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This Article is From Oct 16, 2023

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्‍यता मिलेगी या नहीं? सुप्रीम कोर्ट कल सुनाएगा फैसला

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग का केंद्र शुरू से ही विरोध कर रहा है. सरकार ने कहा कि इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों के 158 प्रावधानों में बदलाव करते हुए पर्सनल लॉ से भी छेड़छाड़ करनी होगी. 

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्‍यता मिलेगी या नहीं? सुप्रीम कोर्ट कल सुनाएगा फैसला
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र शुरू से ही समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्‍यता के विरोध में है. (फाइल)
नई दिल्‍ली:

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) मंगलवार को फैसला सुनाएगा. पांच जजों की संविधान पीठ यह तय करेगा कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जा सकती है या नहीं. 11 मई को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा था. दस दिन तक सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित  रखा गया था. यह फैसला 20 याचिकाओं पर आएगा. पीठ में CJI  डीवाई चंद्रचूड़,  जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं. 

केंद्र सरकार शुरू से आखिर तक इस मांग का विरोध करती रही है. सरकार ने कहा कि ये न केवल देश की सांस्कृतिक और नैतिक परंपरा के खिलाफ है बल्कि इसे मान्यता देने से पहले 28 कानूनों के 158 प्रावधानों में बदलाव करते हुए पर्सनल लॉ से भी छेड़छाड़ करनी होगी. 

सुनवाई के दौरान पीठ ने एक बार यहां तक कहा कि बिना कानूनी मान्यता के सरकार इन लोगों को राहत देने के लिए क्या कर सकती है? यानी बैंक अकाउंट, विरासत, बीमा बच्चा गोद लेने आदि के लिए सरकार संसद में क्या कर सकती है? सरकार ने भी कहा था कि वो कैबिनेट सचिव की निगरानी में विशेषज्ञों की समिति बनाकर समलैंगिकों की समस्याओं पर विचार करने को तैयार है. 

इस मामले में केंद्र ने दलील दी थी कि सेम-सेक्स शादी एक शहरी संभ्रांत अवधारणा है, जो  देश के सामाजिक लोकाचार से बहुत दूर है. विषम लैंगिक संघ से परे विवाह की अवधारणा का विस्तार एक नई सामाजिक संस्था बनाने के समान है. अदालत नहीं बल्कि केवल संसद ही व्यापक विचारों और सभी ग्रामीण, अर्ध-ग्रामीण और शहरी आबादी की आवाज, धार्मिक संप्रदायों के विचारों और व्यक्तिगत कानूनों के साथ विवाह के क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले रीति-रिवाजों को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले सकती है. 

केंद्र ने कहा था कि विवाह एक संस्था है जिसे बनाया जा सकता है, मान्यता दी जा सकती है, कानूनी पवित्रता प्रदान की जा सकती है और इसे केवल सक्षम विधायिका द्वारा तैयार किया जा सकता है. साथ ही कहा था कि समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने वाली संवैधानिक घोषणा इतनी आसान नहीं है. इन शादियों को मान्यता देने के लिए संविधान, IPC , CrPC, CPC  और 28 अन्य कानूनों के 158 प्रावधानों में संशोधन करने होंगे. 

संविधान पीठ ने माना  कि केंद्र की इन दलीलों में खासा दम है कि समलैंगिक शादी को मान्यता देने संबंधी कानून पर विचार करने का अधिकार विधायिका का है, लेकिन अदालत ये जानना चाहती है कि सरकार ऐसे जोड़ों की समस्याओं के मानवीय पहलुओं पर क्या कर सकती है ? 

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कानूनों के प्रावधानों की लिस्ट सामने रखी थी. उन्होंने अदालत को बताया कि अगर संविधान पीठ समान लिंग विवाहों को मान्यता देते हुए स्पेशल मैरिज एक्ट में  'पुरुष और महिला' के स्थान पर 'व्यक्ति' और पति और पत्नी की जगह जीवनसाथी करता है तो गोद लेने, उत्तराधिकार  आदि के कानूनों में भी बदलाव करना होगा. साथ ही फिर ये मामला पर्सनल लॉ तक जा पहुंचेगा कि इन सभी कानूनों के तहत लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से एक समान लिंग वाले जोड़े में पुरुष और महिला कौन होंगे. फिर गोद लेने, भरण- पोषण, घरेलू हिंसा से सुरक्षा, तलाक आदि के अधिकारों के सवाल भी उठेंगे.  

