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जुआ खेलते पकड़े जाने पर क्या नहीं लड़ पाएंगे चुनाव? सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों को लेकर दे दिया ये बड़ा फैसला

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने ये फैसला दिया है. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट  ने बुधवार को कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें एक सहकारी समिति के निदेशक मंडल में सर्वाधिक वोट लेकर निर्वाचित  व्यक्ति को अयोग्य घोषित कर दिया गया था.

जुआ खेलते पकड़े जाने पर क्या नहीं लड़ पाएंगे चुनाव? सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों को लेकर दे दिया ये बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा फैसला
नई दिल्ली:

देश ज्यादातर चौक या चौपाल पर खाली समय में लोग आपको ताश खेलकर टाइम पास करते नजर आ जाएंगे. ऐसे में अकसर पुलिस ऐसे लोगों को पहले पकड़ती है और बाद में जुर्माना लगाकर छोड़ देती है. लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि पुलिस का इतना भर करने से आप भविष्य में कोई चुनाव लड़ पाएंगे या नहीं,इसपर बड़ा असर पड़ सकता है. हो सकता है अगर आपने कोई चुनाव जीता हो तो आपको अयोग्य भी घोषित किया जा सकता है. ऐसा ही एक मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. कोर्ट ने साफ कर दिया कि जुआ खेलते पकड़े जाने और बाद में जुर्माने पर छूटने के बाद किसी को अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता. और ना ही चुनाव रद्द किया जा सकता है. 

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने ये फैसला दिया है. इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट  ने बुधवार को कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें एक सहकारी समिति के निदेशक मंडल में सर्वाधिक वोट लेकर निर्वाचित  व्यक्ति को अयोग्य घोषित कर दिया गया था. इस फैसले का आधार ये बताया गया था कि  सड़क किनारे जुआ खेलने के लिए राज्य पुलिस अधिनियम के तहत उसे दोषी ठहराया जाना नैतिक रूप से भ्रष्ट आचरण है. मामले के अनुसार हनुमानथारायप्पा वाईसी व कुछ अन्य लोग कथित तौर पर सड़क किनारे ताश खेल रहे थे, तभी पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया व बिना किसी सुनवाई के उन पर 200 रुपये का जुर्माना लगा दिया.

इसके बाद उस ने सरकारी पोर्सिलेन फैक्टरी कर्मचारी आवास सहकारी समिति के निदेशक मंडल में एक पद के लिए चुनाव लड़ा. वो सर्वाधिक वोटों से जीता गया लेकिन सोसायटी के रजिस्ट्रार ने उसके चुनाव को खारिज कर दिया. इसे कर्नाटक हाईकोर्ट ने बरकरार रखा. इसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को पलट दिया और याचिकाकर्ता को सहकारी समिति के निदेशक मंडल में बहाल कर दिया. 

पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि चीजों की प्रकृति के अनुसार, हमें यह मुश्किल लगता है कि अपीलकर्ता के खिलाफ़ लगाए गए कदाचार में नैतिक अधमता शामिल है.यह सर्वविदित है कि 'नैतिक अधमता' शब्द का इस्तेमाल कानूनी और सामाजिक भाषा में ऐसे आचरण का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो स्वाभाविक रूप से नीच, भ्रष्ट या किसी तरह से भ्रष्टता दिखाने वाला हो. जस्टिस कांत ने कहा कि हर वह कार्रवाई जिसके खिलाफ़ कोई आपत्ति उठा सकता है, जरूरी नहीं कि उसमें नैतिक अधमता शामिल हो.ताश खेलने के कई रूप हैं.

यह स्वीकार करना मुश्किल है कि इस तरह के हर खेल में नैतिक अधमता शामिल होगी, खासकर जब इसे मनोरंजन के तौर पर खेला जाता है.वास्तव में, हमारे देश के अधिकांश भागों में, जुआ या सट्टेबाजी के तत्व के बिना ताश खेलना गरीबों के मनोरंजन के स्रोत के रूप में स्वीकार किया जाता है. इसके अलावा, अपीलकर्ता को आदतन जुआरी नहीं पाया गया है.प्रासंगिक रूप से, अपीलकर्ता को सबसे अधिक मतों के साथ सोसायटी के निदेशक मंडल में चुना गया है.उसके चुनाव को रद्द करने की परिणामी सजा उसके द्वारा किए गए कथित कदाचार की प्रकृति के लिए अत्यधिक अनुपातहीन है.

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