सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स ऑर्डिनेंस 2021 (Tribunal Reforms Ordinance 2021) के उन प्रावधानों को रद्द कर दिया है, जिसमें विभिन्न ट्रिब्यूनल के सदस्यों का कार्यकाल चार साल तय किया गया था. सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 2:1 के बहुमत से यह फैसला दिया है. जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस एस रवींद्र भट के बहुमत के फैसले ने कहा कि इसने पहले के फैसले में दिए गए स्पष्ट निर्देश का उल्लंघन किया है कि ट्रिब्यूनल सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष होना चाहिए.
जस्टिस हेमंत गुप्ता ने इस फैसले पर असहमति जताई थी लेकिन बहुमत से फैसला किया गया. सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने मद्रास बार एसोसिएशन द्वारा अधिकरण सुधार (सुव्यवस्थीकरण और सेवा शर्तें) अध्यादेश [Tribunal Reforms (Rationalisation and Conditions of Service) Ordinance], 2021 को चुनौती देने वाली याचिका पर ये फैसला सुनाया है.
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दरअसल, इस अध्यादेश द्वारा वित्त अधिनियम (Finance Act), 2017 की धारा 184 और धारा 186 में संशोधन किया गया है ताकि खोज-सह-चयन समितियों के संयोजन और उनके सदस्यों के कार्यकाल की अवधि से संबंधित प्रावधानों को इसमें शामिल किया जा सके.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में ट्रिब्यूनल रूल्स 2020 में कई दोषों को देखते हुए मद्रास बार एसोसिएशन के एक पुराने मामले में उन्हें संशोधित करने के लिए कई निर्देश जारी किए थे. बाद में केंद्र सरकार ने 2021 के अध्यादेश को कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुपालन में लागू किया था. इस अध्यादेश को मद्रास बार एसोसिएशन ने यह कहते हुए चुनौती दी कि यह सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करता है.
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