पांच जजों के संविधान पीठ की अगुवाई कर रहे CJI डी वाई चंद्रचूड़  ने माना कि इससे तीन दिक्कतें होंगी. पहली, इसमें कानून को पूरी तरह फिर से लिखना
 शामिल होगा. दूसरी, यह सार्वजनिक नीति के मामलों में हस्तक्षेप के समान होगा और तीसरी यह पर्सनल लॉ के दायरे में भी हस्तक्षेप करेगा और अदालत  स्पेशल मैरिज एक्ट और पर्सनल लॉ के बीच परस्पर क्रिया से बच नहीं सकती है. 

तुषार मेहता ने कहा कि एक और दिक्कत है कि अदालत विषम लैंगिक विवाहित जोड़ों और समान-लिंग वाले जोड़ों पर अलग तरह से लागू होने वाला कानून नहीं बना सकती है. 

उन्‍होंने कहा कि दुनिया भर में केवल 34 देशों ने समान-लिंग विवाहों को वैध बनाया है, जिनमें से 24 देशों ने इसे विधायी प्रक्रिया के माध्यम से, जबकि  9 ने विधायिका और न्यायपालिका की मिश्रित प्रक्रिया के माध्यम से यह किया है. जबकि दक्षिण अफ्रीका अकेला देश है, जहां इस प्रकार के विवाहों को न्यायपालिका द्वारा वैध किया गया है. 

केंद्र के मुताबिक अमेरिका और ब्राजील प्रमुख देश हैं, जहां मिश्रित प्रक्रिया को अपनाया गया था. विधायी प्रक्रिया के माध्यम से समान-लिंग विवाह को वैध बनाने वाले महत्वपूर्ण देश यूके, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा, स्विट्जरलैंड, स्वीडन, स्पेन, नॉर्वे, नीदरलैंड, फिनलैंड, डेनमार्क, क्यूबा और बेल्जियम हैं. केंद्र ने ये भी कहा कि 16 देशों ने LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों के बीच सिविल यूनियन को वैध कर दिया है, जिनमें से 13 देशों ने इसे विधायी प्रक्रिया के माध्यम से और तीन ने मिश्रित प्रक्रिया के माध्यम से किया है. 

तुषार मेहता ने दलील दी कि अगर समलैंगिक जोड़ों को कानूनी मान्यता देने की दलील स्वीकार की जाती है तो कल को कोई कौटुम्बिक व्यभिचार के खिलाफ अदालत में यह कहते हुए आ सकता है कि यदि दो वयस्कों ने निषिद्ध यौन संबंध बनाने का फैसला किया है तो राज्य को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है. मेहता ने कहा कि सरकार कुछ ऐसे मुद्दों से निपटने पर विचार कर सकती है जो समलैंगिक जोड़ों को कानूनी मान्यता दिए बिना सामना कर रहे हैं. 

राजस्‍थान सरकार ने भी किया सेम सेक्‍स मैरिज का विरोध 

राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने सेम सेक्स मैरिज का विरोध किया है और इसे जनभावना के खिलाफ बताया है. राजस्थान सरकार ने केंद्र सरकार को लिखे अपने जवाब में कहा है कि राजस्थान सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय ने निष्कर्ष निकाला है कि भारतीय समाज केवल जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच विवाह को मान्यता देता है. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता सामाजिक असंतुलन पैदा कर सकती है, जिसका सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था पर दूरगामी, दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा. हर जिले के कलेक्टरों से भी राय मांगी गई और उन्होंने जवाब दिया कि राजस्थान के किसी भी हिस्से में समान लिंग विवाह की प्रथा प्रचलित नहीं है और जनता की राय भी इसके खिलाफ है. साथ ही जन भावना सेम सेक्स मैरिज के खिलाफ है. हालांकि अगर समलैंगिक स्वेच्छा से साथ रहना चाहते हैं तो फिर इसमें कुछ गलत नहीं है.  केंद्र की ओर से ये पत्र सुप्रीम कोर्ट में भी दाखिल किया गया है. 

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