उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
संसद में काम-काड को लेकर उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू का बड़ा बयान आया है. शनिवार को वेंकैया नायडू ने कहा कि संसद को राजनीतिक रूप से अपना हित साधने का मंच नहीं बनाया जाना चाहिए. नायडू ने कहा, "राजनीतिक दलों के लिए गंभीर आत्मचिंतन करने का समय आ गया है कि वे संसद को अपनी पार्टी को खुश करने के लिए हो-हल्ला मचाने का मंच नहीं बनाएं."
उपराष्ट्रपति ने आगे कहा, "देश में शांति, प्रगति और समृद्धि लाने के लिए प्रभावी व पूरी जवाबदेही से संसद का काम-काज चलाना सुनिश्चित करने के सिवा दूसरा विकल्प नहीं है." कलकत्ता चेंबर ऑफ कॉमर्स के 187वें सालाना समारोह के मौके पर 'भारत में संसदीय लोकतंत्र को पुनरुज्जीवित करने' के विषय पर आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए नायडू ने संसद के काम-काज पर चिंता जाहिर की.
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नायडू ने कहा, "संसद और राज्यों की विधानसभाओं में जिस तरीके से काम-काज को रहा है, उसको लेकर आलोचना उचित है. आलोचना की वजह हाल के दिनों में संसद के कार्य में हुए परिणात्मक व गुणात्मक ह्रास है." दरअसल, संसद सदस्यों समेत विविध समूहों द्वारा संसद के काम-काम को लेकर आलोचना होने लगी है.
उन्होंने संसद सत्र के दौरान हंगामे को लेकर चिंता जाहिर की, क्योंकि राजनीतिक दलों का अपने सदस्यों के ऊपर अंकुश नहीं होने की वजह से यह रोज-रोज का मसला बन गया है. उन्होंने कहा कि विगत वर्षो में विधायी काम-काम और राष्ट्रीय महत्व के अहम मसलों पर बहस के लिए दिए जाने वाले समय में कमी आई है. संसद की बैठकें जब कम दिनों के लिए होती हैं, उस समय भी अक्सर साधारण मुद्दों को लेकर शोरगुल व हंगामे के चलते संसद अक्सर स्थगित करनी पड़ती है.
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नायडू ने कहा कि राजनीतिक दलों को महत्वपूर्ण मसलों पर सर्वसम्मति बनाने की जरूरत है, ताकि संसद और विधानसभाओं का कीमती समय उन मुद्दों को लेकर बर्बाद न हो, जिनका हल बहस और बातचीत के जरिए ढूंढ़ा जा सकता है.
उन्होंने कहा, "लेकिन दुर्भाग्य से मौजूदा समय में संसदीय लोकतंत्र की कसौटी पर स्वस्थ बहस व बातचीत हंगामे, विरोध और सदन के स्थगन से फीकी पड़ जाती है. ज्यादातर मौके पर संसद में हंगामे से जनता के पैसे की बर्बादी होती है और कामकाज के घंटे कम हो जाते हैं."
VIDEO : राज्यसभा में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के चुटीले बयान (इनपुट भाषा से)
उपराष्ट्रपति ने आगे कहा, "देश में शांति, प्रगति और समृद्धि लाने के लिए प्रभावी व पूरी जवाबदेही से संसद का काम-काज चलाना सुनिश्चित करने के सिवा दूसरा विकल्प नहीं है." कलकत्ता चेंबर ऑफ कॉमर्स के 187वें सालाना समारोह के मौके पर 'भारत में संसदीय लोकतंत्र को पुनरुज्जीवित करने' के विषय पर आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए नायडू ने संसद के काम-काज पर चिंता जाहिर की.
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नायडू ने कहा, "संसद और राज्यों की विधानसभाओं में जिस तरीके से काम-काज को रहा है, उसको लेकर आलोचना उचित है. आलोचना की वजह हाल के दिनों में संसद के कार्य में हुए परिणात्मक व गुणात्मक ह्रास है." दरअसल, संसद सदस्यों समेत विविध समूहों द्वारा संसद के काम-काम को लेकर आलोचना होने लगी है.
उन्होंने संसद सत्र के दौरान हंगामे को लेकर चिंता जाहिर की, क्योंकि राजनीतिक दलों का अपने सदस्यों के ऊपर अंकुश नहीं होने की वजह से यह रोज-रोज का मसला बन गया है. उन्होंने कहा कि विगत वर्षो में विधायी काम-काम और राष्ट्रीय महत्व के अहम मसलों पर बहस के लिए दिए जाने वाले समय में कमी आई है. संसद की बैठकें जब कम दिनों के लिए होती हैं, उस समय भी अक्सर साधारण मुद्दों को लेकर शोरगुल व हंगामे के चलते संसद अक्सर स्थगित करनी पड़ती है.
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नायडू ने कहा कि राजनीतिक दलों को महत्वपूर्ण मसलों पर सर्वसम्मति बनाने की जरूरत है, ताकि संसद और विधानसभाओं का कीमती समय उन मुद्दों को लेकर बर्बाद न हो, जिनका हल बहस और बातचीत के जरिए ढूंढ़ा जा सकता है.
उन्होंने कहा, "लेकिन दुर्भाग्य से मौजूदा समय में संसदीय लोकतंत्र की कसौटी पर स्वस्थ बहस व बातचीत हंगामे, विरोध और सदन के स्थगन से फीकी पड़ जाती है. ज्यादातर मौके पर संसद में हंगामे से जनता के पैसे की बर्बादी होती है और कामकाज के घंटे कम हो जाते हैं."
VIDEO : राज्यसभा में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के चुटीले बयान (इनपुट भाषा से)
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