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This Article is From Nov 13, 2016

गोलियों के साये से दूर, एलओसी के पास के गांव के चार लड़के कर रहे आईआईटी में पढ़ाई

गोलियों के साये से दूर, एलओसी के पास के गांव के चार लड़के कर रहे आईआईटी में पढ़ाई
पुंछ: भारत और पाकिस्तान में एलओसी पर आए दिन पाकिस्तान संघर्षविराम का उल्लंघन कर रहा है और भारत को भी जवाबी कार्रवाई में गोलियों से जवाब देना पड़ रहा है. यह खबर अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बनी हुई हैं, ऐसे में सीमा से लगे गांव जहां इस गोलीबारी से परेशान हैं और ऐसे में एलओसी के समीप बसे गांव से चेहरे पर रौनक बिखेरने वाली खबर है.

जम्मू एवं कश्मीर में लाइन ऑफ कंट्रोल (LoC) से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित एक गांव के चार लड़कों ने आईआईटी में दाखिला पाया है. पुंछ के इस गांव पर भी पाकिस्तान की ओर से जारी संघर्षविराम उल्लंघन का असर दिखाई दे रहा है. पुंछ के शिंद्रा गांव के इन चारों छात्रों ने इसी साल अलग-अलग आईआईटी संस्थानों में अपने लिए स्थान बनाया है. इन युवाओं का मानना है कि राज्य का युवा अब समझ गया है कि उनके हाथ में पत्थर देने वाले लोग उनका भला नहीं सोचते.

शिंद्रा गांव गुर्जर मुस्लिमों का पिछड़े क्षेत्र माना जाता है। इस गांव के उन्नीस साल के शाहिद अफरीदी, उस्मान हाफिज (17), हिलाल अहमद (19), और आकिब मुज्तबा (18) ने आईआईटी में दाखिला पाया है. शाहिद IIT कानपुर में कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहा है वहीं, आकिब भुवनेश्वर से मकैनिकल इंजिनियरिंग, उस्मान, IIT दिल्ली से इलेक्ट्रिकल इंजिनियरिंग और हिलाल को IIT पटना में दाखिला मिला है जहां वह कंप्यूटर साइंस से इंजिनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है.

शाहिद का कहना है कि हम IIT में केवल इसलिए पढ़ सके क्योंकि हम भारत में हैं. दो साल पहले शाहिद को एक NGO के माध्यम से कोचिंग करने का अवसर मिला था. बाकी छात्रों ने खुद से दिल्ली में रहकर तैयारी की. शाहिद ने कहा कि मैं अपने नाम की तरह अच्छा बल्लेबाज तो नहीं हूं, लेकिन जब IIT में मेरे कई सारे दोस्त मुझे बाउंसर देकर सारे मुस्लिमों के आतंकवाद की तरफ झुकने की बात करते हैं तो मैं उनके बाउंसर से खुद को बचा ले जाता हूं. मुझे गर्व होता है कि सीमावर्ती इलाके से होने के बावजूद मैंने यह सफलता हासिल की.'

बता दें कि इन चारों को मई में आईआईटी में दाखिले की खबर मिली थी. उसके दो महीने बाद ही आतंकी बुरहान वानी को एनकाउंटर में मार गिराया था. ये चारों युवा यह साबित करते हैं कि केवल बुरहान वानी और पत्थर फेंकने वाले युवा ही कश्मीर का चेहरा नहीं हैं. ये चारों युवा जम्मू और कश्मीर की नई पीढ़ी का नेतृत्व करते हैं. सबसे अच्छी बात ये चारों छात्र खुले तौर पर भारत का समर्थन करते हैं.

इनके साथ इन लड़कों के माता-पिता भी इनकी कामयाबी से काफी खुश हैं. इन्हें अपने बच्चों पर गर्व है. इनका कहना है कि उनके बेटे आतंकवाद के साये से दूर हैं, यह देखकर उन्हें खुशी मिलती है. हिलाल के पिता का कहना है कि बचपन से हमने सिर्फ बंदूक की गोलियां सुनी थीं, हमें गर्व है कि हमारे बच्चों ने आतंक के साये से दूर रहकर अपने वास्तविक करियर को चुना. वे अपने सपने को पूरा कर रहे हैं.'

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