नई दिल्ली:
क्या आपने इस तरह की तस्वीर कभी देखी है? पता नहीं आपका जवाब क्या होगा, लेकिन फिर भी ज़रा गौर से देखिए इन तस्वीरों को। यह कोई रेगिस्तान की तस्वीरें नहीं हैं बल्कि हिंदुस्तान के कुछ सूखा प्रभावित इलाकों की तस्वीरें हैं। उस इलाकों की तस्वीर हैं जहां सूखे की वजह से सब कुछ सूख गया है। लोगों के सुख-शांति सब कुछ।
हमारे देश में गाय को लेकर काफी राजनीति होती है, लेकिन सूखा प्रभावित इलाकों में गायों के जो हाल हैं उसके बारे में बयां करना मुश्किल है। पीने का पानी न होने की वजह से गायों से लेकर दूसरे जानवरों की जान जा रही है, लेकिन गाय को लेकर राजनीति करने वाले लोग चुप हैं।
मराठावाड़ा और बुंदेलखंड की समस्या
यह जो तस्वीरें आपके सामने हैं वे स्वराज अभियान द्वारा भेजी गई हैं। कुछ दिनों से सूखा प्रभावित इलाकों में स्वराज अभियान ने अपनी यात्रा शुरू की थी। जल-हल के नाम पर यह यात्रा 11 दिन तक चली। 21 मई को यह यात्रा लातूर जिले के सोनवती गांव से शुरू हुई और बीड़ जिले के धनेगांव तक पहुंची। बुंदेलखंड में पदयात्रा 27 मई को टीकमगढ़ जिले के आलमपुर गांव से शुरू हुई और 31 मई को महोबा शहर में इसका समापन हुआ।
पीने के पानी की बहुत बड़ा समस्या
स्वराज अभियान ने अपने रिपोर्ट में बताया है कि पानी की सबसे बड़ी समस्या महाराष्ट्र के उन इलाकों में है जहां सूखा पड़ा हुआ है। इलाका तेजी से पानी के अकाल की ओर में बढ़ रहा है। लोग पानी के अंतिम संभव भंडार का उपयोग कर रहे हैं। बड़ी संख्या में गांव के लोग कभी-कभी मिलने वाले टैंकरों के पानी पर पूरी तरह से निर्भर हैं। कई गांवों में यह पानी के टैंकर 15 से 20 दिनों में केवल एक बार आते हैं और वो भी एक घंटे से भी कम समय के लिए। सिर्फ इतना नहीं, इस जल संकट का फायदा उठते हुए कुछ लोग अपना धंधा भी चला रहे हैं। पानी की खुदरा बिक्री खूब हो रही है। त्रासदी यह है कि पानी के लिए अमीर की तुलना में गरीब अधिक भुगतान कर रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि पानी के सार्वजनिक वितरण में दलित, अन्य सीमांत समुदाय और गरीब उपेक्षित हैं।
पशुओं का हाल है बेहाल
सूखे की वजह से सिर्फ मनुष्य नहीं बल्कि जानवर भी प्रभावित हैं। लोगों के पास कुछ तो सुरक्षा है, जानवरों के पास तो वह भी नहीं है। स्वराज अभियान का कहना है कि बुन्देलखंड में पशुओं के लिए अकाल की स्थिति है। सूखे की वजह से पिछले महीने में हर गांव में 10 से 100 पशुओं की मौत की रिपोर्ट है। अगर 30 पशुओं की मौत का उदार औसत भी लें तो प्रति गांव प्रतिदिन एक पशु की मौत हो रही है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के 13 जिलों में कुल 11,065 गांव हैं। इस अनुमान से इस साल मई के महीने में 3 लाख पशुओं की मौत हो चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना
आपको बता दें कि स्वराज अभियान ने सूखे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में राज्य सरकारों को सूखा प्रभावित इलाकों में लोगों की सहायता करने के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में स्पष्ट है कि खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सभी को राशन दिया जाए। लेकिन स्वराज अभियान का कहना है कि इसमें कई गड़बड़ियां देखने को मिलीं। कई लोगों को सब्सिडी वाला अनाज भी नहीं मिलता है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश में यह साफ स्पष्ट है कि आदेश से 7 दिनों के भीतर गर्मी की छुट्टियों में भी मिड डे मील दिया जाए। लेकिन स्वराज अभियान का कहना है कि ऐसा नहीं हो रहा है। लातूर,उस्मानाबाद और बीड़ जिले में पदयात्रा मार्ग में आने वाले किसी भी गांव के स्कूल में छुट्टी की अवधि के दौरान मध्यान्ह भोजन दिए जाने की सूचना नहीं है।
