समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की उपचुनाव में प्रचार से दूरी और मुसलमानों के एक बड़े वर्ग का समर्थन न मिलना आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर पार्टी की हार का एक कारण हो सकती है. दूसरी तरफ विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से सत्ता हासिल करने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राज्य के शीर्ष नेताओं ने उप चुनावों में जीत की गति बनाये रखने के लिए कड़ी मेहनत की. उप चुनाव परिणाम ने सपा के जिताऊ ‘एमवाई' (मुस्लिम-यादव) फार्मूले के टूटने के साथ ही मोदी और योगी (एमवाई) के नाम पर भाजपा के पक्ष में मजबूती का भी संकेत दिया है.
रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवारों की जीत से उत्साहित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि इन परिणामों के जरिए जनता ने वर्ष 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव के लिए 'दूरगामी संदेश' दे दिया है. योगी ने कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों और भाजपा की 'सबका साथ, सबका विकास, सब का प्रयास तथा सबका विश्वास' की घोषित नीति पर जनता की मुहर का प्रतीक है. हालांकि इसके विपरीत सपा नेताओं ने पार्टी की हार का ठीकरा सत्तारूढ़ दल पर ही फोड़ा. सपा प्रमुख अखिलेश यादव समेत कई सपा नेताओं ने दोनों सीटों पर हार का श्रेय सत्ताधारी दल द्वारा सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग को दिया है. आजमगढ़ उप चुनाव में भोजपुरी अभिनेता दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' ने सपा के धर्मेंद्र यादव को हराया, जबकि आजम खान के गढ़ रामपुर में भाजपा के घनश्याम लोधी ने असीम राजा को 42 हजार से अधिक मतों से हराया.
विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बावजूद आदित्यनाथ व अन्य भाजपा नेताओं ने राज्य में चुनावी जीत की गति को बनाए रखने के लिए दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में सक्रियता बनाये रखी और उनके लगातार दौरे भी हुए. हालांकि मुख्य विपक्षी दल के प्रमुख अखिलेश यादव ने उप चुनाव से दूरी बनाये रखी और चुनाव प्रचार के लिए निकले भी नहीं. मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) रामपुर सीट पर नहीं लड़ी लेकिन आजमगढ़ सीट पर बसपा उम्मीदवार शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ने सपा का खेल बिगाड़ दिया.
हालांकि 2019 में आजमगढ़ सीट सपा ने बसपा के गठबंधन से ही जीती थी. 2014 में जमाली ने सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के मुकाबले किस्मत आजमाई थी लेकिन तब यादव ने 'मोदी लहर' के बावजूद सीट जीत ली थी. आजमगढ़ में निरहुआ को 3,12,768 वोट (34.39 फीसदी), सपा के धर्मेंद्र को 3,04,089 (33.44 फीसदी) वोट मिले. बसपा प्रत्याशी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली को 2,66,210 (29.27 फीसदी) वोट मिले.
चुनाव पर्यवेक्षकों का कहना है कि चुनाव प्रचार में अखिलेश की अनुपस्थिति ने पार्टी की संभावनाओं को कमजोर कर दिया. हालांकि पार्टी के कई नेता इससे असहमत हैं. आजमगढ़ के मुबारकपुर विधानसभा क्षेत्र से सपा विधायक अखिलेश यादव ने कहा कि 'इस उपचुनाव में डबल इंजन वाली सरकार ने लोगों को हर तरफ से डरा दिया था. छोटे व्यापारियों, ग्राम प्रधानों, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के सदस्यों को अधिकारियों ने धमकाया. भाजपा ने चुनावों में व्यापक धांधली की. '
सपा के एक विधान पार्षद ने बताया कि ‘‘चूंकि बसपा ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में उतारा है, इसलिए मुसलमान भ्रमित हो गए और उनका झुकाव उधर हो गया. इसने भाजपा को एक बढ़त दी. अगर पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने पार्टी के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव के लिए प्रचार किया होता तो पार्टी निश्चित रूप से आजमगढ़ से जीत दर्ज करती. '' सपा विधान पार्षद आशुतोष सिन्हा ने कहा, 'जहां तक उप चुनाव में हार का सवाल है तो यह पूरी तरह से भाजपा और बसपा के बीच मौन सहमति के कारण था. उन्होंने दावा किया कि उप चुनाव का परिणाम 2024 के लोकसभा चुनावों का प्रतिबिंब नहीं है.
समाजवादी पार्टी (सपा) अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों के उपचुनाव में षड्यंत्र से जीत हासिल करने का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा कि इस पार्टी ने सत्ता की लालच में सभी लोकतांत्रिक मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया. यादव ने यहां एक बयान में आरोप लगाया कि उपचुनाव में भाजपा सरकार ने सत्ता का खुलकर दुरुपयोग किया और छल बल से जनमत को प्रभावित करने का षड्यंत्र किया है. भाजपा की सत्ता लोलुपता ने प्रदेश में सभी लोकतांत्रिक मान्यताओं को ध्वस्त कर दिया है.
पूर्व मुख्यमंत्री ने दावा करते हुए कहा, ‘‘रामपुर में जहां मुस्लिम क्षेत्र में 900 वोट थे वहां छह वोट पड़े और जहां 500 वोट थे वहां कुल एक वोट पड़ा. यह लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का मजाक नहीं तो क्या है? '' उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस जीत का दावा कर रहे हैं, उस तथाकथित जीत से जनता हतप्रभ है. सच तो यह है कि वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में जनता भाजपा के इस अहंकार को तोड़कर रख देगी.
एक रिपोर्ट के मुताबिक आजमगढ़ में सपा प्रमुख की अपनी बिरादरी (यादव) के मतों में बिखराव और अल्पसंख्यक समुदाय के एक बड़े वर्ग का बसपा उम्मीदवार शाह आलम के प्रति झुकाव ने भी चुनाव परिणाम को प्रभावित किया है. दूसरी तरफ अखिलेश यादव और उनकी पत्नी पूर्व सांसद डिंपल यादव के चुनाव प्रचार में न जाने से भी आजमगढ़ में पार्टी की स्थिति खराब हो गई. हाल के विधानसभा चुनाव में सपा ने आजमगढ़ जिले की सभी 10 सीटें जीत ली थी और भाजपा वहां अपना खाता भी खोल नहीं पाई थी.
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