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किसी ने वॉट्सऐप पर भेज दिया चाइल्ड पॉर्न तो क्या फंस जाएंगे आप? जानें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का निचोड़

सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी से जुड़े इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, (POCSO एक्ट 2012) के तहत अपराध के दायरे में आ सकता है

किसी ने वॉट्सऐप पर भेज दिया चाइल्ड पॉर्न तो क्या फंस जाएंगे आप? जानें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का निचोड़
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार बच्चों से जुड़ी पोर्नोग्राफी देखना और उसे अपने फोन या फिर लैपटॉप में रखने पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये जरूरी नहीं कि आपके फोन में अगर चाइल्‍ड पोर्न है, तो आप अपराधी हो जाएंगे. लेकिन यदि आपको कोई चाइल्‍ड पोर्न फॉवर्ड करता है और आप उसे डाउनलोड कर लेते हैं या फिर देखते हैं, तो आप अपराध की श्रेणी में आ जाएंगे. अदालत ने साफ किया कि चाइल्‍ड पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और उसे देखना पॉक्सो एक्‍ट के तहत अपराध की श्रेणी में रखा गया है. तो चलिए आपको बताते हैं कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित यह पूरा मामला क्या है और किस तरह से सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंचा... 

चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना और डाउनलोड करना, दोनों पॉक्सो अधिनियम के तहत अपराध की श्रेणी में आएंगे. यह फैसला सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को मद्रास हाई कोर्ट के उस फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनाया, जिसमें कहा गया था कि निजी तौर पर चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना या उसे डाउनलोड करना पॉक्सो अधिनियम के दायरे में नहीं आता है.   

मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" शब्द को "बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री" से बदलने का सुझाव भी दिया है. बता दें कि इस वर्ष मार्च महीने में, मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और उसे अपने पास रखना कोई अपराध नहीं है.

मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में चेन्नई के 28 वर्षीय व्यक्ति को दोष मुक्त करते हुए कहा था कि निजी तौर पर बाल पोर्नोग्राफी देखना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के दायरे में नहीं आता है. 

न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश की पीठ ने तर्क दिया कि अभियुक्त ने केवल सामग्री डाउनलोड की थी और निजी तौर पर पोर्नोग्राफी देखी थी और इसे न तो प्रकाशित किया गया था और न ही दूसरों के लिए प्रसारित किया गया था. 'चूंकि उसने पोर्नोग्राफिक उद्देश्यों के लिए किसी बच्चे या बच्चों का इस्तेमाल नहीं किया है, इसलिए इसे अभियुक्त के नैतिक पतन के रूप में ही समझा जा सकता है.'

चेन्नई पुलिस ने आरोपी का फोन जब्त कर पाया कि उसने चाइल्ड पोर्न वीडियो डाउनलोड कर अपने पास रखी थी. इसके बाद सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 बी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 14(1) के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की थी. भारत में, पॉक्सो अधिनियम 2012 और आईटी अधिनियम 2000, अन्य कानूनों के तहत, बाल पोर्नोग्राफी के निर्माण, वितरण और कब्जे को अपराध घोषित किया गया है.

चाइल्ड पोर्न देखने या डाउनलोड करने को SC ने POCSO के तहत माना अपराध, मद्रास हाई कोर्ट का फैसला पलटा

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