प्रतीकात्मक फोटो.
नई दिल्ली:
देश की इकोनॉमी में कृषि के बाद रियल स्टेट का सबसे बड़ा योगदान है. साथ ही यह क्षेत्र सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार भी मुहैया कराता है. लेकिन सबसे ज्यादा बढ़ने वाले इस क्षेत्र का एक काला हिस्सा भी है. हर साल कंस्ट्रक्शन साइट पर सैकड़ों महिला और पुरुष वर्कर्स की मौत हो जाती है और कई गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं. ये सब इसलिए होता है कि क्योंकि कंस्ट्रक्शन साइट पर सुरक्षा के बुनियादी उपाय भी नहीं अपनाए जाते हैं. साथ ही इसके लिए जो लोग जिम्मेदार होते हैं उनपर कोई कार्रवाई नहीं होती और न ही सजा मिलती है.
मौत का कोई केंद्रीय डाटाबेस नहीं
केंद्रीय डाटाबेस नहीं होने की वजह से इन वर्कर्स की मौतों का कोई रिकॉर्ड नहीं होता है. आधिकारिक आंकड़ों के नाम पर सिर्फ 16 मार्च, 2015 को लोकसभा में दिया गया वह जवाब है, जिसके मुताबिक 2012-15 के दौरान देशभर की कंस्ट्रक्शन साइट्स पर सिर्फ 77 मौतें हुई हैं. इसके बाद NDTV ने पिछले पांच महीने में भारत के कंस्ट्रक्शन वर्कर्स की मौतों का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तैयार करने की पहल की. इसके बाद NDTV की टीम ने 17 राज्यों में आरटीआई दाखिल कर 2013 से 2016 के बीच हुई कंस्ट्रक्शन वर्कर्स की मौतों की जानकारी मांगी.
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मौत का आंकड़ा जानने के लिए फाइल किया RTI
मौत का आंकड़ा जानने के लिए श्रम मंत्रालय के साथ-साथ 26 शहरों के पुलिस कमिश्नर के पास आरटीआई फाइल की गई थी. इसके बाद 17 राज्यों के 24 जिलों से जो जवाब मिला उसके अनुसार 2013-16 के दौरान 452 मजदूरों की मौत हुई, जबकि 212 घायल हुए. ये आंकड़े लोकसभा में बताए गए आंकड़ों से छह गुना ज्यादा थी. लेकिन अगर इसकी तुलना वर्कर्स की कुल संख्या से जो कि लगभग 7.5 करोड़ है, उससे करें तो 452 मौतें बहुत मामूली लगती हैं. हालांकि ये संख्या सही मौतों से काफी अलग हो सकती है.
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पुलिस रिकॉर्ड से डाटा जमा करने की कोशिश
इसके बाद देश के बड़े शहरों में पुलिस विभाग से भी संपर्क किया गया, ताकि उस दौरान पुलिस रिकॉर्ड से डाटा जमा किया जा सके. NDTV ने डाटा जमा करने के लिए कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के साथ काम करने वाले एनजीओ से भी संपर्क साधा. इन तमाम जानकारियों के आधार पर ये संख्या करीब दोगुनी पाई गई. यानी 1092 मौतें और 377 घायल. ये तमाम चीजें बताती हैं कि आधिकारिक आंकड़े महज खानापूर्ति के लिए हैं और सही आंकड़े इनसे कहीं ज्यादा हो सकते हैं. हालांकि अब हमारे पास ये जानकारी है कि कितनी मौतें हुई, भले ही सच से दूर हों पर ये एक शुरुआत है इन आंकड़ों से इस बात का अंदाजा भी मिलता है कि मौतें क्यों हुई.
