उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि जांच एजेंसियों को आपराधिक मामलों में आरोप पत्र दाखिल करने के लिए प्रदान किया गया समय विस्तार महज ‘‘औपचारिकता'' नहीं है, क्योंकि यह निर्धारित अवधि में जांच पूरी नहीं होने के कारण दोषियों को स्वत: जमानत के उनके अधिकार से वंचित करता है.
शीर्ष अदालत ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में गुजरात उच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसके द्वारा उसने एक आपराधिक मामले में आरोपियों के बारे में जांच पूरी करने की अवधि 90 दिन से बढ़ाकर 180 दिन करने के एक स्थानीय अदालत के फैसले को बरकरार रखा था. शीर्ष अदालत ने विचाराधीन कैदियों को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया.
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 के तहत ऐसी स्थिति में किसी आरोपी को स्वत: जमानत दिये जाने का प्रावधान है, यदि जांच एजेंसी जांच को 60 या 90 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर पूरी करके सक्षम अदालत में आरोपपत्र दायर करने में विफल रहती है.
गुजरात आतंकवाद और संगठित अपराध नियंत्रण कानून, 2015 जैसे कुछ विशेष कानून अभियोजन एजेंसियों को जघन्य अपराध के मामलों में आरोपियों को स्वत: जमानत से इनकार करते हुए 180 दिनों की अवधि तक आरोपपत्र दाखिल करने के लिए समय बढ़ाने का अनुरोध करने की अनुमति देते हैं.
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस ओका की पीठ ने कहा, ‘‘समय बढ़ाने की अनुमति देने का तार्किक और कानूनी परिणाम आरोपियों को स्वत: जमानत का दावा करने के लिए उपलब्ध अपरिहार्य अधिकार से वंचित करना है.'' फैसले में कहा गया है कि समय विस्तार प्रदान किया जाना आरोपियों के स्वत: जमानत पाने के अधिकार को छीन लेता है, जो कि अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीप्रदत्त मौलिक अधिकारों से आंतरिक रूप से जुड़ा हुआ है.
न्यायमूर्ति रस्तोगी ने फैसले में लिखा है, ‘‘अदालत के समक्ष या तो प्रत्यक्ष रूप से या डिजिटल रूप से आरोपियों को हाजिर करने में विफलता और उसे यह सूचित करने में विफलता कि लोक अभियोजक द्वारा समय विस्तार के लिए दाखिल अर्जी पर विचार किया जा रहा है, केवल प्रक्रियात्मक अनियमितता नहीं है. यह सरासर अवैध कृत्य है जो अनुच्छेद 21 के तहत आरोपियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है.''
उच्च न्यायालय और निचली अदालत के फैसलों को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘समय का विस्तार महज एक औपचारिकता नहीं है. लोक अभियोजक को रिपोर्ट/विस्तार के लिए अर्जी देने से पहले इस पर विचार करना पड़ता है.''
पीठ ने जिगर उर्फ जिमी प्रवीणचंद्र और अन्य सह-आरोपियों की अर्जी को स्वीकार कर लिया. आरोपियों के खिलाफ गुजरात के जामनगर सिटी ‘ए' डिवीजन पुलिस स्टेशन में गुजरात आतंकवाद नियंत्रण और संगठित अपराध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था. प्राथमिकी 15 अक्टूबर, 2020 को दर्ज की गई थी और आरोपियों को अलग-अलग तारीखों में गिरफ्तार किया गया था.
लोक अभियोजक द्वारा जांच को पूरा करने के लिए 180 दिनों तक के समय के विस्तार का अनुरोध करते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी और 180 दिनों तक समय बढ़ाने की प्रार्थना को विशेष अदालत द्वारा उसी दिन अनुमति दी गई थी जिस दिन अर्जी दायर की गई थी.
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