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पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझना होगा...इमरान प्रतापगढ़ी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?

अदालत ने कहा, ‘‘प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पुलिस को कुछ संवेदनशीलता दिखानी होगी. उन्हें (संविधान के अनुच्छेद को) पढ़ना और समझना चाहिए. संविधान लागू होने के 75 साल बाद, अब तो कम से कम पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझना होगा.’’

पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझना होगा...इमरान प्रतापगढ़ी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?
नई दिल्ली:

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि संविधान लागू होने के 75 साल बाद तो ‘‘कम से कम' पुलिस को वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझना चाहिए. इस टिप्पणी के साथ ही न्यायालय ने सोमवार को कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी की उस याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया जिसमें कथित तौर पर भड़काऊ गीत साझा करने के लिए उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया गया है.

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को संरक्षित करने के महत्व को रेखांकित किया. न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ‘‘जब वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात आती है, तो इसे संरक्षित करना होगा.'' न्यायाधीश ने आगे कहा, ‘‘प्राथमिकी दर्ज करने से पहले पुलिस को कुछ संवेदनशीलता दिखानी होगी. उन्हें (संविधान के अनुच्छेद को) पढ़ना और समझना चाहिए. संविधान लागू होने के 75 साल बाद, अब तो कम से कम पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझना होगा.''

न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि ‘‘आखिरकार तो यह एक कविता'' थी और वास्तव में यह अहिंसा को बढ़ावा देने वाली थी. न्यायमूर्ति ओका ने कहा, ‘‘इसके अनुवाद में कुछ समस्या प्रतीत होती है. यह किसी धर्म के विरुद्ध नहीं है. यह कविता अप्रत्यक्ष रूप से कहती है कि भले ही कोई हिंसा में लिप्त हो लेकिन हम हिंसा में लिप्त नहीं होंगे. कविता यही संदेश देती है. यह किसी विशेष समुदाय के विरुद्ध नहीं है.''

गुजरात के जामनगर में आयोजित सामूहिक विवाह समारोह के दौरान कथित भड़काऊ गीत के लिए प्रतापगढ़ी के खिलाफ तीन जनवरी को प्राथमिकी दर्ज की गई थी. गुजरात पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ‘‘सड़क छाप'' किस्म की कविता थी और इसे फैज अहमद फैज जैसे प्रसिद्ध शायर और लेखक से नहीं जोड़ा जा सकता. उन्होंने कहा, ‘‘(सांसद के) वीडियो संदेश ने परेशानी पैदा की.''

सांसद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वीडियो संदेश प्रतापगढ़ी ने नहीं बल्कि उनकी टीम ने साझा किया था. मेहता ने कहा कि सांसद को उनकी टीम द्वारा उनके सोशल मीडिया अकाउंट पर वीडियो संदेश अपलोड किए जाने पर भी जवाबदेह ठहराया जाएगा. दलीलें सुनने के बाद पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया. सिब्बल ने पूर्व में कहा था कि उच्च न्यायालय का आदेश कानून की दृष्टि से गलत है क्योंकि न्यायाधीश ने कानून को नजरअंदाज किया.

शीर्ष अदालत ने 21 जनवरी को कथित रूप से संबंधित गीत का संपादित वीडियो पोस्ट करने के लिए प्रतापगढ़ी के खिलाफ कार्यवाही पर रोक लगा दी थी और गुजरात सरकार तथा शिकायतकर्ता किशनभाई दीपकभाई नंदा को उनकी अपील पर नोटिस जारी किया था. कांग्रेस नेता ने गुजरात उच्च न्यायालय के 17 जनवरी के आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की उनकी याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि जांच अभी प्रारंभिक चरण में है.

कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रतापगढ़ी पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 (धर्म, जाति आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 197 (राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने वाले आरोप, दावे) के तहत मामला दर्ज किया गया था. प्रतापगढ़ी द्वारा ‘एक्स' पर अपलोड की गई 46 सेकंड की वीडियो क्लिप में, जब वह चल रहे थे, तो उन पर फूलों की पंखुड़ियां बरसाई जा रही थीं. इस दौरान पृष्ठभूमि में एक गाना बज रहा था. प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि इस गाने के बोल भड़काऊ, राष्ट्रीय एकता के लिए हानिकारक और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले हैं.

प्राथमिकी को रद्द करने और दरकिनार करने की अपनी याचिका में उन्होंने दावा किया कि कविता में ‘‘प्रेम और अहिंसा का संदेश'' है. प्रतापगढ़ी ने कहा कि उन्हें परेशान करने के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई. प्रतापगढ़ी ने यह भी दावा किया कि कांग्रेस का सदस्य होने के कारण उन्हें फंसाया गया.

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