फाइल फोटो
नई दिल्ली:
न्यायमूर्ति श्रीकृष्णसमिति ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम में संशोधन की वकालत की है. समिति के अनुसार, जानकारी देने से मना सिर्फ तभी किया जाना चाहिए जब किसी व्यक्ति को होने वाला नुकसान पारदर्शिता या सरकारी प्राधिकरणों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी पर भारी पड़ जाए. श्रीकृष्ण समिति ने अपनी 213 पृष्ठ की रिपोर्ट में व्यक्तिगत जानकारी पर खुद व्यक्ति के अधिकार की सुरक्षा को लेकर एक नया कानून बनाने की वकालत की है. समिति ने कहा है कि निजता का अधिकार और सूचना का अधिकार कोई भी अपने आप में परिपूर्ण नहीं है. कुछ परिस्थितियों में इनमें एक दूसरे के समक्ष संतुलन साधन की जरूरत है. समिति ने कहा है कि डाटा सुरक्षा कानून इस तरह बनाया गया है कि जिसमें व्यक्तिगत आंकड़ों की जानकारी को एक सीमा तक ही प्रसंस्कृत करने दिय गया है.
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समिति ने कहा है कि पारदर्शिता और निजता के बीच टकराव है और इसके लिये सावधानी पूर्वक संतुलन साधने की आवश्यकता है. समिति ने कहा, ‘‘आरटीआई अधिनियम अधिकांश मामलों में सूचना सार्वजनिक करने का पक्ष लेता है और सार्वजनिक गतिविधियों में पारदर्शिता के महत्व को रेखांकित करता है. समिति इस बात से अवगत है कि आरटीआई अधिनियम की इस विशिष्टता ने सूचनाओं की स्वतंत्रता की रक्षा करने और सार्वजनिक सेवाओं में जिम्मेदारी विस्तृत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.’’ रिपोर्ट ने कहा, ‘‘अत: सूचनाओं को सिर्फ तभी सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं जब इससे होने वाला नुकसान पारदर्शिता के फायदे तथा सरकारी कार्यालयों की जिम्मेदारी पर भारी पड़ जाए.’’
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समिति ने प्रस्ताव दिया कि आरटीआई अधिनियम को यह स्पष्ट करने के लिए संशोधित किया जाना चाहिए कि सूचना संरक्षण अधिनियम में ऐसा कुछ भी नहीं है जो सूचनाएं सार्वजनिक किये जाने पर लागू होता हो और पारदर्शिता के आड़े आता हो. समिति ने रिपोर्ट में कहा, मूल प्रावधान के तहत मांगी गयी सूचनाओं को निश्चित तौर पर सार्वजनिक किया जाना चाहिए. उसने कहा कि इससे सार्वजनिक हितों तथा पारदर्शिता एवं जिम्मेदारी को बढ़ावा मिलता है. इस प्रकार की घोषणा से पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है. इसमें कहा गया है कि लेकिन अगर इस प्रकार की सूचना से निजता को नुकसान पहुंच सकता है और इस प्रकार की हानि जन हित से अधिक है तो सूचना को खुलासे से छूट दी जा सकती है.
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समिति ने कहा है कि पारदर्शिता और निजता के बीच टकराव है और इसके लिये सावधानी पूर्वक संतुलन साधने की आवश्यकता है. समिति ने कहा, ‘‘आरटीआई अधिनियम अधिकांश मामलों में सूचना सार्वजनिक करने का पक्ष लेता है और सार्वजनिक गतिविधियों में पारदर्शिता के महत्व को रेखांकित करता है. समिति इस बात से अवगत है कि आरटीआई अधिनियम की इस विशिष्टता ने सूचनाओं की स्वतंत्रता की रक्षा करने और सार्वजनिक सेवाओं में जिम्मेदारी विस्तृत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.’’ रिपोर्ट ने कहा, ‘‘अत: सूचनाओं को सिर्फ तभी सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं जब इससे होने वाला नुकसान पारदर्शिता के फायदे तथा सरकारी कार्यालयों की जिम्मेदारी पर भारी पड़ जाए.’’
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समिति ने प्रस्ताव दिया कि आरटीआई अधिनियम को यह स्पष्ट करने के लिए संशोधित किया जाना चाहिए कि सूचना संरक्षण अधिनियम में ऐसा कुछ भी नहीं है जो सूचनाएं सार्वजनिक किये जाने पर लागू होता हो और पारदर्शिता के आड़े आता हो. समिति ने रिपोर्ट में कहा, मूल प्रावधान के तहत मांगी गयी सूचनाओं को निश्चित तौर पर सार्वजनिक किया जाना चाहिए. उसने कहा कि इससे सार्वजनिक हितों तथा पारदर्शिता एवं जिम्मेदारी को बढ़ावा मिलता है. इस प्रकार की घोषणा से पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलता है. इसमें कहा गया है कि लेकिन अगर इस प्रकार की सूचना से निजता को नुकसान पहुंच सकता है और इस प्रकार की हानि जन हित से अधिक है तो सूचना को खुलासे से छूट दी जा सकती है.
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