हर इंसान एक जैसा नहीं होता है, जब किसी शख्स को लगता है कि वह जैसा पैदा हुआ है, वो वैसा नहीं है, तो दुविधा में पड़ जाता है. ऐसे लोग अपने जन्म के समय निर्धारित लिंग को लेकर लगातार परेशानी का सामना करते रहते हैं, क्योंकि यह व्यक्ति की पहचान से मेल नहीं खाता है. मेडिकल भाषा में इसे जेंडर डिस्फोरिया कहा जाता है. हमारा समाज और सरकार भी अब ऐसे लोगों को समझने लगे हैं. डॉक्टर्स जहां इनकी मेडिकली मदद करते हैं, वहीं सरकार अब ऐसे लोगों को सर्टिफिकेट भी देने लगी है, जिसके कई फायदे होते हैं. एक सर्जरी और सरकार द्वारा दिये जाने वाले सर्टिफिकेट के बाद ऐसे लोग वो जिंदगी जी पाते हैं, जैसा वह खुद को भीतर से महसूस करते हैं.
जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी कराने वाले एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति को हाल ही में समाज कल्याण विभाग द्वारा ट्रांसजेंडर (पुरुष) प्रमाण पत्र जारी किया गया था, जो गाजियाबाद जिले में लिंग-परिवर्तन सर्जरी के बाद जारी किया जाने वाला पहला सर्टिफिकेट है. नई दिल्ली के गंगा राम अस्पताल में प्लास्टिक और कॉस्मेटिक सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार और उपाध्यक्ष डॉ भीम एस नंदा पिछले 14 साल से ट्रांसजेंडर्स की सर्जरी कर रहे हैं. वह बताते हैं कि अब यह सर्जरी आम हो गई है.
ट्रांसजेंडर क्यों करवाते हैं जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी
डॉक्टर्स बताते हैं कि जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी एक ऐसी प्रक्रिया है, जो उन लोगों के लिए की जाती है जो जेंडर डिस्फोरिया से पीड़ित होते हैं. जब लोग अपने जन्म के समय निर्धारित लिंग को लेकर लगातार परेशानी का सामना करते हैं, क्योंकि यह व्यक्ति की पहचान से मेल नहीं खाता है, तो इसे जेंडर डिस्फोरिया कहा जाता है. ऐसे लोगों सर्जरी की मदद लेते हैं. सर्जरी इसलिए कराई जाती है, ताकि उनका भौतिक शरीर उनकी लिंग पहचान से मेल खा सके. इससे अवसाद और चिंता के लक्षणों में उल्लेखनीय कमी होती है.
जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी में कितना आता है खर्च
गंगाराम के डॉ भीम एस नंदा बताते हैं कि अगर टॉप सर्जरी की कीमत 1,20,000 से 1,30,000 के बीच हो सकती है. वहीं, इम्प्लांट का विकल्प चुनने वालों के लिए यह 4 से 5 लाख रुपये तक बढ़ जाती है. ट्रांस पुरुषों के लिए जो सिर्फ़ प्राइवेट पार्ट हटाने का विकल्प चुनते हैं, कीमत 50-60 हज़ार के बीच होती है. हालांकि, डॉक्टर्स बताते हैं कि इम्प्लांट बहुत कम लोग कराते हैं, क्योंकि 100 प्रतिशत सफल नहीं होती है. यह ट्रांसजेंडर को पहले ही बता दिया जाता है. ऐसे में ज्यादातर ट्रांसजेंडर जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी ही कराते हैं.
सरकार क्यों देती है ट्रांसजेंडर को सर्टिफिकेट
सरकार ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2020 के तहत सर्टिफिकेट जारी करती है. ये सर्टिफिकेट इसलिए दिया जाता है, क्योंकि वह शख्स अपनी 'असली' पहचान के साथ समाज में जीवन व्यतीत कर सके. जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) के लिए सर्टिफिकेट हासिल करने की प्रक्रिया देश और राज्य के हिसाब से अलग-अलग होती है. इसके लिए ट्रांसजेंडर को सबसे पहले, एक ऐसे डॉक्टर या मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से सलाह लेनी होती है, जो लिंग डिस्फोरिया और एसआरएस में माहिर हों. वे ट्रांसजेंडर की जांच करेंगे और सर्टिफिकेट हासिल करने के लिए आवश्यक दिशानिर्देश देंगे. ट्रांसजेंड को आमतौर पर हार्मोन थेरेपी (एचआरटी) से गुजरना होता है, जिसमें कुछ समय तक क्रॉस-सेक्स हार्मोन लेना शामिल है. एचआरटी का समय डॉक्टर द्वारा ट्रांसजेंडर के व्यक्तिगत मामले के आधार पर तय किया जाता है. सफल सर्जरी के बाद, ट्रांसजेंडर को अपने डॉक्टर से एक सर्टिफिकेट मिलता है, जो यह प्रमाणित करता है कि ट्रांसजेंडर ने एसआरएस करवाया है.
सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी के फायदे
जब कोई व्यक्ति अपने लिंग के अनुरूप शारीरिक विशेषताओं को प्राप्त करता है, तो इससे उनकी आत्म-स्वीकृति और आत्मसम्मान में वृद्धि हो सकती है. एसआरएस के बाद, कई ट्रांसजेंडर सामाजिक रूप से अधिक सक्रिय हो जाते हैं और अपने जीवन में अधिक खुलेपन से जीने लगते हैं. एसआरएस के बाद, कई लोग अपने शरीर में अधिक सहज और आत्मविश्वास महसूस करते हैं, जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है. लिंग डिस्फोरिया एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जिसके कारण व्यक्ति को अत्यधिक संकट और परेशानी हो सकती है, एसआरएस से ये दूर हो जाती है. एसआरएस इस स्थिति को कम करने और व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार करने में मदद कर सकती है. कई रिसर्च में सामने आया है कि एसआरएस करवाने वाले ट्रांसजेंडर लोगों में लिंग डिस्फोरिया, अवसाद और चिंता के लक्षणों में काफी कमी होती है. वहीं, एसआरएस से पारिवारिक रिश्तों, दोस्ती और रोमांटिक रिश्तों में सुधार हो सकता है. जब कोई व्यक्ति अपने लिंग के अनुरूप जीता है, तो उनके प्रियजन उन्हें बेहतर ढंग से समझ और स्वीकार कर सकते हैं. जब वे अपने लिंग के अनुरूप दिखते हैं और महसूस करते हैं, तो वे सामाजिक गतिविधियों में शामिल होने और दूसरों से जुड़ने में अधिक सहज महसूस कर सकते हैं.
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