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जानें दुनिया के सबसे ऊंचे चिनाब ब्रिज की खासियत, जिसके सामने एफिल टावर भी है छोटा

उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक 272 किलोमीटर लंबा है और आप हैरान होंगे ये जानकर कि इसमें 36 सुरंगों से होकर ट्रेन गुज़रेंगी. इन सुरंगों की कुल लंबाई 119 किलोमीटर होगी. यानी आप उधमपुर से ट्रेन में बैठेंगे तो आपका क़रीब आधे से कुछ कम सफ़र सुरंगों से होकर ही गुज़रेगा.

चिनाब ब्रिज का निर्माण 2002 में शुरू हुआ और इसे पूरा होने में 20 साल लग गये.

इंजीनियरिंग के कमाल के ज़रिए जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर घाटी रेल लाइन के बाकी देश से जुड़ जाएगी.उधमपुर-कटरा-श्रीनगर-बारामूला रेल लाइन जो देश का एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है. 272 किलोमीटर का ये रेल प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है और प्रधानमंत्री 6 जून को इसे देश को समर्पित करने जा रहे हैं. भौगोलिक तौर पर काफ़ी कठिन इलाके में इस रेल लाइन को तैयार करना आसान काम नहीं रहा. ऊंचे हिमालय की नाज़ुक पहाड़ियों को करीने से काटकर और कई जगहों से भेदकर, सुरंग बनाते हुए रेल पटरियां बिछाई जानी थीं, जो अपने आप में काफ़ी जटिल काम रहा. इस पूरे रेल मार्ग में कुल 36 सुरंगें बनाई गई हैं. इतना ही नहीं पहाड़ी रास्ते में चिनाब नदी और उसकी सहायक नदियों की गहरी घाटियों के ऊपर से पुल बिछाए गए. कुल 943 छोटे बड़े पुल पूरे रास्ते में बनाए गए हैं. और कुछ पुलों को बनाना तो इंजीनियरिंग के कमाल के बिना संभव ही नहीं था. दो पुल तो ख़ासतौर पर इंजीनियरिंग के नायाब नमूने बन गए हैं. ये हैं चिनाब ब्रिज और अंजी ब्रिज, इस रेल लाइन की अहम कड़ियां.

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रियासी ज़िले में दुनिया का सबसे ऊंचा रेल पुल यानी चिनाब ब्रिज बन गया है. ये पुल चिनाब नदी के ऊपर पहाड़ी के एक ओर बक्कल गांव से दूसरी ओर कौड़ी गांव को जोड़ता है. सुरंग से निकलते ही ये पुल शुरू होता है और दूसरे छोर पर सुरंग के अंदर प्रवेश का ज़रिया बनता है. इसका निर्माण 2002 में शुरू हुआ और इसे पूरा होने में 20 साल लग गये. कश्मीर घाटी को पूरे देश के साथ रेल लाइन से जोड़ने के रास्ते में ये सबसे बड़ी चुनौती रहा. सबसे पहले पुल का डिज़ाइन फाइनल किया गया. डिज़ाइन ऐसा होना चाहिए था जो एक लंबे स्पैन में भी काफ़ी वज़न झेल सके, तेज़ तूफ़ानों और बड़े भूकंपों के झटकों को सहन कर सके. ऐसे में चिनाब पुल को स्टील आर्च ब्रिज के तौर पर बनाने का फ़ैसला हुआ.

जानें पुल की खासियत

ये पुल दिल्ली के क़ुतुब मीनार और पेरिस के आइफ़िल टावर से भी ऊंचा है. क़ुतुब मीनार की ऊंचाई है 72 मीटर, ये पुल उससे पांच गुना ऊंचा है. आइफ़िल टावर की ऊंचाई है 324 मीटर, ये पुल उससे भी 35 मीटर ऊंचा है. चिनाब नदी के तल यानी रिवर बेड से पुल की ऊंचाई है 359 मीटर. दुनिया में इतना ऊंचा रेल पुल कोई भी नहीं है. इस पुल की दोनों छोर से लंबाई है 1315 मीटर. यानी सवा किलोमीटर से भी ज़्यादा. इसीलिए इसे स्टील आर्च ब्रिज के तौर पर तैयार किया गया.इसकी आर्च की लंबाई 550 मीटर है.

