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ट्रिपल तलाक पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला , ट्रायल कोर्ट में सबूतों के आधार पर तय होगा आरोप

हाई कोर्ट ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) कानून की धारा 3/4 के तहत जारी समन रद्द करने से इंकार कर दिया है.

ट्रिपल तलाक पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला , ट्रायल कोर्ट में सबूतों के आधार पर तय होगा आरोप
याची के खिलाफ केवल ट्रिपल तलाक के आरोप पर ही ट्रायल चलेगा.
नई दिल्ली:

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ट्रिपल तलाक(तलाक -ए -बिद्दत) को लेकर बड़ा फैसला दिया है. हाई कोर्ट ने कहा है कि तलाक ट्रिपल तलाक है या नहीं, तथ्य का विषय, ट्रायल कोर्ट में साक्ष्य लेकर तय होगा. दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अंतर्निहित शक्ति का इस्तेमाल कर दाखिल चार्जशीट या केस कार्यवाही रद्द नहीं की जा सकती. हाई कोर्ट ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) कानून की धारा 3/4 के तहत जारी समन रद्द करने से इंकार कर दिया है. हालांकि कोर्ट ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 494 एक पत्नी के रहते दूसरी शादी करने पर दंड के मामले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 198 अदालत को संज्ञान लेने से रोकती है. इसलिए इस धारा में जारी समन अवैध होने के नाते रद्द किया जाता है.

ट्रिपल तलाक के आरोप पर ही ट्रायल चलेगा

याची के खिलाफ केवल ट्रिपल तलाक के आरोप पर ही ट्रायल चलेगा. यह आदेश जस्टिस राजबीर सिंह ने थाना खोराबार, गोरखपुर के जान मोहम्मद की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है. याचिका पर अधिवक्ता सैयद वाजिद अली ने बहस की. इनका कहना था कि याची के खिलाफ ट्रिपल तलाक का केस नहीं बनता, क्योंकि उसने एक माह के अंतराल पर तलाक की तीन नोटिस देने के बाद तलाक दिया है जो तलाक -ए-बिद्दत नहीं है और 494 के अपराध पर कोर्ट को संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है. धारा 198 से वर्जित है, यदि पीड़िता ने शिकायत न की हो. पीड़िता ने दूसरी शादी की शिकायत नहीं की है इसलिए याची के खिलाफ दायर चार्जशीट समन और केस कार्यवाही रद्द की जाए.

किस स्थिति में रदद् होगी केस की कार्यवाही

सरकारी वकील का कहना था कि याची के बेटे सलमान खान ने भी तीन तलाक़ दिये जाने का बयान दिया है और शिकायतकर्ता के तीन तलाक़ देने के आरोप पर पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की है और अदालत ने उसपर संज्ञान भी लिया है. यह नहीं कह सकते कि प्रथमदृष्टया याची पर अपराध नहीं बनता. इसलिए याचिका खारिज की जाए. हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के भजन लाल केस सहित तमाम केसों का हवाला देते हुए कहा कि यदि प्रथमदृष्टया अपराध का खुलासा होता है तो हाई कोर्ट चार्जशीट, एफआईआर रद्द नहीं कर सकती, उसे केस के तथ्यो की जांच करने का अधिकार नहीं है. केवल असामान्य स्थिति में ही केस कार्यवाही रद्द की जा सकती है, जहां प्रथमदृष्टया अपराध का खुलासा नहीं हो रहा हो. कोर्ट ने धारा 494 की कार्यवाही रद्द कर दी है किन्तु कहा है कि धारा 3/4 डब्ल्यू एम एक्ट के तहत केस चलेगा.

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