ओडिशा के श्रवण कुमार या कहें कार्तिक कुमार.
नई दिल्ली:
भारत में न्याय पाना सिर्फ न्याय व्यवस्था में भरोसा की बात नहीं है इस भरोसे के नाम पर लोग वर्षों से अदालत में चक्कर लगा रहे हैं. मुकदमेबाजी का एक ऐसा खेल है कि कोई भी किसी को फंसा सकता है. जब तक इन्साफ़ मिलता तब तक न्याय पाने वाले का सबकुछ बर्बाद हो चुका होता है. पुलिस की जांच व्यवस्था का हाल किसी से छिपा नहीं है. आज खुद को बेकसूर मानने वाला यह कार्तिक सिंह है. कई सालों से अदालत के चक्कर लगा रहा है. कुछ दिन पहले ऐसा हुआ जब कार्तिक सिंह अपने बूढ़े माँ-बाप को बहंगी (कांवड़) ने बैठाकर 40 किलोमीटर सफर करते हुए ज़िला अदालत पहुंचा. कई लोगों को यह विश्वास नहीं हो रहा होगा लेकिन यह सच है. कार्तिक 40 किलोमीटर तक ऐसा चलता गया, लेकिन किसी ने भी कार्तिक को गाड़ी में बैठाकर घर तक नहीं छोड़ा. फिर भी कार्तिक इसके लिए दुखी नहीं है.
ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के मोरदा ब्लॉक के मोहनपुर गांव का रहने वाला है कार्तिक. गांव की झोपड़ी में रहने वाले कार्तिक की ज़िंदगी माता-पिता में बसती है. कार्तिक सिंह का कहना है कि 2009 में एक झूठे केस में उसे फंसाया गया और आठ साल से वो कचहरी के चक्कर लगा रहा है, लेकिन अब तक उसे न्याय नहीं मिल पाया है. हर बार कार्तिक 40 किलोमीटर सफर करते हुए ज़िला अदालत पहुंचता है. इस बार जब कार्तिक को लगा कि वह अपने बूढ़े माता-पिता को अकेला नहीं छोड़ सकता है. तब वो उनको साथ लेकर कोर्ट के लिए निकल पड़ा. आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से कार्तिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल नहीं कर पाया. कार्तिक कहना है कि कुछ भी हो जाए वो अपने माता-पिता को नहीं छोड़ सकता है.
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इन 9 सालों में कार्तिक के लिए बहुत कुछ बदल गया. गांव में जो उसके दोस्त हुआ करते थे आज उसे पागल कहते हैं. केस की वजह से न कार्तिक कोई काम कर रहा है न उसे कोई नौकरी दे रहा है. कार्तिक कलेक्टर से लेकर कई सरकारी अफसरों के पास नौकरी मांगने तो गया, लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ. कार्तिक अब शादी नहीं करना चाहता है बल्कि अपने बूढ़े माँ-बाप की सेवा करना चाहता है.
VIDEO: खास ट्रेन
कुछ गांव के लोग भी मानते हैं कि कार्तिक को झूठे केस में फंसाया गया है. गांव के लोगों का कहना है कि कार्तिक पढ़ा लिखा और एक अच्छा इंसान है और फ़र्ज़ी केस की वजह से उसका भविष्य अंधकार में हैं. गांव वालों का कहना है कि कार्तिक मजदूरी करके जो कमाता है उसको अपने माँ-बाप के लिए खर्च करता है.
ओडिशा के मयूरभंज ज़िले के मोरदा ब्लॉक के मोहनपुर गांव का रहने वाला है कार्तिक. गांव की झोपड़ी में रहने वाले कार्तिक की ज़िंदगी माता-पिता में बसती है. कार्तिक सिंह का कहना है कि 2009 में एक झूठे केस में उसे फंसाया गया और आठ साल से वो कचहरी के चक्कर लगा रहा है, लेकिन अब तक उसे न्याय नहीं मिल पाया है. हर बार कार्तिक 40 किलोमीटर सफर करते हुए ज़िला अदालत पहुंचता है. इस बार जब कार्तिक को लगा कि वह अपने बूढ़े माता-पिता को अकेला नहीं छोड़ सकता है. तब वो उनको साथ लेकर कोर्ट के लिए निकल पड़ा. आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से कार्तिक पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल नहीं कर पाया. कार्तिक कहना है कि कुछ भी हो जाए वो अपने माता-पिता को नहीं छोड़ सकता है.
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इन 9 सालों में कार्तिक के लिए बहुत कुछ बदल गया. गांव में जो उसके दोस्त हुआ करते थे आज उसे पागल कहते हैं. केस की वजह से न कार्तिक कोई काम कर रहा है न उसे कोई नौकरी दे रहा है. कार्तिक कलेक्टर से लेकर कई सरकारी अफसरों के पास नौकरी मांगने तो गया, लेकिन इसका कोई फ़ायदा नहीं हुआ. कार्तिक अब शादी नहीं करना चाहता है बल्कि अपने बूढ़े माँ-बाप की सेवा करना चाहता है.
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कुछ गांव के लोग भी मानते हैं कि कार्तिक को झूठे केस में फंसाया गया है. गांव के लोगों का कहना है कि कार्तिक पढ़ा लिखा और एक अच्छा इंसान है और फ़र्ज़ी केस की वजह से उसका भविष्य अंधकार में हैं. गांव वालों का कहना है कि कार्तिक मजदूरी करके जो कमाता है उसको अपने माँ-बाप के लिए खर्च करता है.
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