दिल्ली चुनाव में ज़ीरो सीट हासिल करने के बाद कांग्रेस में सिर फुटौव्वल इतना बढ़ गया है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को दख़ल देना पड़ा है। सोनिया गांधी ने पार्टी नेताओं को दिल्ली चुनाव नतीजे के बाद सार्वजनिक तौर पर आपस में तू-तू मैं-मैं नहीं करने को कहा है। दरअसल शीला दीक्षित और अजय माकन के बीच की खींचतान जगज़ाहिर जो चुनावी नतीजों के बाद अपने चरम पर है।
शीला ने नतीजे पर पहली बार बोलते हुए कांग्रेस का चेहरा बन कर उतरे अजय माकन पर तल्ख टिप्पणी की है। कहा है, मुझे माकन पर तरस आती है।
शीला का कहना है कि प्रचार की कमान माकन के हाथ में थी और उन्हें आक्रामकता से प्रचार करना चाहिए था। उन्हें दिल्ली में पार्टी के किए कामों को लेकर लोगों के बीच जाना चाहिए था। उन्होंने ये भी कहा कि पार्टी की करारी हार का अंदाज़ा पहले ही हो गया था हालांकि ये कहना ग़लत है कि दिल्ली में कांग्रेस खत्म हो गई है।
न्यूज़ एजेंसी एएनआई ने माकन के नज़दीकी सूत्रों के हवाले से ख़बर दी कि शीला के बयान से आहत अजय माकन कांग्रेस छोड़ सकते हैं। लेकिन अजय माकन ने ट्वीट कर इस ख़बर को न सिर्फ बेतुका बताया बल्कि इसे खराब पत्रकारिता भी कहा। अरविंदर सिंह लवली ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि वे माकन पर बयान को लेकर शीला दीक्षित से बात करेंगे।
शीला दीक्षित प्रचार में कहीं नज़र नहीं आई थीं। वे सिर्फ सोनिया गांधी की बदरपुर की रैली में मंच पर दिखीं। माकन पर आरोप है कि उन्होंने शीला दीक्षित को जानबूझकर प्रचार से दूर रखा। उन्हें इस बात का डर था कि शीला को सामने लाने से कहीं दिल्ली में दांव उल्टा न पड़ जाए। लेकिन पार्टी के भीतर कुछ नेताओं की राय है कि जब कांग्रेस विकास के नारे के साथ मैदान में उतरी थी तो उसे विकास के चेहरे के तौर पर शीला को भी पेश करना चाहिए था। जो कि माकन ने नहीं किया।
लेकिन माकन खेमे की दलील है कि शीला को आगे लाने से महंगे बिजली पानी के साथ-साथ कांग्रेस की दूसरी नाकामियों के घाव भी हरे हो जाएंगे। इस बीच, दिल्ली के प्रभारी पीसी चाको ने अजय माकन का बचाव करते हुए कहा है कि शीला को प्रचार में उतारने पर भी नतीजों पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
दरअसल कांग्रेस में विधानसभा चुनाव के बहुत पहले ही तलवारें खिंच गई थी। 2013 की हार के बाद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली को बनाया गया लेकिन 2015 चुनाव के ठीक पहले माकन को चेहरा बना कर उतार दिया। इससे लवली भी नाराज़ बताए गए हालांकि वे संगठन के कामकाज़ में पूरी दिलचस्पी लेते देखे गए।
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