बच्चों की तस्करी पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से पूछा, अनाथालयों में बच्चों को क्या सुविधा दी जा रही है (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
अनाथाश्रमों में बच्चों की तस्करी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. कोर्ट ने कहा कि दो हफ्तों में राज्य बताएं कि अनाथालयों में बच्चों को क्या सुविधाएं दी जा रही हैं और किसी को गोद देने की क्या प्रक्रिया है?
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सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से ये भी पूछा है कि मानवाधिकार कानून के तहत हर जिले में मानवाधिकार अदालतों का गठन क्यों नहीं किया गया? नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइटस ( NCPCR) की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये बड़ा कदम उठाया.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश का भविष्य बच्चे के चरित्र और नियति पर निर्भर करता है. एक बच्चे को अनाथों के प्रभारी व्यक्ति की कल्पना और फैंसी पर दूर नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने अनाथालयों में बाल तस्करी पर चिंता व्यक्त की है और राज्य सरकारों को तस्करी की अनुमति नहीं देने को कहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा बच्चों को बेच दिया जाता है तो इससे ज्यादा कुछ विनाशकारी नहीं हो सकता. यह एक ऐसी स्थिति है जिसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है. समाज के हर एक बच्चे का अधिकार पवित्र है. देश के भविष्य के लिए यह चरित्र और बच्चे की नियति पर निर्भर करता है और इस संबंध में राज्य की एक बड़ी भूमिका है. यह सुरक्षा के दायरे में है.
कोर्ट ने कहा कि बच्चे की गरिमा का सरंक्षण किया जाना चाहिए. एक बच्चे को अनाथों के प्रभारी या व्यक्ति के स्वाभाविक या स्वभाव में दूर नहीं किया जा सकता है. मानवाधिकार न्यायालयों की स्थापना के लिए और विशेष लोक अभियोजकों को नियुक्त करने के लिए क़ानून का जनादेश है.
NCPCR ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा एक एडहोक कमेटी बनाकर अनाथ बच्चों को गोद देने की प्रक्रिया को कानून और अनाथ बच्चों के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन बताया था और कहा था कि ये बाल तस्करी है. जब NCPCR ने इस संबंध में राज्य सरकार से जवाब मांगा को कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी.
NCPCR ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सभी राज्यों तक बढा दिया है.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा बच्चों को बेच दिया जाता है तो इससे ज्यादा कुछ विनाशकारी नहीं हो सकता. यह एक ऐसी स्थिति है जिसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है. समाज के हर एक बच्चे का अधिकार पवित्र है. देश के भविष्य के लिए यह चरित्र और बच्चे की नियति पर निर्भर करता है और इस संबंध में राज्य की एक बड़ी भूमिका है. यह सुरक्षा के दायरे में है.
कोर्ट ने कहा कि बच्चे की गरिमा का सरंक्षण किया जाना चाहिए. एक बच्चे को अनाथों के प्रभारी या व्यक्ति के स्वाभाविक या स्वभाव में दूर नहीं किया जा सकता है. मानवाधिकार न्यायालयों की स्थापना के लिए और विशेष लोक अभियोजकों को नियुक्त करने के लिए क़ानून का जनादेश है.
NCPCR ने पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा एक एडहोक कमेटी बनाकर अनाथ बच्चों को गोद देने की प्रक्रिया को कानून और अनाथ बच्चों के मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन बताया था और कहा था कि ये बाल तस्करी है. जब NCPCR ने इस संबंध में राज्य सरकार से जवाब मांगा को कलकत्ता हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी.
NCPCR ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सभी राज्यों तक बढा दिया है.
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