फेस टाइम के दौरान तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान
नई दिल्ली:
एक रिपोर्टर के साथ 'फ़ेस टाइम' करते हुए तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान की जिस एक तस्वीर पर सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है, वह इसलिए हो रही है क्योंकि ख़ुद उन्होंने ही ट्विटर की तुलना 'हत्यारे के छुरे' से की थी, कहा था- वह ट्वीट-स्मीट नहीं करते और क़सम खाई थी कि देश से ट्विटर का नामोनिशान मिटा देंगे। उन्हें शक था कि 2013 में उनके ख़िलाफ़ विरोध में लोगों को एकजुट करने में सोशल मीडिया की अहम भूमिका थी। लेकिन वक्त पड़ने पर इसी सोशल मीडिया ने उनकी सरकार बचा ली। फेसबुक और ट्विटर पर मौजूद वीडियो स्ट्रीमिंग सर्विस ने आम लोगों के हाथ में वह ताकत दी है कि वे जहां खड़े हैं वहीं से लाइव प्रसारण कर सकते हैं। टर्की में यही हुआ।
तुर्की में तख़्ता पलट की कोशिश नाकाम होने के बाद जिस चीज़ पर सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है, वह है इसमें सोशल मीडिया की भूमिका। सीएनएन टर्क चैनल के रिपोर्टर से फ़ेस टाइम के ज़रिए एरडोआन ने देश को संबोधित किया। वक्त इतना नही था कि लाइव प्रसारण के लिए ओबी और कैमरे का इंतज़ार किया जाता। सरकारी टीवी स्टेशन टीआरटी पर क़ब्ज़ा कर कर देश भर में कर्फ़्यू का ऐलान और लोगों को घरों में रहने की चेतावनी जारी कर चुके थे। एक एक पल क़ीमती था और संदेश जनता तक पहुंचाना था। तख़्ता पलट की कोशिश के शुरुआती 20 मिनट बाद ही आईफ़ोन पर फ़ेस टाइम के साथ साथ एर्दोगान ने ट्वीट भी किया कि आम लोग सड़कों पर निकलें और इस तख़्ता पलट को नाकाम करें। हुआ भी वही। लोग हज़ारों की संख्या में सड़कों पर निकले, टैंकों के आगे लेट गए, गोलियों का सामना किया और लोकतांत्रिक तरीक़े से चुनी सरकार बचा ली।
फ़ेसबुक लाइव और ट्विटर के पेरिस्कोप टीवी के ज़रिए अंकारा और इस्तांबुल की सड़कों पर से आम लोग इस तख़्ता पलट की कोशिश और आम लोगों के इसके ख़िलाफ़ खडे होने को लगातार लाइव दिखाया। ना लाइव टीवी की ज़रूरत पड़ी और ना किसी और चीज़ की।
ट्विटर पर ही एर्दोगान के अलावा प्रधानमंत्री बिन अली यिलदरिम ने लोगों को बताया कि फ़ौज का सिर्फ एक हिस्सा इसमें शामिल है और सरकार कंट्रोल में है। विपक्ष ने भी सरकार के साथ खड़े होने का ऐलान इसी सोशल मीडिया पर किया। लोगों के सड़क पर उतरने और टैंकों पर चढ़कर विद्रोही सैनिकों की पिटाई तक और फिर उनके हाथ खड़े कर टैंक छोड़ने के दृश्यों ने जता दिया कि तख़्ता पलट की कोशिश किस तरह नाकाम रही है। सोशल मीडिया पर लगातार पोस्ट हो रही इन तस्वीरों ने न सिर्फ टर्की बल्कि पूरी दुनिया को रियल टाइम बेसिस पर हर घटनाक्रम से रुबरु रखा। कहते हैं कि सूचना में ताक़त होती है। विद्रोही सैनिक गुट के तख़्ता पलट के दावों पर ये सूचनाएं भारी पड़ी। दुविधा का दौर लंबा नहीं चला और एर्दोगान सत्ता बचाने में कामयाब रहे।
और बीसवीं सदी की इस सत्ता पलट की कोशिश को 21वीं सदी की टेक्नोलॉजी ने मात दे दी। कुल मिला कर सोशल मीडिया की भूमिका सरकार के समर्थन में खड़े उन सुरक्षाकर्मियों और पुलिस के कहीं ज़्यादा रही जिसने विद्रोहियों के पैर उखाड़ दिए।
तुर्की में तख़्ता पलट की कोशिश नाकाम होने के बाद जिस चीज़ पर सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है, वह है इसमें सोशल मीडिया की भूमिका। सीएनएन टर्क चैनल के रिपोर्टर से फ़ेस टाइम के ज़रिए एरडोआन ने देश को संबोधित किया। वक्त इतना नही था कि लाइव प्रसारण के लिए ओबी और कैमरे का इंतज़ार किया जाता। सरकारी टीवी स्टेशन टीआरटी पर क़ब्ज़ा कर कर देश भर में कर्फ़्यू का ऐलान और लोगों को घरों में रहने की चेतावनी जारी कर चुके थे। एक एक पल क़ीमती था और संदेश जनता तक पहुंचाना था। तख़्ता पलट की कोशिश के शुरुआती 20 मिनट बाद ही आईफ़ोन पर फ़ेस टाइम के साथ साथ एर्दोगान ने ट्वीट भी किया कि आम लोग सड़कों पर निकलें और इस तख़्ता पलट को नाकाम करें। हुआ भी वही। लोग हज़ारों की संख्या में सड़कों पर निकले, टैंकों के आगे लेट गए, गोलियों का सामना किया और लोकतांत्रिक तरीक़े से चुनी सरकार बचा ली।
फ़ेसबुक लाइव और ट्विटर के पेरिस्कोप टीवी के ज़रिए अंकारा और इस्तांबुल की सड़कों पर से आम लोग इस तख़्ता पलट की कोशिश और आम लोगों के इसके ख़िलाफ़ खडे होने को लगातार लाइव दिखाया। ना लाइव टीवी की ज़रूरत पड़ी और ना किसी और चीज़ की।
ट्विटर पर ही एर्दोगान के अलावा प्रधानमंत्री बिन अली यिलदरिम ने लोगों को बताया कि फ़ौज का सिर्फ एक हिस्सा इसमें शामिल है और सरकार कंट्रोल में है। विपक्ष ने भी सरकार के साथ खड़े होने का ऐलान इसी सोशल मीडिया पर किया। लोगों के सड़क पर उतरने और टैंकों पर चढ़कर विद्रोही सैनिकों की पिटाई तक और फिर उनके हाथ खड़े कर टैंक छोड़ने के दृश्यों ने जता दिया कि तख़्ता पलट की कोशिश किस तरह नाकाम रही है। सोशल मीडिया पर लगातार पोस्ट हो रही इन तस्वीरों ने न सिर्फ टर्की बल्कि पूरी दुनिया को रियल टाइम बेसिस पर हर घटनाक्रम से रुबरु रखा। कहते हैं कि सूचना में ताक़त होती है। विद्रोही सैनिक गुट के तख़्ता पलट के दावों पर ये सूचनाएं भारी पड़ी। दुविधा का दौर लंबा नहीं चला और एर्दोगान सत्ता बचाने में कामयाब रहे।
और बीसवीं सदी की इस सत्ता पलट की कोशिश को 21वीं सदी की टेक्नोलॉजी ने मात दे दी। कुल मिला कर सोशल मीडिया की भूमिका सरकार के समर्थन में खड़े उन सुरक्षाकर्मियों और पुलिस के कहीं ज़्यादा रही जिसने विद्रोहियों के पैर उखाड़ दिए।