भले ही संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह रहे हो कि जम्मू-कश्मीर में जो कुछ हो रहा है। वह बिना केंद्र सरकार को विश्वास में लिए बगैर हो रहा है। हालांकि खबर है कि चौतरफा विरोध के बावजूद मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद का अलगावादियों को रिहा करने का सिलसिला रुकने वाला नहीं है। आने वाले दिनों में जेल में बंद कई आंतकी और अलगाववादियों को सरकार रिहा कर सकती है।
मसर्रत आलम की रिहाई से उठा विवाद अभी रुका ही नहीं है कि राज्य सरकार ने जेल में बंद एक और अलगाववादी नेता के रिहाई की तैयारी कर ली है। यह अलगाववादी नेता है आशिक हुसैन फक्तू, जो पिछले 22 सालों से श्रीनगर जेल में बंद है।
फक्तू दुखतराने मिल्लत की प्रमुख आशिया अंद्राबी के पति है, जो 1993 से मानवाधिकार कार्यकर्ता एचएन वांचू की हत्या के आरोप में जेल में बंद है। वैसे अगर पीडीपी फक्तू की रिहाई करने का फैसला लेती है, तो बीजेपी के लिए इस गठबंधन सरकार में बने रहना काफी मुश्किल हो जाएगा।
वैसे मुफ्ती का यह पुराना एजेंडा है कि जेल में बंद अलगाववादी और आतंकियों को रिहा किया जाए। अबकी बार मुख्यमंत्री का पद संभालते ही बोल चुके है कि वे अपने अधूरे एंजेडे को पूरा करेंगे। वैसे नवंबर 2002 में मुफती मुहम्मद सईद ने पहली बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बनते ही सैंकड़ों आतंकियों को राजनीतिक बंदी बताकर रिहा कर दिया।
जम्मू के रघुनाथ मंदिर पर आतंकियों ने दूसरी बार 24 नवम्बर 2002 को फिदायीन हमला किया, तो उसमें मारे जाने वाले आतंकियों में एक वह आतंकी भी कथित तौर पर शामिल था जिसे कुछ दिन पहले हीलिंग टच के तहत मुफ्ती सरकार ने रिहा किया था।
हालांकि दोनों सदनों में मर्सरत को लेकर इतना हंगामा बरपा है कि सरकार को जवाब देते नहीं बन रहा। करीब दो महीने के जद्दोजहद के बाद बनी सरकार दो दिन भी ठीक से नहीं चल पाई है। पहले तो मुफ्ती के बयान और फिर मर्सरत की रिहाई को लेकर दोनों दलों के बीच खाई बढ़ती ही जा रही है।
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