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डिजिटल अरेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती! कहा- नागरिकों की सुरक्षा के लिए बने नियम

सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट और ऑनलाइन ठगी के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए सरकार से व्यापक समाधान की रिपोर्ट मांगी. कोर्ट ने कहा कि नागरिकों की सुरक्षा के लिए ठोस नियम और बैंकिंग अलर्ट सिस्टम जरूरी है.

डिजिटल अरेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती! कहा- नागरिकों की सुरक्षा के लिए बने नियम
  • सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट और ऑनलाइन ठगी के बढ़ते मामलों को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है
  • कोर्ट ने डिजिटल ठगी से बचाव के लिए व्यापक नियम और प्रभावी तंत्र विकसित करने की आवश्यकता बताई है
  • एमाइकस क्यूरी ने बताया कि कुछ हाईकोर्ट्स ने पीड़ितों को नई प्राथमिकी दर्ज न करने की अनुमति दी है
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नई दिल्ली:

देश में डिजिटल अरेस्ट और ऑनलाइन ठगी के बढ़ते मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर चिंता जताई है. स्वत: संज्ञान याचिका पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अगुआई वाली पीठ ने कहा कि नागरिकों को डिजिटल ठगी से बचाने के लिए व्यापक नियम और प्रभावी तंत्र की आवश्यकता है. कोर्ट ने अन्य हस्तक्षेप याचिकाओं को दाखिल करने की अनुमति नहीं दी, लेकिन 76 वर्षीय महिला की याचिका स्वीकार की, जिसने डिजिटल घोटाले में अपनी जीवनभर की बचत खो दी थी.

एमाइकस क्यूरी ने क्या सुझाव दिया?

एमाइकस ने बताया कि कुछ हाईकोर्ट्स ने निर्देश दिए हैं कि पीड़ितों को नई प्राथमिकी दर्ज करने की जरूरत नहीं है. वे पोर्टल पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं. इसके आधार पर आरोपियों से ठगी गई रकम और संपत्ति का पता लगाया जाएगा. एमाइकस ने ब्रिटेन का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां बैंकिंग चैनलों के जरिए लगभग 90% ठगी का पैसा वापस लाया गया है.

सरकार ने क्या कहा?

अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने कोर्ट को बताया कि यह मुद्दा सरकार के विचाराधीन है. गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, कानून मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य एजेंसियों के बीच अंतर-मंत्रालयी बैठक आयोजित की जा रही है. बैठक के नतीजे और सुझाव कोर्ट के समक्ष व्यापक रिपोर्ट के रूप में पेश किए जाएंगे.

सीजेआई ने क्या कहा?

सीजेआई ने कहा कि डिजिटल अरेस्ट के जरिए ठगी गई राशि चौंकाने वाली है और यह लंबे समय से जारी है. उन्होंने बैंकों की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि सेवा में कमी और अलार्म सिस्टम की अनुपस्थिति से ग्राहकों को नुकसान होता है. अटॉर्नी जनरल ने स्वीकार किया कि अलर्ट सिस्टम मौजूद हैं, लेकिन वे अलग-अलग विभागों के तहत आते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नागरिकों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाना जरूरी है और इस दिशा में सरकार को जल्द समाधान पेश करना होगा. 


 

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