आठवां थिएटर ओलम्पिक शुरू, 8 अप्रैल तक देश के 17 शहरों में होगा आयोजन
नई दिल्ली:
लालकिले के परिसर में शनिवार को आठवें थिएटर ओलम्पिक का विधिवत उद्घाटन हुआ. इसके लिए लालकिले की प्राचीर के आगे एक अस्थाई मंच बनाया गया था जिस पर लालकिले का ही मॉडल बनाया गया था. इससे पहले 2016 में सातवां थिएटर ओलम्पिक पोलैंड में आयोजित हुआ था. पोलैंड के निर्देशक ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय को आठवें ओलंपिक का बैटन औपचारिक रूप से सौंपा. उसके बाद उपराष्ट्रपति एम. वैंकैयानायडू ने भरत मुनि के नाट्य शास्त्र में वर्णित परम्परा के अनुसार जर्जर ध्वज की मंच पर स्थापना की और नगाड़ों पर थाप दिया. इसके बाद आठवें थिएटर ओलम्पिक की विधिवत शुरूआत की घोषणा की जो 17 फरवरी से लेकर 8 अप्रैल तक दिल्ली के अलावा 17 शहरों में आयोजित होगा.
समारोह के मुख्य अतिथि थे उपराष्ट्रपति एम. वैंकेयानायडू ने अपने अपेक्षाकृत लंबे भाषण में भारत की प्राचीन नाट्य परंपराओं, भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र, अभिनव गुप्त आदि के साथ साथ ग्रीक नाट्य परम्परा से डायोनिसस, और प्रख्यात नाटककारों का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि आर्थिक समृद्धि से भी अधिक जरूरी है आत्मिक समृद्धि जो कला और रंगमंच से मनुष्य हासिल कर सकता है. संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने एक बार फिर रंगमंच की सामाजिक भूमिका का उल्लेख किया जिसका उपयोग करके व्यापक परिवर्तन लाया जा सकता है. इस आयोजन के लिए उन्होंने मंच से ही एनएसडी के निदेशक वामन केंद्रे की सराहना की.
वामन केंद्रे ने ओलम्पिक्स आयोजन का उद्देश्य बताते हुआ कहा कि उन्नीस साल भारत रंग महोत्सव के आयोजन के बाद लगा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमें एक कदम और बढ़ाना चाहिए जहां भारत की नाटक की गहनता, चिंतन, विविधता, विमर्श औऱ सारी शैलियां स्थापित होंगी तभी हम दुनिया का ध्यान भारत की तरफ खींच सकते हैं. केंद्रे ने कहा कि भारत के थिएटर को विश्व पटल प्रोजेक्ट और प्रोमोट करने और मेनस्ट्रीम इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का हिस्सा बनाने के लिए ऐसे किसी आयोजन की जरूरत थी. ओलम्पिक समिति के अध्यक्ष ग्रीक निर्देशक थिएडोर्स टेरेजोपोलिस ने भी अपने संक्षिप्त भाषा में यह उल्लेख किया कि ओलम्पिक का यह मंच विश्व की विविध रंगमंच शैलियों को एक मंच पर एकत्र करने का मौका देता है. एनएसडी के कार्यकारी अध्यक्ष अर्जुन देव चारण ने अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया. समारोह का संचालन संचालन थिएटर और सिनेमा के चर्चित अभिनेता हिमानी शिवपुरी और सचिन खेड़ेकर ने किया. सचिन खेड़ेकर ने आयोजन के लिए पीएम नरेंद्र मोदी का संदेश भी पढ़ा.
औपचारिक उद्घाटन के बाद संगीतमय कार्यक्रम गीत रंग की प्रस्तुति हुई जिसमें भारतीय संगीत और रंगमंच में मौजूद विभिन्न भाषाओं की, शैलियों के रंग संगीत की झलक पेश की गई. इसकी शुरुआत हुई बीवी कारन्त की संगीत रचना गणेश वंदना से जिसे कन्नड़ की ख्यात रंग निर्देशिका बी जयश्री ने अपनी टीम के साथ प्रस्तुत क़िया. हबीब तनवीर निर्देशित प्रस्तुति ‘दुश्मन’ का गीत ‘नाव भी है तैयार ओ साथी...’, शंकर शैलेन्द्र का लिखा और सलिल चौधरी का कम्पोज किया इप्टा का ‘गीत तु जिन्दा है..’, कमल तिवारी का संगीतबद्ध कर्मावाली का सुफी गीत, और उषा बनर्जी का संगीतबद्ध ‘सैंया भया कोतवाल’ की लावणी की प्रस्तुति हुई. बंगाल की लोकगायन शैली बाउल और महाराष्ट्र की शैली भारूड़ को भी इस प्रस्तुति का हिस्सा बनाया गया ता. बी. जयश्री का गायन प्रस्तुति का सबसे उल्लेखनीय पक्ष था. कर्नाटक रंग संगीत के गायन में इनकी ऊर्जा देखने और सुनने लायक थी.
