अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रामचंद्र सिरास (फाइल फोटो)
शुक्रवार को हंसल मेहता की फिल्म 'अलीगढ़' रिलीज़ हुई है जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के प्रोफेसर श्रीनिवास रामचंद्र सिरास के जीवन से जुडी एक घटना पर आधारित है। आठ फरवरी 2010 को कुछ पत्रकार स्टिंग ऑपरेशन करते हुए प्रोफेसर सिरास के कमरे में घुस आए थे और उन्हें एक रिक्शा चालक के साथ समलैंगिक संबंध बनाते हुए कैमरे में कैद कर लिया था। इसके बाद ज्यादातर शांत और अकेले रहने वाले सिरास के समलैंगिक होने की ख़बर यूनिवर्सिटी में फैल गई। इसके बाद का वक्त उनके लिए काफी ज़िल्लत भरा रहा, उन्हें यूनिवर्सिटी कैंपस के साथ-साथ अपनी प्रोफेसरशिप से भी हाथ धोना पड़ा। इस घटना ने देशभर के मीडिया का ध्यान खींचा था। किसी के निजी जीवन में इस तरह के अनचाहे हस्तक्षेप पर सवाल भी खड़े किए गए और घटना के चंद महीनों बाद प्रोफेसर की रहस्यमय स्थिति में मौत हो गई।
8 फरवरी को अपने साथ हुए इस हादसे के कुछ ही दिन बाद प्रोफेसर सिरास ने NDTV से बातचीत में अपना पक्ष सामने रखा था। सिरास ने कहा था कि 'इस घटना के बाद जब मैं सड़क पर, कॉलोनी में कहीं भी जाता हूं तो सब अजीब तरीके से देखते हैं। एक महिला डॉक्टर के पास मैं हमेशा दवाई लेने और बीपी टेस्ट के लिए जाता था। उस दिन के बाद जब मैं बीपी के लिए उसके पास गया तो उसने कहा - मशीन ख़राब है..।'
'छह दिन में घर खाली करो'
इस हादसे ने सिरास के जीवन को हिलाकर रख दिया था। हालांकि यूनिवर्सिटी में उनके दोस्त और कुछ साथियों ने उन्हें हिम्मत दी लेकिन मोटे तौर पर एएमयू में उनके खिलाफ माहौल बनने लगा था और उनसे मॉडर्न इंडियन लैंग्वेजेज़ विभाग की चेयरमैनशिप भी छीन ली गई। एएमयू में मराठी भाषा पढ़ाने वाले सिरास ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था 'मैं अपनी यूनिवर्सिटी से प्यार करता हूं, पहले भी करता था और आगे भी करता रहूंगा लेकिन इन लोगों ने मुझसे लव करना छोड़ दिया है क्योंकि मैं 'गे' हूं।'
अपने निष्कासन पर बात करते हुए सिरास ने कहा था कि वह इसके खिलाफ कोर्ट जाएंगे। उन्होंने माना था कि यह वक्त उनके लिए आसान नहीं है क्योंकि प्रशासन ने उन्हें छह दिन में घर खाली करने के लिए कहा था और वह बहुत ज्यादा अपमानित महसूस कर रहे थे। 64 साल के सिरास ने अपनी बातचीत में कहा था कि वह आने वाले वक्त के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं। उन्हें लगता था कि यह मुश्किल दौर गुज़र जाएगा और बहुत जल्द लोग भूल जाएंगे कि वह समलैंगिक हैं।
सिरास ने अपने सस्पेंशन को कोर्ट में चुनौती दी और घटना के दो महीने बाद अप्रैल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रोफेसर के हक़ में फैसला सुनाया। उन्हें प्रोफेसरशिप वापिस भी मिल गई। इसके बाद एक बार फिर NDTV से बातचीत में सिरास ने कहा था कि उन्हें गलत तरीके से लोगों ने जज किया। सिरास बोले 'मैं वही आदमी हूं, वही पर्सनैलिटी है, वही क्वॉलिटी हैं, मैं बदला नहीं हूं।' सिरास ने यूनिवर्सिटी लौटने पर खुशी जताते हुए कहा था कि उन्हें यह बताने में कोई दिक्कत नहीं है कि वह गे हैं। इस फैसले के 6 दिन बाद 7 अप्रैल 2010 को रहस्यमय हालातों में सिरास का शव उनके अपार्टमेंट में मिला।