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पुल की फ्री स्पैन लंबाई 467 मीटर है यानी इस बीच में पुल को सहारा देने के लिए कोई स्पैन नहीं है. इस पुल पर कुल 17 अलग अलग स्पैन हैं यानी दो सपोर्ट यानी स्टील पियर्स के बीच की दूरियां. सबसे लंबा स्टील पियर क़रीब 133 मीटर ऊंचा है. इसका निर्माण चिनाब के दोनों ओर एक साथ शुरू किया गया.

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इतने बड़े पुल के लिए दोनों ओर की पहाड़ियों में बुनियाद बनाना भी एक चुनौती था. दोनों ओर 43 डिग्री से लेकर 77 डिग्री तक की ढाल थी. ऊपर से यहां डोलोमाइट की चट्टानें हैं जो बहुत मज़बूत नहीं होतीं. इसलिए पहाड़ों को काट कर बुनियाद को मज़बूत बनाने की चुनौती और बढ़ गई.

इसके लिए इंजीनियरिंग के तीन तरीकों का इस्तेमाल किया गया. ग्राउटिंग जिससे कमज़ोर पहाड़ी की दरारों में सीमेंट डालकर उन्हें अंदर से मज़बूत किया गया. फिर एंकर ब्लॉक्स का इस्तेमाल किया गया और पहाड़ के सबसे बाहरी हिस्से को मज़बूत बनाने के लिए शॉटक्रीट का इस्तेमाल किया गया जिसमें सीमेंट का स्प्रे किया जाता है.

पुल को सहारा देने के लिए कंक्रीट के बड़े बेस तैयार किए गए. इसके बाद आर्च ब्रिज को बनाने के लिए 28,660 टन स्टील का इस्तेमाल किया गया. ये स्टील माइनस 10 डिग्री से लेकर 40 डिग्री सेल्सियस तापमान तक उपयुक्त होगा.

  1. 10 लाख क्यूबिक मीटर मिट्टी की ढुलाई की गई
  2. 66,000 क्यूबिक मीटर कंक्रीट का इस्तेमाल किया गया.
  3.  इस पुल को 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार के लिए तैयार किया गया है.
  4. 266 कि.मी./घंटा की रफ़्तार तक चलने वाली हवाओं का इस पर कोई असर नहीं होगा
  5. भूकंप के लिहाज़ से ये पुल ज़ोन 4 में आता है और इसे ऐसे तैयार किया गया है कि 8 की तीव्रता के भूकंप को भी ये झेल सके.
  6. भूकंप आने की स्थिति में इस पुल के सबसे ऊपरी हिस्से यानी डेक पर कंपन का ख़ास असर नहीं पड़ेगा.
  7. नीचे की आर्च जो उसे सपोर्ट कर रही है उस पर लगे spherical bearing उस असर को ऊपर ट्रांसफ़र नहीं होने देंगे.
  8. इस पुल के बनने से कटरा से श्रीनगर की यात्रा 3 घंटे कम हो जाएगी.
  9.  इस पुल को बनाने की लागत क़रीब 1486 करोड़ रुपए आई.
  10. उत्तर रेलवे के लिए कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने इसे तैयार किया है जिसने कोंकण रेल परियोजना जैसी कठिन परियोजना तैयार कर दिखाई थी.

कोंकण रेलवे के सामने और भी कई चुनौतियां थीं क्योंकि ये प्रोजेक्ट नीचे शिवालिक की पहाड़ियों से लेकर ऊपर कश्मीर में पीर पंजाल की पहाड़ियों तक फैला हुआ था. हिमालय की पहाड़ियां बहुत मज़बूत नहीं हैं और रास्ते में आने वाले नदी नाले चुनौती और बढ़ा देते हैं.