उद्घाटन समारोह में लगभग ढाई हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई थी लेकिन प्रचार प्रसार के अभाव और प्रवेश की दिक्कतों के कारण आयोजन में अपेक्षित भीड़ नहीं थी. देखना यही है कि अगले पचास दिनों में यह ओलम्पिक दिल्ली के दर्शकों को खींच पाता है या नहीं क्योंकि दर्शकों तक आयोजन की चर्चा को पहुंचाने की व्यापक कवायद नहीं की गई है. और समारोह का आगाज़ भले हो गया हो लेकिन मंडी हाउस में स्थित राष्ट्रीय नाट्य परिसर में इसकी तैयारियां अभी चल ही रही है.
समारोह के मुख्य अतिथि थे उपराष्ट्रपति एम. वैंकेयानायडू ने अपने अपेक्षाकृत लंबे भाषण में भारत की प्राचीन नाट्य परंपराओं, भरत मुनि द्वारा रचित नाट्यशास्त्र, अभिनव गुप्त आदि के साथ साथ ग्रीक नाट्य परम्परा से डायोनिसस, और प्रख्यात नाटककारों का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि आर्थिक समृद्धि से भी अधिक जरूरी है आत्मिक समृद्धि जो कला और रंगमंच से मनुष्य हासिल कर सकता है. संस्कृति मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने एक बार फिर रंगमंच की सामाजिक भूमिका का उल्लेख किया जिसका उपयोग करके व्यापक परिवर्तन लाया जा सकता है. इस आयोजन के लिए उन्होंने मंच से ही एनएसडी के निदेशक वामन केंद्रे की सराहना की.
वामन केंद्रे ने ओलम्पिक्स आयोजन का उद्देश्य बताते हुआ कहा कि उन्नीस साल भारत रंग महोत्सव के आयोजन के बाद लगा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमें एक कदम और बढ़ाना चाहिए जहां भारत की नाटक की गहनता, चिंतन, विविधता, विमर्श औऱ सारी शैलियां स्थापित होंगी तभी हम दुनिया का ध्यान भारत की तरफ खींच सकते हैं. केंद्रे ने कहा कि भारत के थिएटर को विश्व पटल प्रोजेक्ट और प्रोमोट करने और मेनस्ट्रीम इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का हिस्सा बनाने के लिए ऐसे किसी आयोजन की जरूरत थी. ओलम्पिक समिति के अध्यक्ष ग्रीक निर्देशक थिएडोर्स टेरेजोपोलिस ने भी अपने संक्षिप्त भाषा में यह उल्लेख किया कि ओलम्पिक का यह मंच विश्व की विविध रंगमंच शैलियों को एक मंच पर एकत्र करने का मौका देता है. एनएसडी के कार्यकारी अध्यक्ष अर्जुन देव चारण ने अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया. समारोह का संचालन संचालन थिएटर और सिनेमा के चर्चित अभिनेता हिमानी शिवपुरी और सचिन खेड़ेकर ने किया. सचिन खेड़ेकर ने आयोजन के लिए पीएम नरेंद्र मोदी का संदेश भी पढ़ा.
औपचारिक उद्घाटन के बाद संगीतमय कार्यक्रम गीत रंग की प्रस्तुति हुई जिसमें भारतीय संगीत और रंगमंच में मौजूद विभिन्न भाषाओं की, शैलियों के रंग संगीत की झलक पेश की गई. इसकी शुरुआत हुई बीवी कारन्त की संगीत रचना गणेश वंदना से जिसे कन्नड़ की ख्यात रंग निर्देशिका बी जयश्री ने अपनी टीम के साथ प्रस्तुत क़िया. हबीब तनवीर निर्देशित प्रस्तुति ‘दुश्मन’ का गीत ‘नाव भी है तैयार ओ साथी...’, शंकर शैलेन्द्र का लिखा और सलिल चौधरी का कम्पोज किया इप्टा का ‘गीत तु जिन्दा है..’, कमल तिवारी का संगीतबद्ध कर्मावाली का सुफी गीत, और उषा बनर्जी का संगीतबद्ध ‘सैंया भया कोतवाल’ की लावणी की प्रस्तुति हुई. बंगाल की लोकगायन शैली बाउल और महाराष्ट्र की शैली भारूड़ को भी इस प्रस्तुति का हिस्सा बनाया गया ता. बी. जयश्री का गायन प्रस्तुति का सबसे उल्लेखनीय पक्ष था. कर्नाटक रंग संगीत के गायन में इनकी ऊर्जा देखने और सुनने लायक थी.
उद्घाटन समारोह में लगभग ढाई हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था की गई थी लेकिन प्रचार प्रसार के अभाव और प्रवेश की दिक्कतों के कारण आयोजन में अपेक्षित भीड़ नहीं थी. देखना यही है कि अगले पचास दिनों में यह ओलम्पिक दिल्ली के दर्शकों को खींच पाता है या नहीं क्योंकि दर्शकों तक आयोजन की चर्चा को पहुंचाने की व्यापक कवायद नहीं की गई है. और समारोह का आगाज़ भले हो गया हो लेकिन मंडी हाउस में स्थित राष्ट्रीय नाट्य परिसर में इसकी तैयारियां अभी चल ही रही है.
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