उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 200 दिव्यांग बच्चों ने कोरोनावायरस से लोगों को बचाने के लिए 10,000 मास्क बनाया है. ये सारे बच्चे दिव्यांग हैं. इसके अलावा देखने, सुनने, बोलने या चलने में भी दिक़्क़त है. यह सारे बच्चे दृष्टि सामाजिक संस्थान नाम की एक संस्था के हैं. जहां 230 बच्चे हमेशा रहते हैं, जबकि 200 रोज बाहर से पढ़ने आते हैं. यहां 14 साल की किरण का एक पैर नहीं है. वह बोल और सुन नहीं पाती. लेकिन वो हाथ पैर वालों और देख सुन सकने वालों के लिए मास्क बना रही हैं. किरण हमें इशारों में मास्क के लिए कपड़ा काटने से लेकर उसमें इलास्टिक लगाने तक कि पूरी प्रोसेस समझाती है.
इसी तरह अंजलि को चलने में भी बहुत दिक़्क़त है और दिमाग से भी कमजोर है. लेकिन वो भी उन सब के लिए जिन्हें अपने हाथ पांव पे बहुत नाज़ है, 200 मास्क रोज़ सीती है. ऐसे तमाम बच्चे हैं. दृष्टि सामाजिक संस्थान नाम की यह संस्था नीता बहादुर ने क़ायम की थी. अब वो नहीं रहीं लेकिन उनका बेटा अथर्व और शालू अब इन बच्चों के मां-बाप हैं.
अथर्व कहते हैं कि बच्चों को यहां सिलायी सिखाई जाती है, लेकिन ये नया काम करके उन्हें बहुत मज़ा आ रहा है. जो बच्चे समझने की सलाहियत रखते हैं, उन्हें समझाया गया है कि इस मास्क की क्या अहमियत है. इससे उन्हें भी लगता है कि वो समाज के कोई काम आ रहे हैं.'
शालू सिंह दृष्टि समाजिक संस्थान में ज्वाइंट डायरेक्टर हैं. शालू कहती हैं कि इतने बड़े पैमाने पर बच्चों के लिए मास्क का इंतज़ाम करना बहुत मुश्किल था. फिर तमाम बच्चे मास्क तोड़ भी देते हैं, लेकिन अब बच्चों के बनाये मास्क से इन बच्चों की भी ज़रूरत पूरी हो रही है और बाहर भी सप्लाई हो रहा है. अब तक 10 हज़ार मास्क के आर्डर उन्हें आ चुके हैं,जिनमें से 3 हज़ार मास्क वे सप्लाई भी कर चुके हैं.
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