
प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट ने सूखे पर अपना पहला फैसला सुनाते हुए बुधवार को कहा कि केंद्र सरकार को इससे निपटने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करना चाहिए। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट सूखे पर तीन हिस्सों में फैसला सुनाएगा, जिसका आज पहला फैसला आया। इससे पहले की सुनवाई के दौरान देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र के साथ-साथ राज्यों को भी सूखे की स्थिति को गंभीरता से नहीं लेने पर कई बार फटकार लगाई थी।
आत्महत्या और किसानों का पलायन भी होगा शामिल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों को सूखाग्रस्त घोषित करते समय उसमें आत्महत्या और किसानों के पलायन को भी शामिल किया जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने कृषि सचिव को कहा कि वह बिहार, हरियाणा, गुजरात के मुख्य सचिव के साथ एक हफ्ते की भीतर मीटिंग करके तय करें कि वहां सूखे के हालात हैं या नहीं।
सूखा घोषित करने की होगी समयसीमा
कोर्ट के आदेश के अनुसार 'ड्रॉट मैन्युअल' भी रिवाइज किया जाएगा और इसमें यह समयसीमा दी जाएगी कि राज्य कब सूखा घोषित करें। सर्वोच्च अदालत ने यह भी आदेश दिया है कि सरकार सूखे से निपटने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करे।
सुप्रीम कोर्ट में सूखे पर अब तक की सुनवाई पर एक नजर
इससे पहले 27 अप्रैल को सूखे से जुड़े एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीएल मैचों को लेकर मुंबई और महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन की याचिका खारिज करते हुए महाराष्ट्र में 1 मई के बाद आईपीएल पर रोक बरकरारा रखी थी। चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा था कि सूखे के चलते लोगों को पानी नहीं मिल रहा है और ऐसे में मैचों को बाहर ले जाना बेहतर रहेगा। इस आदेश से सुप्रीम कोर्ट ने इशारा कर दिया था कि बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश सही है कि लोगों की जिंदगी से बढ़कर क्रिकेट नहीं है।
20 अप्रैल की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सूखे की स्थिति पर शपथ पत्र के बजाय टिप्पणी प्रस्तुत करने को लेकर गुजरात को आड़े हाथों लिया था। कोर्ट ने कहा था कि आपने हलफनामा दाखिल क्यों नहीं किया? चीजों को इतना हल्के में न लें। सिर्फ इसलिए कि आप गुजरात हैं, इसका मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी करेंगे।
कोर्ट ने कहा- सूचना देना केंद्र की जिम्मेदारी
कोर्ट ने यह भी कहा था कि यह केंद्र की जिम्मेदारी है कि वह '(सूखा प्रभावित) राज्यों को सूचित करे और चेतावनी दे कि वहां कम बारिश होगी।' कोर्ट ने कहा था कि अगर आपको बताया जाता है कि किसी राज्य के एक खास एऱिया में फसल का 96 फीसदी हिस्सा उगाया जाता है लेकिन आपको यह सूचना मिले कि वहां कम बारिश होगी, तो उन्हें यह मत कहिए सब ठीक है। बल्कि इन राज्यों को बताइए कि वहां सूखा पड़ने की संभावना है।
12 अप्रैल की सुनवाई में सर्वोच्च कोर्ट ने हरियाणा में सूखे पर सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार को खूब फटकारा था वहीं केंद्र पर भी बड़े सवाल उठाए थे। कोर्ट ने केंद्र से कहा कि क्या ये ही तरीका है कि सूखा पड़े और कोई कोर्ट आए और कोर्ट सूखा घोषित करने के आदेश जारी करे।
गौरतलब है कि पिछले साल की तुलना में इस साल हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, ओड़िशा, राजस्थान, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में प्रमुख जलाशयों में जल का स्तर बहुत कम हो गया है और वहां सूखे की गंभीर स्थिति है।
आत्महत्या और किसानों का पलायन भी होगा शामिल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों को सूखाग्रस्त घोषित करते समय उसमें आत्महत्या और किसानों के पलायन को भी शामिल किया जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने कृषि सचिव को कहा कि वह बिहार, हरियाणा, गुजरात के मुख्य सचिव के साथ एक हफ्ते की भीतर मीटिंग करके तय करें कि वहां सूखे के हालात हैं या नहीं।
सूखा घोषित करने की होगी समयसीमा
कोर्ट के आदेश के अनुसार 'ड्रॉट मैन्युअल' भी रिवाइज किया जाएगा और इसमें यह समयसीमा दी जाएगी कि राज्य कब सूखा घोषित करें। सर्वोच्च अदालत ने यह भी आदेश दिया है कि सरकार सूखे से निपटने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करे।
सुप्रीम कोर्ट में सूखे पर अब तक की सुनवाई पर एक नजर
इससे पहले 27 अप्रैल को सूखे से जुड़े एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आईपीएल मैचों को लेकर मुंबई और महाराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन की याचिका खारिज करते हुए महाराष्ट्र में 1 मई के बाद आईपीएल पर रोक बरकरारा रखी थी। चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर ने कहा था कि सूखे के चलते लोगों को पानी नहीं मिल रहा है और ऐसे में मैचों को बाहर ले जाना बेहतर रहेगा। इस आदेश से सुप्रीम कोर्ट ने इशारा कर दिया था कि बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश सही है कि लोगों की जिंदगी से बढ़कर क्रिकेट नहीं है।
20 अप्रैल की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सूखे की स्थिति पर शपथ पत्र के बजाय टिप्पणी प्रस्तुत करने को लेकर गुजरात को आड़े हाथों लिया था। कोर्ट ने कहा था कि आपने हलफनामा दाखिल क्यों नहीं किया? चीजों को इतना हल्के में न लें। सिर्फ इसलिए कि आप गुजरात हैं, इसका मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी करेंगे।
कोर्ट ने कहा- सूचना देना केंद्र की जिम्मेदारी
कोर्ट ने यह भी कहा था कि यह केंद्र की जिम्मेदारी है कि वह '(सूखा प्रभावित) राज्यों को सूचित करे और चेतावनी दे कि वहां कम बारिश होगी।' कोर्ट ने कहा था कि अगर आपको बताया जाता है कि किसी राज्य के एक खास एऱिया में फसल का 96 फीसदी हिस्सा उगाया जाता है लेकिन आपको यह सूचना मिले कि वहां कम बारिश होगी, तो उन्हें यह मत कहिए सब ठीक है। बल्कि इन राज्यों को बताइए कि वहां सूखा पड़ने की संभावना है।
12 अप्रैल की सुनवाई में सर्वोच्च कोर्ट ने हरियाणा में सूखे पर सुनवाई करते हुए हरियाणा सरकार को खूब फटकारा था वहीं केंद्र पर भी बड़े सवाल उठाए थे। कोर्ट ने केंद्र से कहा कि क्या ये ही तरीका है कि सूखा पड़े और कोई कोर्ट आए और कोर्ट सूखा घोषित करने के आदेश जारी करे।
गौरतलब है कि पिछले साल की तुलना में इस साल हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, ओड़िशा, राजस्थान, झारखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल में प्रमुख जलाशयों में जल का स्तर बहुत कम हो गया है और वहां सूखे की गंभीर स्थिति है।
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