  • उधमपुर-कटरा-श्रीनगर-बारामूला रेल लाइन जो उधमपुर में 660 मीटर की ऊंचाई से बारामूला में 1583 मीटर की ऊंचाई तक 272 किलोमीटर का सफ़र तय करेगी.
  • इस रेल लाइन पर दोनों ही ओर से एक साथ काम शुरू किया गया. पटरियों के लिए पहाड़ों का काटने और उनमें सुरंग बनाने का बेहद मुश्किल काम सामने था.
  • सबसे पहले कश्मीर घाटी में बारामूला से क़ाज़ीगुंड का 118 किलोमीटर का सेक्शन 2009 में पूरा किया गया.
  • इसके बाद 2013 में क़ाज़ीगुंड से बनिहाल का 18 किलोमीटर का सेक्शन 2013 में पूरा किया गया.
  • इस सेक्शन तक रेल की पटरियों की समुद्र तल से ऊंचाई 1754 हो चुकी थी. सर्दियों में यहां एक बड़ा इलाका बर्फ़ से ढरा रहता है इसलिए रेल लाइन को बनाना बड़ा चुनौती भरा काम रहा.
  • दूसरे छोर पर उधमपुर से कटरा का 25 किलोमीटर का सेक्शन 2014 में पूरा किया गया.
  • शिवालिक की तलहटी से लेकर हिमालय की पीर पंजाल की पहाड़ियों के बीच रेल लाइन तैयार करना आसान नहीं रहा.

अब जो बाकी बचा हिस्सा था वो सबसे मुश्किल रहा. लेकिन रेलवे के इंजीनियरों ने इस चुनौती का सामना किया और अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से बाकी हिस्से को बनाने का काम जारी रहा. फरवरी 2024 में बनिहाल से संगलदान के बीच 48 किलोमीटर का सेक्शन पूरा किया गया. संगलदान से रियासी तक का 46 किलोमीटर का हिस्सा जुलाई 2024 में बनकर तैयार हुआ. लेकिन इस रेल मार्ग में चिनाब नदी पर पुल बनाना सबसे मुश्किल काम था. और जैसा हमने पहले बताया वो बनकर तैयार हो चुका है

उधर कटरा से रियासी तक का 17 किलोमीटर का हिस्सा भी पूरा हो चुका है और इस रास्ते में दो बड़ी चुनौतियां थीं, अंजी खड्ड पर एक पुल बनाना और T33 नाम की एक सुरंग को पूरा करना जो हिमालयी इलाके में बनी भूमिगत दरारों मेन बाउंड्री थ्रस्ट से होकर गुज़रती है. ये दोनों काम भी अब पूरे हो चुके हैं.

आपको बता दें कि इस रेल लाइन को बनाने की परियोजना सबसे पहले मार्च 1995 में मंज़ूर की गई थी और तब पूरी परियोजना की लागत 2,500 करोड़ रुपए बताई गई. लेकिन फिर इसे पूरा बनते बनते 30 साल लग गए और लागत आई 43,780 करोड़ रुपए यानी क़रीब 17 गुना.

इंजीनियरिंग के एक और अद्भुत नमूने अंजी ब्रिज

अब हम आपको बताते हैं कि इस रेल लाइन में इंजीनियरिंग के एक और अद्भुत नमूने अंजी ब्रिज के बारे में... ये पुल चिनाब नदी की सहायक अंजी नदी पर बना है.रियासी ज़िले में अंजी खड्ड पर ये देश का पहला cable यानी स्टील के मोटे तारों पर टिका रेलवे ब्रिज है जो कटरा और रियासी को आपस में जोड़ता है. केबल आधारित ये पुल ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं जहां नीचे बुनियाद बहुत गहरी हो और स्पैन बहुत लंबे हों यानी दो खंभों के बीच की दूरी. इनका स्ट्रक्चरल डिज़ाइन काफ़ी स्थिर होता है, ये देखने में भी काफ़ी ख़ूबसूरत लगते हैं.