2010 में प्रोफेसर सिरास से हुई बातचीत को देखने के लिए यहां क्लिक करें।
8 फरवरी को अपने साथ हुए इस हादसे के कुछ ही दिन बाद प्रोफेसर सिरास ने NDTV से बातचीत में अपना पक्ष सामने रखा था। सिरास ने कहा था कि 'इस घटना के बाद जब मैं सड़क पर, कॉलोनी में कहीं भी जाता हूं तो सब अजीब तरीके से देखते हैं। एक महिला डॉक्टर के पास मैं हमेशा दवाई लेने और बीपी टेस्ट के लिए जाता था। उस दिन के बाद जब मैं बीपी के लिए उसके पास गया तो उसने कहा - मशीन ख़राब है..।'
'छह दिन में घर खाली करो'
इस हादसे ने सिरास के जीवन को हिलाकर रख दिया था। हालांकि यूनिवर्सिटी में उनके दोस्त और कुछ साथियों ने उन्हें हिम्मत दी लेकिन मोटे तौर पर एएमयू में उनके खिलाफ माहौल बनने लगा था और उनसे मॉडर्न इंडियन लैंग्वेजेज़ विभाग की चेयरमैनशिप भी छीन ली गई। एएमयू में मराठी भाषा पढ़ाने वाले सिरास ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था 'मैं अपनी यूनिवर्सिटी से प्यार करता हूं, पहले भी करता था और आगे भी करता रहूंगा लेकिन इन लोगों ने मुझसे लव करना छोड़ दिया है क्योंकि मैं 'गे' हूं।'
मनोज वाजपेयी ने 'अलीगढ़' में प्रोफेसर सिरास का किरदार निभाया है
अपने निष्कासन पर बात करते हुए सिरास ने कहा था कि वह इसके खिलाफ कोर्ट जाएंगे। उन्होंने माना था कि यह वक्त उनके लिए आसान नहीं है क्योंकि प्रशासन ने उन्हें छह दिन में घर खाली करने के लिए कहा था और वह बहुत ज्यादा अपमानित महसूस कर रहे थे। 64 साल के सिरास ने अपनी बातचीत में कहा था कि वह आने वाले वक्त के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं। उन्हें लगता था कि यह मुश्किल दौर गुज़र जाएगा और बहुत जल्द लोग भूल जाएंगे कि वह समलैंगिक हैं।
सिरास ने अपने सस्पेंशन को कोर्ट में चुनौती दी और घटना के दो महीने बाद अप्रैल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रोफेसर के हक़ में फैसला सुनाया। उन्हें प्रोफेसरशिप वापिस भी मिल गई। इसके बाद एक बार फिर NDTV से बातचीत में सिरास ने कहा था कि उन्हें गलत तरीके से लोगों ने जज किया। सिरास बोले 'मैं वही आदमी हूं, वही पर्सनैलिटी है, वही क्वॉलिटी हैं, मैं बदला नहीं हूं।' सिरास ने यूनिवर्सिटी लौटने पर खुशी जताते हुए कहा था कि उन्हें यह बताने में कोई दिक्कत नहीं है कि वह गे हैं। इस फैसले के 6 दिन बाद 7 अप्रैल 2010 को रहस्यमय हालातों में सिरास का शव उनके अपार्टमेंट में मिला।
2010 में प्रोफेसर सिरास से हुई बातचीत को देखने के लिए यहां क्लिक करें।
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अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, प्रोफेसर रामचंद्र सिरास, समलैंगिक कानून, मनोज वाजपेयी, Professor Ramchandra Siras, Homosexuality, Manoj Bajpai