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उत्तराखंड में ग्‍लेशियर झीलों की संख्‍या 1266 से बढ़कर 1290, 13 ला सकती हैं तबाही 

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के ग्लिसरोलॉजिस्ट वैज्ञानिक डॉ राकेश भांबरी ने बताया की ग्लेशियर झीलों की संख्या बढ़ गई है. इसके पीछे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के साथ 4 हजार या 5 हजार मीटर तक बर्फ की जगह बारिश का होना है.

उत्तराखंड में ग्‍लेशियर झीलों की संख्‍या 1266 से बढ़कर 1290, 13 ला सकती हैं तबाही 
देहरादून:

उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में लगातार ग्लेशियर जिलों की संख्या बढ़ रही है. उत्तराखंड में जिले मौजूदा समय में ग्लेशियरों की संख्‍या 1290 रिकॉर्ड की गई है. इसके साथ ही ग्लेशियर झीलों का दायरा भी 8.1% तक बढ़ गया है. वैसे साल 2015 में जब वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने स्टडी की थी तो उस दौरान हिमालय क्षेत्र में 1266 ग्‍लेशयर पाए गए थे. 

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के ग्लिसरोलॉजिस्ट वैज्ञानिक डॉ राकेश भांबरी ने बताया की उत्तराखंड के हिमालय क्षेत्र में वाडिया इंस्टीट्यूट के द्वारा रिसर्च किया गया और यह पाया कि ग्लेशियर पर झीलें बन रही हैं. इसकी स्टडी 2015 में की गई थी. डॉ राकेश भांबरी ने बताया कि एक बार फिर से इसकी स्टडी की गई और यह पाया गया कि ग्लेशियर झीलों की संख्या बढ़ गई है. 

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ग्‍लेशियर झीलों की संख्‍या बढ़ने का क्‍या है कारण?

वाडिया इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक डॉ. भांबरी ने इसके पीछे का कारण जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग है तो दूसरी तरफ इसकी वजह 4 हजार या 5 हजार मीटर तक बर्फ की जगह बारिश का होना है. डॉ राकेश भांबरी कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि ग्लेशियर की झील सिर्फ बढ़ रही है, यह भी देखा गया है कि कुछ झीलें थी जो पहले थी और बाद में नहीं पाई गई. हालांकि ऐसा भी देखा जा रहा है कि हिमालय क्षेत्र में कुछ झीलें छोटी थी लेकिन आसपास छोटी-छोटी झीलों के साथ जुड़कर बनने के कारण वह बड़ी झीलें बन गई. 

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मोरेन और लेटरल झीलें सबसे खतरनाक

डॉ राकेश भांबरी ने बताया कि ग्लेशियर झीलें कई तरह की होती हैं, जैसे मोरेन झील, सुपर ग्लेशियर झील, लेटरल मोरेन झील, आइस झील आदि. उन्‍होंने बताया कि सबसे खतरनाक मोरेन लेक और लेटरल मोरेन लेक होती है.

अगर पूरे उत्तराखंड में ग्लेशियर झीलें के आंकड़ों को देखें टोंस बेसिन में 52 ग्लेशियर झीलें, यमुना बेसिन में 13 ग्लेशियर झीलें, भागीरथी बेसिन में 306 ग्लेशियर झीलें, भीलंगना बेसिन में 22 ग्लेशियर झीलें, मंदाकिनी बेसिन में 19 ग्लेशियर झीलें, अलकनंदा बेसिन में 635 ग्लेशियर झीलें, पिंडारी बेसिन में 7 ग्लेशियर झीलें, गोरी गंगा बेसिन में 92 ग्लेशियर झीलें, धौली गंगा बेसिन में 75 ग्लेशियर झीलें, कुटियांगति बेसिन में 45 ग्लेशियर झीलें रिकॉर्ड की गई हैं. 

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इन त्रासदियों का कारण रही हैं ग्‍लेशियर झीलें

उत्तराखंड में 2013 की केदारनाथ आपदा का कारण चोराबारी ग्लेशियर झील ही थी तो वहीं साल 2021 के रैणी तपोवन झील बाढ़ भी ग्लेशियर झील के फटने से आई थी. साल 2013 में सिक्किम में भी ग्लेशियर झील के फटने से भारी तबाही की घटना हुई थी. यही वजह है कि एक ग्लेशियर झील की मॉनिटरिंग लगातार की जा रही है, क्योंकि इसमें फटने से निचले इलाकों में बाढ़ और तबाही हो सकती है. 

13 झीलों को केंद्र ने किया है आइडेंटिफाई 

उत्तराखंड में इन सब घटनाओं के बाद 13 ऐसी ग्लेशियर झीलों को भारत सरकार ने आईडेंटिफाई किया है जो बड़ी तबाही ला सकती हैं. इसलिए इन झीलों का ट्रीटमेंट करने के लिए विशेषज्ञों की टीम तैनात की गई है, जिसमें चमोली में वसुंधरा झील के अलावा अन्य जिलों उत्तरकाशी में केदारताल, बागेश्वर में नागकुंड, पिथौरागढ़ में 6 झीलें और टिहरी में एक झील है. 

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