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  1. ये केबल आधारित पुल 473 मीटर लंबा है.
  2. पुल 193 मीटर ऊंचा पायलन यानी मुख्य खंभे पर टिका है जिसके सहारे पुल दोनों ओर स्टील केबलों पर टिका है.
  3. स्टील की ये 96 केबल 82 मीटर से लेकर 295 मीटर तक लंबी हैं.
  4. ये पुल नदी के तल यानी riverbed से 331 मीटर ऊंचा है.
  5. पुल को इस तरह तैयार किया गया है कि इस पर ट्रेन 100 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से दौड़ सके.
  6.  ये पुल 213 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ़्तार से चलने वाली हवाओं को सह सकता है और 8 तक की तीव्रता के भूकंप को झेल सकता है.

उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लिंक 272 किलोमीटर लंबा है और आप हैरान होंगे ये जानकर कि इसमें 36 सुरंगों से होकर ट्रेन गुज़रेंगी. इन सुरंगों की कुल लंबाई 119 किलोमीटर होगी. यानी आप उधमपुर से ट्रेन में बैठेंगे तो आपका क़रीब आधे से कुछ कम सफ़र सुरंगों से होकर ही गुज़रेगा.

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इन सभी सुरंगों को बनाना आसान नहीं रहा. इसकी बड़ी वजह है कि हिमालय एक कमज़ोर पहाड़ है और यहां सुरंग बनाना काफ़ी जोखिम भरा काम है. एक सुरंग जिसे बनाना अंत तक सबसे चुनौती भरा वो है T-33. कटरा के क़रीब 3.2 किलोमीटर की ये सुरंग त्रिकुटा पहाड़ियों के ठीक नीचे बनाई गई. इस सुरंग को बनाना ज़्यादा कठिन इसलिए था क्योंकि ये जिस इलाके से गुज़रती है वहां हिमालय में एक दरार है जिसे मेन बाउंड्री थ्रस्ट यानी MBT कहते हैं. MBT से होकर गुज़रने वाले हिस्से में चट्टानें काफ़ी भुरभुरी होती हैं. ऊपर से यहां पहाड़ के अंदर से रिसने वाले पानी ने भी काफ़ी परेशान किया. अक्टूबर 2017 में चट्टानों के ढहने से यहां काम कुछ समय रुक भी गया. लेकिन फिर इंजीनियरों ने आधुनिकतम टैक्नोलॉजी और काफ़ी ऐहतियात के साथ ये काम भी पूरा किया गया. दिसंबर 2023 में ये सुरंग भी पूरी हो गई. वैसे इस रेल लाइन पर सबसे लंबी सुरंग है T-50 जिसकी लंबाई क़रीब पौने 13 किलोमीटर है. तो कुल मिलाकर ये प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है. कश्मीर को कन्याकुमारी से रेल लाइन से जोड़ने का सपना भी इसके साथ साकार हो गया है.

प्रधानमंत्री मोदी 6 जून को जब ये पूरा प्रोजेक्ट देश को समर्पित करेंगे तो नई वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों को भी हरी झंडी दिखाएंगे जो श्री माता वैष्णो देवी, कटरा से श्रीनगर जाएंगी और वहां से लौटेंगी. उम्मीद है उधमपुर-श्रीनगर-बारामूला रेल लाइन एक ऐसे समय जम्मू-कश्मीर के पर्यटन में नई जान फूंकेगी जब पहलगाम हमले के बाद वहां सैलानियों की तादाद काफ़ी कम हो गई है. कश्मीर को देश के साथ जोड़ने वाली इस रेल परियोजना के साथ ही भारतीय रेलवे ने भी कई कीर्तिमान बना दिए हैं.

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