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This Article is From Feb 21, 2023

"अगर सिर्फ एक या दो स्पीकर भटके तो हम नियम क्यों बदलें?": सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव गुट से पूछे सवाल

जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि क्या हम घड़ी की सुईया वापस कर सकते हैं? सिर्फ इसलिए कि एक या दो स्पीकर भटक जाते हैं, क्या हमें 10वीं अनुसूची को खत्म करने या स्पीकर की भूमिका को फिर से परिभाषित करने के लिए कहा जा रहा है?

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"अगर सिर्फ एक या दो स्पीकर भटके तो हम नियम क्यों बदलें?": सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव गुट से पूछे सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव गुट से कई सवाल पूछे हैं. (प्रतीकात्‍मक)
नई दिल्‍ली:

उद्धव बनाम शिंदे गुट के बीच विधायकों की अयोग्यता का मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है. इस मामले की सुनवाई CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में 5 जजों के संविधान पीठ कर रही है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना के उद्धव गुट से आज कई सवाल पूछे. उद्धव गुट से पूछा कि अगर सिर्फ एक या दो स्‍पीकर भटके तो हम नियम क्यों बदलें? साथ ही कोर्ट ने पूछा कि स्पीकर के कामकाज की समीक्षा पर पार्टियों ने कितनी बार चर्चा की है और क्या 10वीं अनुसूची की समस्याओं पर कभी संसद में चर्चा हुई है?

सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव गुट से पूछा कि 10वीं अनुसूची में संसद द्वारा दिए गए स्पीकर के काम पर कभी किसी सांसद ने मुद्दा उठाया है? उन्‍होंने कहा कि हम यहां केवल व्याख्या करने के लिए हैं. जस्टिस हिमा कोहली ने कहा कि क्या हम घड़ी की सुईया वापस कर सकते हैं? सिर्फ इसलिए कि एक या दो स्पीकर भटक जाते हैं, क्या हमें 10वीं अनुसूची को खत्म करने या स्पीकर की भूमिका को फिर से परिभाषित करने के लिए कहा जा रहा है?

वहीं जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि वे विधायक हैं, सांसद हैं जिन्होंने फैसला किया है कि वह ट्रिब्यूनल होंगे. अदालत केवल व्याख्या कर रही है. उन्‍होंने कहा कि जब तक संवैधानिक निर्णय है, हम उस स्पीकर के अनुसार चलेंगे जो दसवीं अनुसूची के तहत न्यायाधिकरण है. पार्टियों ने कितनी बार बैठकर फैसला किया है कि यह काम नहीं कर रहा है. 

उन्‍होंने कहा कि संसद में कितनी बार इस पर चर्चा हुई है? यह हमें कहीं नहीं ले जाएगा. जब तक कोई संवैधानिक संशोधन नहीं होता है. राजनीतिक दलों, सांसदों ने 10वीं अनुसूची और स्पीकर की भूमिका की समस्या पर ध्यान क्यों नहीं दिया? 

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि राजनीतिक दलों और सांसदों ने 10वीं अनुसूची और अध्यक्ष की भूमिका को लेकर उठने वाली समस्या पर ध्यान क्यों नहीं दिया?

जस्टिस नरसिम्हा ने भी सवाल उठाते हुए पूछा कि सांसदों ने इस मामले को कितनी बार उठाया कि स्पीकर के लिए नियम बदला जाए? उन्होंने कहा यह संसद का काम है, आखिर संसद में क्यों नहीं किया? यह अदालत के द्वारा तय किए जाने वाला कोई मुद्दा नहीं है. साथ ही जस्टिस हिमा कोहली ने कहा अगर एक या दो स्पीकर के द्वारा नियम का पालन नहीं किया गया तो कोर्ट को दसवीं अनुसूची के खिलाफ जाना चाहिए?

वहीं उद्धव ठाकरे की ओर से कपिल सिब्बल ने जवाब में कहा कि सत्ता में जो पार्टी रहती है, वह इसे कभी नहीं बदलना चाहेगी क्योंकि सभी स्पीकर के कार्यालय का उपयोग अपने लाभ लेने के लिए करना चाहते हैं. 

वहीं जब उद्धव खेमे ने स्पीकर के आचरण को निशाना बनाया और संविधान की 10वीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) की समीक्षा की मांग की तो सुप्रीम कोर्ट ने कई सवाल पूछे. CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि तो चुनौती यह है कि स्पीकर को अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करना था, क्या वह संवैधानिक चुनौती इस बात पर निर्भर करती है कि स्पीकर कौन है. उन्‍होंने कहा कि या तो आप स्पीकर के अधिकार को खत्म कर दें या फिर जो निर्णय हो आपको संवैधानिक कार्यालय का सम्मान करना होगा. 

जस्टिस नरसिम्हा ने कहा कि अगर विधायकों, सांसदों ने स्पीकर चुनने का फैसला किया है और एक तरफ अगर स्पीकर आपके साथ है तो आप कहेंगे कि स्पीकर को क्या दिक्कत है. अगर वह आपके साथ नहीं हैं, तो आप कहेंगे कि देखिए स्पीकर कैसे व्यवहार कर रहा है. जहां तक संवैधानिक मुद्दे का संबंध है, हमें स्पीकर के अधिकार का सम्मान करना होगा. 

सिब्बल ने कहा कि  उस तर्क से 27 जून का आदेश पारित नहीं किया जा सकता था. हम चुनाव आयोग के पास गए और कहा कि अयोग्यता पर विचार करने से पहले मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार करें. चुनाव आयोग ने कहा कि इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कोई रोक नहीं है, इसलिए हम इस मामले का फैसला करेंगे. 

उन्‍होंने कहा कि हमने चुनाव आयोग से पूछा कि मान लीजिए आप उन्हें चुनाव चिह्न देते हैं और फिर कोर्ट का फैसला उनके खिलाफ आता है क्या हम चुनाव चिन्ह वापस लेंगे? यह एक और मुद्दा है? उन्‍होंने कहा कि यह एक राजनीतिक लड़ाई हैं जिसमें कोई एक जीतता है और दूसरा हारता है, लेकिन चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं में लोगों का विश्वास बनाए रखा जाना चाहिए. चुनाव आयोग किसी भी पक्ष को सुने बिना और हमारे द्वारा दिए गए जवाब के महज कुछ घंटे बाद ही 8 अक्टूबर को चुनाव निशान तीर-धनुष को फ्रीज कर दिया. जबकि चुनाव निशान अधिनियम के तहत ऐसी कार्यवाही के लिए सुनवाई जरूरी है. 

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