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अब कानून अंधा नहीं रहेगा, जानिए हाल के सालों में देश में अंग्रेजों के जमाने का क्या-क्या बदला? 

British Era Symbols Changed: हाल के सालों में भारत गुलामी की मानसिकता से निकलते हुए नई सोच पर चल पड़ा है. कानून की आंखों पर बंधी पट्टी हट चुकी है. जानिए और क्या-क्या हटा...

अब कानून अंधा नहीं रहेगा, जानिए हाल के सालों में देश में अंग्रेजों के जमाने का क्या-क्या बदला? 
Supreme Court Changed British Era Symbols: अब न्याया की देवी अंधी नहीं रह गईं.

British Era Symbols Changed: अकसर कहा जाता है कि कानून अंधा होगा. यह कहने के पीछे का कारण न्यायालयों में न्याय की देवी की आंखों में बंधी पट्टी थी. इस मूर्ती को पूरी दुनिया में न्याय की देवी यानी लेडी जस्टिस के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि ये मूर्ती पूरी दुनिया में न्याय व्यवस्था को दर्शाती है. न्याय की देवी को मिस्र और यूनान का कल्चर माना जाता है.न्याय की देवी मिस्र की देवी माट और यूनान की देवी थेमिस और डाइक से प्रेरित हैं. मिस्र में देवी माट को संतुलन, समरसता, न्याय, कानून और व्यवस्था का प्रतीक माना जाता है. जबकि यूनान की देवी थेमिस सच्चाई, कानून और व्यवस्था की प्रतीक हैं और डाइक असली न्याय और नैतिक व्यवस्था को दर्शाती हैं. 17वीं शताब्दी में एक अंग्रेज अफसर पहली बार इस मूर्ति को भारत लाया था. यह अफसर एक न्यायायिक अधिकारी था. 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश काल के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल होने लगा. भारत की आजादी के बाद भी इस प्रतीक को अब तक जारी रखा गया.

क्या था संकेत और क्या बदला?

इस पट्टी के जरिए यह संकेत दिया जाता था कि कानून की नजर में कोई छोटा-बड़ा या अपना-पराया नहीं होता. वो सबके लिए एक है. साथ ही न्याय की देवी के एक हाथ में तराजू और एक हाथ में तलवार होती थी. इस संकेत का मकसद ये था कि अपराध को पहले तराजू पर तौला जाता है और उसके बाद फिर तलवार की तरह सख्त फैसला होता है. हालांकि, अब ये दौर खत्म हो गया. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ (CJI Dy Chandrachud) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की लाइब्रेरी में ऐसी स्टेच्यू लगाई है, जिसमें न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी नहीं है. तराजू दाएं हाथ में अब भी है, लेकिन बाएं हाथ में तलवार की जगह अब संविधान आ गया है. सीजेआई का मानना है कि अंग्रेजी विरासत से अब आगे निकलना चाहिए. कानून कभी अंधा नहीं होता. वो सबको समान रूप से देखता है.तलवार हिंसा का प्रतीक हैं, जबकि अदालतें हिंसा नहीं बल्कि संवैधानिक कानूनों के तहत इंसाफ करती हैं. इसलिए तलवार की जगह अब संविधान होगा. तराजू पर तौलना सही है, इसलिए वो बरकरार रखा गया है.आइए जानते हैं, देश में हाल के सालों में अंग्रेजों के जमाने का क्या-क्या बदला...