स्वराज अभियान ने मनरेगा को लेकर भी कई सवाल उठाया है। हम सभी जानते हैं मनरेगा के जरिए लोगों को रोजगार मिलता है सूखा प्रभावित आबादी के लिए सूखे से निपटने के लिए मनरेगा एक प्रभावी उपकरण है। वास्तव में, महाराष्ट्र का ईजीएस मॉडल इस राष्ट्रीय योजना का पुरवर्ती है। दुर्भाग्य से राज्य में इस योजना को ऐसे समय में एक मजाक बना दिया गया है जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। अधिकांश गांवों में जहां स्वराज अभियान ने पदयात्रा की, वहां पाया गया कि लगभग किसी के पास जाब-कार्ड नहीं था या उन्हें भुगतान नहीं मिला था। लेकिन सरकारी आंकड़ों में उन गांवों में जाब-कार्ड की बड़ी संख्या दिखाई गई है।
फसल नुकसान का मुआवजा
जिन क्षेत्रों में स्वराज अभियान ने पदयात्रा की वहां कहीं भी राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष से फसल नुकसान के मुआवजे के पूर्ण वितरण की बात सामने नहीं आई। मराठवाड़ा और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में असिंचित भूमि के लिए इनपुट सब्सिडी 6800 रुपये प्रति हेक्टेयर किसानों तक आंशिक रूप से ही पहुंची। जबकि सिंचित भूमि और बागवानी के लिए इनपुट सब्सिडी 13,500 रुपये प्रति हेक्टेयर वितरित ही नहीं की गई है। उत्तर प्रदेश के किसान सबसे ज्यादा घाटे में हैं। पिछले तीन वर्षों में छह फसलों में से चार खोने वाले किसानों को कम से कम तीन फसलों का मुआवजा भी नहीं दिया गया है। 2 हेक्टेयर से ऊपर वाले किसानों को केवल एक बार मुआवजा मिला है। पिछले साल की ओलावृष्टि से हुए नुकसान का भुगतान भी अभी किया जाना बाकी है।
हमारे देश में गाय को लेकर काफी राजनीति होती है, लेकिन सूखा प्रभावित इलाकों में गायों के जो हाल हैं उसके बारे में बयां करना मुश्किल है। पीने का पानी न होने की वजह से गायों से लेकर दूसरे जानवरों की जान जा रही है, लेकिन गाय को लेकर राजनीति करने वाले लोग चुप हैं।
मराठावाड़ा और बुंदेलखंड की समस्या
यह जो तस्वीरें आपके सामने हैं वे स्वराज अभियान द्वारा भेजी गई हैं। कुछ दिनों से सूखा प्रभावित इलाकों में स्वराज अभियान ने अपनी यात्रा शुरू की थी। जल-हल के नाम पर यह यात्रा 11 दिन तक चली। 21 मई को यह यात्रा लातूर जिले के सोनवती गांव से शुरू हुई और बीड़ जिले के धनेगांव तक पहुंची। बुंदेलखंड में पदयात्रा 27 मई को टीकमगढ़ जिले के आलमपुर गांव से शुरू हुई और 31 मई को महोबा शहर में इसका समापन हुआ।
पीने के पानी की बहुत बड़ा समस्या
स्वराज अभियान ने अपने रिपोर्ट में बताया है कि पानी की सबसे बड़ी समस्या महाराष्ट्र के उन इलाकों में है जहां सूखा पड़ा हुआ है। इलाका तेजी से पानी के अकाल की ओर में बढ़ रहा है। लोग पानी के अंतिम संभव भंडार का उपयोग कर रहे हैं। बड़ी संख्या में गांव के लोग कभी-कभी मिलने वाले टैंकरों के पानी पर पूरी तरह से निर्भर हैं। कई गांवों में यह पानी के टैंकर 15 से 20 दिनों में केवल एक बार आते हैं और वो भी एक घंटे से भी कम समय के लिए। सिर्फ इतना नहीं, इस जल संकट का फायदा उठते हुए कुछ लोग अपना धंधा भी चला रहे हैं। पानी की खुदरा बिक्री खूब हो रही है। त्रासदी यह है कि पानी के लिए अमीर की तुलना में गरीब अधिक भुगतान कर रहा है। चौंकाने वाली बात यह है कि पानी के सार्वजनिक वितरण में दलित, अन्य सीमांत समुदाय और गरीब उपेक्षित हैं।
