
कल जब राष्ट्रपति भवन में एक इकहरे बदन वाला इंसान खड़ा हुआ तो सभी निगाह उसी पर जाकर ठिठक गई. बदन पर सदरी और सिर पर मुंडासा और लुंगी पहन जब एक शख्स लोगों के सामने आया तो पूरा राष्ट्रपति भवन तालियों की जोरदार गड़गड़ाहट से गूंज उठा. उन्हें देख मशहूर आयरिश राइटर की वो लाइनें याद गई, जिसमें उन्होंने कहा था कि कला जीवन की नकल नहीं करती, बल्कि जीवन कला की नकल करता है. कुछ ऐसा ही तब महसूस हुआ जब राष्ट्रपति पंडी राम मंडावी को पद्मश्री पुरुस्कार से नवाज रही थीं. इस दौरान जैसे ही पंडी राम मंडावी का नाम सभागार में लिया गया तो सबका ध्यान उन्हीं पर चला गया. उनका पहनावा इस शानदार कलाकार की सादगी को बयां कर रहा था. पंडी राम मंडावी जब सभागार में पद्मश्री लेने पहुंचे तो सबसे पहले उन्होंने सामने बैठे पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और जयशंकर समेत तमाम मौजूद लोगों को प्रणाम किया.
#WATCH | Delhi: Pandi Ram Mandavi receives the Padma Shri from President Droupadi Murmu, for his contribution to the field of arts- wood craft. pic.twitter.com/fes70VpFhr
— ANI (@ANI) May 27, 2025
पंडी राम मंडावी को किसलिए मिला पद्मश्री
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पंडी राम मंडावी को कला के क्षेत्र में उनके खास योगदान के लिए पद्मश्री से नावाजा. मंडावी मुरिया वुड कला में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं जो एक महत्वपूर्ण आदिवासी कला है. वे सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक बन गए, उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि कलाकारों की युवा पीढ़ी को अपने पूर्वजों की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए ज्ञान और साधन दोनों से लैस किया जाए. उन्होंने विभिन्न संग्रहालयों और इसी तरह के अन्य संस्थानों में कई प्रदर्शनी तैयारियों और प्रतिष्ठानों का सह-संचालन किया है.
- पद्मश्री से नवाजे गए छत्तीसगढ़ के पंडी राम मंडावी
- राज्य के नारायणपुर के रहने वाले हैं पंडी राम मंडावी
- गोंड मुरिया जनजाति से आते हैं पंडी राम मंडावी
- वाद्य यंत्र निर्माता और लकड़ी के नक्काशीकार
- गोंड लकड़ी शिल्प को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान
- बांस की सीटी ‘सुलूर' या ‘बस्तर की बांसुरी' बनाने के लिए प्रसिद्ध
कौन हैं राम मंडावी
पद्मश्री राम मंडावी नारायणपुर जिले के गोंड मुरिया जनजाति के नामी कलाकार हैं. उनकी उम्र 68 वर्ष हैं. वह गोंड मुरिया जनजाति से ताल्लुक रखते हैं. जो कि पिछले कई दशकों से बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के साथ-साथ उसे नई पहचान भी दिला रहे हैं. उनकी विशेष पहचान बांस की बस्तर बांसुरी, जिसे ‘सुलुर' कहा जाता है, उसके लिए मिली. साथ ही उन्होंने लकड़ी के पैनलों पर उभरे हुए चित्र, मूर्तियां और अन्य शिल्पकृतियों के माध्यम से अपनी कला को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया. पंडी राम मंडावी ने 12 वर्ष की आयु में अपने पूर्वजों से यह कला सीखी और इसको आगे बढ़ाया ताकि उनकी ये विरासत जिंदा रहे. मंडावी अपने समर्पण व कौशल के दम पर छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. दुनियाभर के कई देशों में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया है. मंडावी का जीवन गरीबी में बीता है.
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