वीडियो देखें :
60% मौत ऊंचाई के गिरकर
आरटीआई से मिली जानकारी से यह साफ हुआ है कि सबसे ज्यादा 60% मौत ऊंचाई से गिरकर हुईं. इसके बाद दीवार या इमारत के ढहने से 25 फीसदी मौत, जबकि बिजली के झटकों से 15 फीसदी मजदूरों ने अपनी जान गंवाई. सबसे खास बात यह है कि साल दर साल अलग-अलग जगहों पर ऐसे ही हादसे दोहराए जाते हैं, क्योंकि इन मौतों का कहीं पता नही चलता. आज की तारीख में कंस्ट्रक्शन वर्कर्स की होने वाली मौतों का बहुत कम या कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है.
मौत का कोई केंद्रीय डाटाबेस नहीं
केंद्रीय डाटाबेस नहीं होने की वजह से इन वर्कर्स की मौतों का कोई रिकॉर्ड नहीं होता है. आधिकारिक आंकड़ों के नाम पर सिर्फ 16 मार्च, 2015 को लोकसभा में दिया गया वह जवाब है, जिसके मुताबिक 2012-15 के दौरान देशभर की कंस्ट्रक्शन साइट्स पर सिर्फ 77 मौतें हुई हैं. इसके बाद NDTV ने पिछले पांच महीने में भारत के कंस्ट्रक्शन वर्कर्स की मौतों का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तैयार करने की पहल की. इसके बाद NDTV की टीम ने 17 राज्यों में आरटीआई दाखिल कर 2013 से 2016 के बीच हुई कंस्ट्रक्शन वर्कर्स की मौतों की जानकारी मांगी.
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मौत का आंकड़ा जानने के लिए फाइल किया RTI
मौत का आंकड़ा जानने के लिए श्रम मंत्रालय के साथ-साथ 26 शहरों के पुलिस कमिश्नर के पास आरटीआई फाइल की गई थी. इसके बाद 17 राज्यों के 24 जिलों से जो जवाब मिला उसके अनुसार 2013-16 के दौरान 452 मजदूरों की मौत हुई, जबकि 212 घायल हुए. ये आंकड़े लोकसभा में बताए गए आंकड़ों से छह गुना ज्यादा थी. लेकिन अगर इसकी तुलना वर्कर्स की कुल संख्या से जो कि लगभग 7.5 करोड़ है, उससे करें तो 452 मौतें बहुत मामूली लगती हैं. हालांकि ये संख्या सही मौतों से काफी अलग हो सकती है.
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पुलिस रिकॉर्ड से डाटा जमा करने की कोशिश
इसके बाद देश के बड़े शहरों में पुलिस विभाग से भी संपर्क किया गया, ताकि उस दौरान पुलिस रिकॉर्ड से डाटा जमा किया जा सके. NDTV ने डाटा जमा करने के लिए कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के साथ काम करने वाले एनजीओ से भी संपर्क साधा. इन तमाम जानकारियों के आधार पर ये संख्या करीब दोगुनी पाई गई. यानी 1092 मौतें और 377 घायल. ये तमाम चीजें बताती हैं कि आधिकारिक आंकड़े महज खानापूर्ति के लिए हैं और सही आंकड़े इनसे कहीं ज्यादा हो सकते हैं. हालांकि अब हमारे पास ये जानकारी है कि कितनी मौतें हुई, भले ही सच से दूर हों पर ये एक शुरुआत है इन आंकड़ों से इस बात का अंदाजा भी मिलता है कि मौतें क्यों हुई.
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60% मौत ऊंचाई के गिरकर
आरटीआई से मिली जानकारी से यह साफ हुआ है कि सबसे ज्यादा 60% मौत ऊंचाई से गिरकर हुईं. इसके बाद दीवार या इमारत के ढहने से 25 फीसदी मौत, जबकि बिजली के झटकों से 15 फीसदी मजदूरों ने अपनी जान गंवाई. सबसे खास बात यह है कि साल दर साल अलग-अलग जगहों पर ऐसे ही हादसे दोहराए जाते हैं, क्योंकि इन मौतों का कहीं पता नही चलता. आज की तारीख में कंस्ट्रक्शन वर्कर्स की होने वाली मौतों का बहुत कम या कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है.
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