पशुओं का हाल है बेहाल
सूखे की वजह से सिर्फ मनुष्य नहीं बल्कि जानवर भी प्रभावित हैं। लोगों के पास कुछ तो सुरक्षा है, जानवरों के पास तो वह भी नहीं है। स्वराज अभियान का कहना है कि बुन्देलखंड में पशुओं के लिए अकाल की स्थिति है। सूखे की वजह से पिछले महीने में हर गांव में 10 से 100 पशुओं की मौत की रिपोर्ट है। अगर 30 पशुओं की मौत का उदार औसत भी लें तो प्रति गांव प्रतिदिन एक पशु की मौत हो रही है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के 13 जिलों में कुल 11,065 गांव हैं। इस अनुमान से इस साल मई के महीने में 3 लाख पशुओं की मौत हो चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना
आपको बता दें कि स्वराज अभियान ने सूखे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में राज्य सरकारों को सूखा प्रभावित इलाकों में लोगों की सहायता करने के लिए कहा था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में स्पष्ट है कि खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सभी को राशन दिया जाए। लेकिन स्वराज अभियान का कहना है कि इसमें कई गड़बड़ियां देखने को मिलीं। कई लोगों को सब्सिडी वाला अनाज भी नहीं मिलता है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश में यह साफ स्पष्ट है कि आदेश से 7 दिनों के भीतर गर्मी की छुट्टियों में भी मिड डे मील दिया जाए। लेकिन स्वराज अभियान का कहना है कि ऐसा नहीं हो रहा है। लातूर,उस्मानाबाद और बीड़ जिले में पदयात्रा मार्ग में आने वाले किसी भी गांव के स्कूल में छुट्टी की अवधि के दौरान मध्यान्ह भोजन दिए जाने की सूचना नहीं है।
स्वराज अभियान ने मनरेगा को लेकर भी कई सवाल उठाया है। हम सभी जानते हैं मनरेगा के जरिए लोगों को रोजगार मिलता है सूखा प्रभावित आबादी के लिए सूखे से निपटने के लिए मनरेगा एक प्रभावी उपकरण है। वास्तव में, महाराष्ट्र का ईजीएस मॉडल इस राष्ट्रीय योजना का पुरवर्ती है। दुर्भाग्य से राज्य में इस योजना को ऐसे समय में एक मजाक बना दिया गया है जब इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है। अधिकांश गांवों में जहां स्वराज अभियान ने पदयात्रा की, वहां पाया गया कि लगभग किसी के पास जाब-कार्ड नहीं था या उन्हें भुगतान नहीं मिला था। लेकिन सरकारी आंकड़ों में उन गांवों में जाब-कार्ड की बड़ी संख्या दिखाई गई है।
फसल नुकसान का मुआवजा
जिन क्षेत्रों में स्वराज अभियान ने पदयात्रा की वहां कहीं भी राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष से फसल नुकसान के मुआवजे के पूर्ण वितरण की बात सामने नहीं आई। मराठवाड़ा और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में असिंचित भूमि के लिए इनपुट सब्सिडी 6800 रुपये प्रति हेक्टेयर किसानों तक आंशिक रूप से ही पहुंची। जबकि सिंचित भूमि और बागवानी के लिए इनपुट सब्सिडी 13,500 रुपये प्रति हेक्टेयर वितरित ही नहीं की गई है। उत्तर प्रदेश के किसान सबसे ज्यादा घाटे में हैं। पिछले तीन वर्षों में छह फसलों में से चार खोने वाले किसानों को कम से कम तीन फसलों का मुआवजा भी नहीं दिया गया है। 2 हेक्टेयर से ऊपर वाले किसानों को केवल एक बार मुआवजा मिला है। पिछले साल की ओलावृष्टि से हुए नुकसान का भुगतान भी अभी किया जाना बाकी है।
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