
- ट्रंप ने टैरिफ के बाद, भारतीयों पर एक और बम फोड़ा है. एच-1बी वीजा की फीस एक लाख डॉलर कर दी है.
- ये चोट कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि 70 फीसदी एच-1बी वीजा भारतीयों को मिलते हैं.
- अब सवाल ये है कि क्या इतनी मोटी रकम खर्च करके कंपनियां भारतीयों को अमेरिका में नौकरी पर रखेंगी?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ के बाद, भारतीयों पर एक और स्ट्राइक की है. उन्होंने एच-1बी वीजा पर एक लाख डॉलर (करीब 88 लाख रुपये) की फीस थोप दी है. ये चोट कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि 70 फीसदी एच-1बी वीजा भारतीयों को मिलते हैं. अब सवाल ये है कि क्या इतनी मोटी रकम खर्च करके कंपनियां भारतीयों को अमेरिका में नौकरी पर रखेंगी? इसकी तगड़ी मार भारतीयों के अलावा अमेरिकी टेक सेक्टर पर भी पड़ने की आशंका जताई जा रही है. आइए ट्रंप के इस फैसले को 5 आसान सवाल-जवाब में समझते हैं.
सवाल - H-1B वीजा पर एक लाख डॉलर फीस लगाने का क्या मतलब है?
जवाब - अमेरिकी कंपनियां भारत जैसे देशों से एक्सपर्ट प्रोफेशनल्स को इसी वीजा के जरिए अमेरिका ले जाकर काम कराती हैं. एच-1बी वीजा 3 साल के लिए मिलता है, जिसे 3 साल और बढ़ाया जा सकता है. अमेरिका अभी हर साल 85 हजार एच-1बी वीजा बांटता है. इस वीजा पर अभी 1700 से 4500 डॉलर तक की फीस लगती थी, जिसे बढ़ाकर एक लाख डॉलर कर दिया गया है. इससे भारतीयों का ग्रीन कार्ड (नागरिकता) पाने का सपना और दूर हो सकता है. कंपनियां भारतीयों के लिए ग्रीन कार्ड स्पॉन्सर करने से भी पीछे हट सकती हैं.
सवाल - $100,000 फीस नए आवेदकों पर लगेगी या पुराने वीजा धारकों पर भी?
जवाब - ये फीस कर्मचारियों को नहीं, कंपनियों को देनी होगी. कंपनियां जिस भी कर्मचारी को H-1B वीजा दिलाना चाहेंगी, उस हर प्रोफेशनल के लिए ये फीस लगेगी. फीस हर साल देनी होगी, चाहे आप पहली बार वीजा ले रहे हों या उसे रिन्यू करवा रहे हों. मतलब जो भारतीय H-1B वीजा पर पहले से अमेरिका में हैं और उनका वीजा रिन्यू होना है, तब भी कंपनी को $100,000 चुकाने होंगे. अगर वीजा छह साल तक चलेगा तो कुल खर्च 6 लाख डॉलर तक जा सकता है.
सवाल - अमेरिका में काम कर रहे भारतीयों की नौकरी अब कितनी सेफ है?
जवाब - यह पूरी तरह उस कर्मचारी की वैल्यू पर निर्भर करेगा. अगर कंपनी को लगता है कि आप इतने कुशल हैं कि आपका काम कोई अमेरिकी नहीं कर सकता तो वह ये फीस दे सकती हैं. लेकिन कंपनियां एंट्री लेवल या मिड लेवल प्रोफेशनल्स पर इतना खर्च नहीं करना चाहेंगी. दरअसल, अधिकतर टेक कंपनियां ऐसे कर्मचारियों को एक लाख डॉलर से बहुत कम सैलरी देती हैं. ऐसे में वीजा पर ही एक लाख डॉलर सालाना खर्च करना कंपनियों पर बोझ बन सकता है.
सवाल - क्या बचने का भी कोई रास्ता है, वर्क फ्रॉम होम कितना कारगर?
जवाब - ट्रंप के इस फैसले को अदालत में चुनौती देने की तैयारी शुरू हो गई है. अगर कोर्ट भी इस फैसले को नहीं रोकता है, तब कंपनियों को नई स्ट्रैटिजी अपनानी होगी. कुछ एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि ट्रंप के इस फैसले से अमेरिका की टियर-1 टेक कंपनियों पर 150 से 500 मिलियन डॉलर तक का एक्स्ट्रा बोझ पड़ सकता है. उनकी कमाई 2-4 पर्सेंट तक घट सकती है. ऐसे में वह सिर्फ उन्हीं भारतीय कर्मचारियों को अमेरिका ले जाकर नौकरी करवाएंगी, जो इतने खर्च पर उन्हें ज्यादा फायदा पहुंचा सके. बाकी एंट्री और मिड लेवल के अधिकतर कर्मचारियों को भारत भेजकर वर्क फ्रॉम होम कराया जा सकता है.
सवाल - क्या ये अमेरिकी टेक सेक्टर के लिए खतरा बनेगा, भारत का क्या फायदा?
जवाब - कई एक्सपर्ट्स कहने लगे हैं कि ट्रंप का ये कदम अमेरिकी टेक सेक्टर के लिए आत्मघाती साबित हो सकता है. उन्हें विदेशी कुशल पेशेवरों के बजाय कम कुशलता वाले अमेरिकियों को नौकरी पर रखना पड़ेगा. उन्हें ट्रेंड करने पर मोटी रकम खर्चनी होगी. इसका सीधा असर टेक इंडस्ट्री में अमेरिका के नंबर वन के ताज पर पड़ेगा. दूसरी तरफ, भारत इस फैसले में अपना फायदा देख रहा है. जी20 के पूर्व शेरपा और नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत ने कहा है कि ये फैसला भारत के लिए Brain Gain बन सकता है. मतलब, अमेरिका से लौटने वाले उच्च कुशल भारतीयों को नौकरी पर रखकर भारतीय कंपनियां और स्टार्टअप्स टेक इनोवेशन को नई ऊंचाई तक ले जा सकती हैं.
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