्रेटरी राजन बहल बताते हैं, 'पिछली सरकार ने 3 हज़ार करोड़ रुपये बुनकरों के क़र्ज़ माफ़ी के लिए दिया था। कैसा गोलमाल हुआ वो हम लोगों को आज तक नहीं समझ में आया। जितने डिफॉल्टर थे उनको लाभ मिला जो ईमानदार थे उनको कोई लाभ नहीं मिला।'

गौरतलब है की बनारसी साड़ी का देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बड़ा बाजार है। ये कारोबार तक़रीबन 1 हज़ार करोड़ का है जिसमे 300 से 400 करोड़ का हर साल एक्सपोर्ट होता है। कभी ये आंकड़ा इससे कई गुना ज़्यादा था। क्योंकि तब इससे जुड़े रॉ मैटेरियल बनारस और देश के कई हिस्सों में ही बनता था। लेकिन आज हालत ये है कि चाइना से यार्न आने लगा है।

इस पर बड़ी विडम्बना ये है कि कच्चे माल चाइनीज यार्न पर तो सरकार 25 फीसदी टैक्स लगा रही है जबकि इसी धागे से बने तैयार माल जो चाइना से आ रहा है उस पर सिर्फ 10 फीसदी टैक्स लगा रही है जो यहां के उद्योग को ख़त्म कर रहा है। यही हॉल पॉलिस्टर, नायलॉन, कॉटन, मर्सराइज्ड, विस्कोर्स जैसे देश में बनने वाले धागों का है। जिसके कर्ज से बुनकर कभी उबर नहीं पाता, लिहाजा अब वो सरकार से पैसा नहीं बल्कि वो सस्ते दरों पर ये धागा चाहता हैं।

बुनकर मो. हामिद अंसारी और स्पष्ट करते हुए कहते हैं, 'हमारे नाम पर जो पैसा आता है वो तो हमको मिलता नहीं जो अधिकारी नेता पारेता है वो बंदरबांट करते हैं, हम लोग परेशान हो कर बैठ जाते हैं। अब सरकार से यही आशा है कि हमको टैक्स कम करके रेशम उपलब्ध कराए जिससे हम सस्ता से सस्‍ता माल बनाएं और हमें बाजार उपलब्ध कराए जिससे हम अपना माल बेच सकें। हम अब कटोरा लेकर भीख नहीं मांगेंगे।'

मो. हामिद अंसारी जिस धागे की बात कर रहे हैं वो धागे कभी बनारस में ही बनते थे लेकिन ये इंडस्ट्री आज ख़त्म हो गई है। सिर्फ 5 फीसदी जरी का ही काम बचा है। इन ख़त्म हो रहे उद्योग के लिए सरकार ने कई योजनाएं बनाईं। इसमें कोऑपरेटिव सोसायटी से लेकर क्लस्टर तक हैं, लेकिन इनका क्या हाल है आप इन आंकड़ों से समझ सकते हैं।

बनारस में तक़रीबन 600 सोसायटी हैं पर इसमें बमुश्किल 60 ही ठीक तरीके से काम कर रही हैं। ऐसे ही तक़रीबन 30 सरकारी क्लस्टर और 1 मेगा क्लस्टर है जिसका लाभ भी आम बुनकरों को नहीं मिल पा रहा। लिहाजा अब ये लोग सरकार से इस तरह की कोई योजना नहीं बल्कि इसके बाजार और प्रचार प्रसार में सहयोग चाहते हैं।

वाराणसी वस्त्र उद्योग सेक्रेटरी राजन बहल इस बात को कुछ यूं बताते हैं, 'इस बजट में कस्टम ड्यूटी मुक्त हो रेशम और एक कोई ऐसा फंड बनाया जाए जिससे बनारसी साड़ी का प्रचार हो, जैसे हम कहते हैं सन्डे हो या मंडे रोज खाये अंडे, या हीरा है सदा के लिए, ऐसा प्रचार होना चाहिए।

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