भारत के प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार को बुनियादी ढांचे के सिद्धांत को ध्रुवतारा के समान करार दिया, जो आगे का मार्ग जटिल होने पर मार्गदर्शन करता है और संविधान की व्याख्या तथा कार्यान्वयन करने वालों को एक निश्चित दिशा देता है.
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि जब आगे का रास्ता जटिल होता है तो भारतीय संविधान की मूल संरचना अपने व्याख्याताओं और कार्यान्वयन करने वालों को मार्गदर्शन और निश्चित दिशा दिखाती है.
प्रधान न्यायाधीश की टिप्पणी उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की हालिया टिप्पणी की पृष्ठभूमि में आई है, जिन्होंने 1973 के केशवानंद भारती मामले के ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाया था.
धनखड़ ने कहा था कि फैसले ने एक बुरी मिसाल कायम की है और अगर कोई प्राधिकरण संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति पर सवाल उठाता है, तो यह कहना मुश्किल होगा कि ‘‘हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं.''
यहां नानी ए पालकीवाला स्मृति व्याख्यान देते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि एक न्यायाधीश की शिल्पकारी संविधान की आत्मा को अक्षुण्ण रखते हुए बदलते समय के साथ संविधान के पाठ की व्याख्या करने में निहित है.
उन्होंने कहा कि हाल के दशकों में ‘‘नियमों का गला घोंटने, उपभोक्ता कल्याण को बढ़ावा देने और वाणिज्यिक लेनदेन का समर्थन करने'' के पक्ष में भारत के कानूनी परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है.
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे संविधान की मूल संरचना ध्रुव तारा की तरह मार्गदर्शन करती है और संविधान की व्याख्या करने वालों तथा कार्यान्वयन करने वालों को उस वक्त एक निश्चित दिशा देती है जब आगे का मार्ग जटिल होता है. हमारे संविधान की मूल संरचना या दर्शन संविधान की सर्वोच्चता, कानून का शासन, शक्तियों के पृथक्करण, न्यायिक समीक्षा, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद, स्वतंत्रता और व्यक्ति की गरिमा तथा राष्ट्र की एकता एवं अखंडता पर आधारित है.''
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उभरती विश्व अर्थव्यवस्था ने राष्ट्रीय सीमाओं को मिटा दिया है और कंपनियां अब सीमा पर नहीं रुकती हैं.
उन्होंने कहा कि संविधान सरकार को सामाजिक मांगों को पूरा करने के लिए अपनी कानूनी और आर्थिक नीतियों को बदलने तथा विकसित करने की अनुमति देता है.
उन्होंने कहा, ‘‘हम उस समय से एक लंबा सफर तय कर चुके हैं जब एक आवश्यक फोन प्राप्त करने के लिए आपको एक दशक तक इंतजार करना पड़ता था और कई बार अपनी कार खरीदने में भी अधिक समय लगता था. हम पूंजीगत मुद्दों के नियंत्रण के समय से एक लंबा सफर तय कर चुके हैं. समय-समय पर हमें अपने आसपास की दुनिया को रोशन करने के लिए नानी (पालकीवाला) जैसे लोगों को अपने हाथों में मशाल पकड़ने की आवश्यकता होती है. नानी ने हमें बताया कि हमारे संविधान की एक निश्चित पहचान है जिसे बदला नहीं जा सकता है.''
पालकीवाला और उनके कई प्रमुख मामलों के बारे में बात करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह संविधान में निहित मूल पहचान और मूलभूत सिद्धांत को संरक्षित करने में सबसे आगे थे.
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