मंगलवार को राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई. भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ मामले की सुनवाई कर रही थी. इस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का जिक्र भी हुआ. याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल सुनवाई में हिस्सा ले रहे थे. वह राजद्रोह कानून के दुरुपयोग के बारे में बहस कर रहे थे. सिब्बल ने कहा कि पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि हम जितनी जल्दी राजद्रोह कानून से छुटकारा पा लें उतना अच्छा है. इस पर केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि जो नेहरू नहीं कर सके, वर्तमान सरकार कर रही है. हम वह करने की कोशिश कर रहे हैं, जो पंडित नेहरू तब नहीं कर सकते थे.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसने राजद्रोह कानून के प्रावधानों की फिर से जांच और पुनर्विचार करने का फैसला किया है. सॉलिसिटर जनरल इस तथ्य का जिक्र कर रहे थे कि केंद्र ने शीर्ष अदालत से कहा था कि वह मानवाधिकारों पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के दृष्टिकोण और स्वतंत्रता के 75 साल का जश्न मनाने वाले देश के आलोक में कानून की फिर से जांच करने के लिए तैयार है. बता दें कि सरकार ने देश के औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून का बचाव किया था और सुप्रीम कोर्ट से इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करने के लिए कहा था.
राजद्रोह कानून के व्यापक दुरुपयोग और इसको लेकर केंद्र और राज्यों की व्यापक आलोचना से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह महात्मा गांधी जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किए गए प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही है.शनिवार को केंद्र ने राजद्रोह कानून और संविधान पीठ के 1962 के फैसले का बचाव करते हुए इसकी वैधता को बरकरार रखने की बात कही थी. सरकार ने कहा था कि लगभग छह दशकों तक "समय की कसौटी" का सामना किया जा चुका है और इसके दुरुपयोग के उदाहरणों को लेकर कभी भी इस पर पुनर्विचार करने को उचित नहीं ठहराया जा सकता.
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