  1. भारतीय गृह मंत्रालय ने पुराने आपराधिक कानून को बदलकर तीन नये आपराधिक कानून लागू कर दिए. भारतीय न्याय संहिता 2023, भारतीय न्याय संहित 2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 1 जुलाई 2024 से पूरे देश में लागू हो गए.अंग्रेजों के जमाने के करीब 1500 कानूनों को मोदी सरकार अब तक हटा चुकी है.
  2. केंद्र सरकार ने सितंबर 2024 को घोषणा की कि उसने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर श्री विजयपुरम करने का फैसला किया है.पोर्ट ब्लेयर का नाम आर्चीबाल्ड ब्लेयर (Archibald Blair) के नाम पर रखा गया था. वो ईस्ट इंडिया कंपनी के नौसेना अधिकारी थे. उन्हें चागोस द्वीपसमूह और अंडमान द्वीपसमूह के सर्वेक्षणों के लिए जाना जाता है. यही कारण था कि उनके नाम पर ही पोर्ट ब्लेयर द्वीप का नाम रखा गया.
  3. ब्रिटेन और ब्रिटिश भारत काल के दौरान भारत के सम्राट किंग जॉर्ज पंचम की मूर्ति 1936 में इंडिया गेट पर लगाई गई थी. इसे किंग जॉर्ज पंचम को श्रद्धांजलि के तौर पर देखा जाता था. 8 सितंबर 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने यहां सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा का अनावरण किया. इसके साथ ही गुलामी के एक और प्रतीक को खत्म कर दिया गया.
  4. सेंगोल चोल इतिहास के समय से भारत में शासन का प्रतीक था.इतिहास के कालखंड से जुड़ी एक रिपोर्ट के मुताबिक, राजदंड का प्रयोग मौर्य साम्राज्य (322-185 ईसा पूर्व) में भी हुआ करता था. मौर्य सम्राटों ने अपने विशाल साम्राज्य पर अपने अधिकार को दर्शाने के लिए राजदंड का इस्तेमाल किया था. चोल साम्राज्य (907-1310 ईस्वी) के अलावा गुप्त साम्राज्य (320-550 ईस्वी), और विजयनगर साम्राज्य (1336-1646 ईस्वी) के इतिहास में भी राजदंड प्रयोग किया गया है.फिर मुगलों और अंग्रेजों ने इसे हटा दिया. बाद में भारत आजाद हुआ तो भी ये राजदंड इस्तेमाल नहीं किया गया. 28 मई 2023 को पीएम मोदी ने इसे नई संसद में एकबार फिर स्थापित किया.
  5. भारतीय नौसेना ने सितंबर 2022 में अपना नया ध्वज लॉन्च किया. नए ध्वज में सेंट जॉर्ज क्रॉस को हटा दिया गया है और इसकी जगह एक नीले रंग का ऑक्टागन बनाया गया है. इस ऑक्टागन को गोल्डन शील्ड से कवर किया गया है. ऑक्टागन के अंदर नेवी का क्रेस्ट है, जिसमें ऊपर अशोक चिह्न है और नीचे संस्कृत में 'शं नो वरुणः' लिखा है. इस बदलाव का मकसद गुलामी के प्रतीक को हटाना और भारत की समुद्री विरासत को दिखाना है. 
  6. पुरानी संसद भवन का निर्माण ब्रिटिश शासनकाल में प्रशासनिक भवन के तौर पर किया गया था. इसके निर्माण की आधारशिला तब रखी गई थी, जब ब्रिटिश सरकार ने अपनी राजधानी दिल्ली को बनाया. इसके पहले कोलकाता अंग्रेजी हुकूमत की राजधानी हुआ करती थी. ब्रिटिश सरकार ने इसी प्रशासनिक भवन के पूरे देश पर नियंत्रण करने की योजना बनाई थी और इसलिए इस भवन का निर्माण किया गया था.पुराने संसद भवन का शिलान्यास 1921 में प्रिंस ऑर्थर ने किया था और 6 साल बाद 1927 में इसका उद्याटन किया गया था. प्रिंस ऑर्थर यूके की महारानी विक्टोरिया के तीसरे बेटे थे.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 दिसंबर 2020 को नए संसद भवन का शिलान्यास किया गया था और उद्याटन 28 मई 2023 को किया गया था.
  7. इसी तरह साल 1940 में दिल्ली में रेस कोर्स बनाया गया था, जो दिल्ली रेस क्लब का हिस्सा था. यहां घोड़ों की दौड़ होती थी, लिहाजा इस जगह का नाम रेस कोर्स रोड रख दिया गया था. इसके बाद 1980 के दशक में लुटियंस दिल्ली में पांच बंगले बने, जिन्हें प्रधानमंत्री आवास के रूप में स्थायी निवास बना दिया गया. राजीव गांधी देश के पहले प्रधानमंत्री बने, जिन्होंने साल 1984 से 7 रेस कोर्स रोड पर स्थायी रूप से रहना शुरू कर दिया.सितंबर, 2016 में इसका नाम बदलकर लोक कल्याण मार्ग कर दिया गया. इसके साथ ही सेना से लेकर अन्य कई अन्य अंग्रेजों के प्रतीकों को समाप्त करने के मोदी सरकार फैसला ले चुकी है और कई पर मंथन जारी है.

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