बेंगलुरु: करीब ढाई दशक तक ‘जनता परिवार' की जड़ों से जुड़ कर कांग्रेस को कमजोर करने की कोशिश करने वाले सिद्धरमैया को कांग्रेस कर्नाटक का अगला मुख्यमंत्री बनाने जा रही है. वह दूसरी बार प्रदेश की कमान संभालेंगे. गरीब किसान परिवार से आने वाले सिद्धरमैया 1980 के दशक की शुरुआत से 2005 तक कांग्रेस के धुर विरोधी थे, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी.देवेगौड़ा की पार्टी जद(एस) से बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद उन्होंने वह ‘हाथ' थाम लिया जिसका वह विरोध करते रहे थे.
धैर्य, दृढ़ता और स्पष्टवादिता के लिए जाने जाने वाले अनुभवी राजनेता सिद्धरमैया की राज्य की बागडोर संभालने की महत्वाकांक्षा 2013 में पूरी हुई जब कांग्रेस पार्टी की तरफ से उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया. 9 बार के विधायक सिद्धरमैया को इन्हीं गुणों ने पांच साल के अंतराल के बाद एक बार फिर इस पद पर पहुंचाया है. उन्हें राज्य में पार्टी की सरकार का दूसरी बार नेतृत्व करने के लिए कांग्रेस विधायक दल के नेता के रूप में फिर से चुना गया है.
"यह मेरा आखिरी चुनाव..."
कांग्रेस नेता (75) ने पहले ही घोषणा की थी कि हाल में संपन्न विधानसभा चुनाव उनका आखिरी चुनाव होगा. उन्होंने अपनी यह महत्वाकांक्षा भी नहीं छिपाई कि वह अपनी सक्रिय सियासी पारी को “ऊंचाई” पर विराम देना चाहते है. मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में कांग्रेस के दिग्गजों को किनारे लगाने का श्रेय भी सिद्धरमैया को जाता है. इस बार उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार से बाजी मारी तो वहीं 2013 में उन्होंने एम. मल्लिकार्जुन खरगे (मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष व तत्कालीन केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री) को पीछे छोड़ा था.
जब सिद्धरमैया के अवसर पर देवेगौड़ा ने फेर दिया था पानी
कर्नाटक में 2004 में खंडित जनादेश के बाद, कांग्रेस और जद (एस) ने गठबंधन सरकार बनाई. उस समय जद(एस) में रहे सिद्धरमैया को उप मुख्यमंत्री बनाया गया जबकि कांग्रेस के एन. धरम सिंह मुख्यमंत्री बने थे. सिद्धरमैया को यह शिकायत है कि उनके पास मुख्यमंत्री बनने का अवसर था, लेकिन देवेगौड़ा ने उनकी संभावनाओं पर पानी फेर दिया.
सिद्धरमैया कुरुबा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जो राज्य में तीसरी सबसे बड़ी आबादी है. सिद्धरमैया ने खुद को पिछड़े वर्ग के नेता के तौर पर स्थापित करने का फैसला किया और अहिंडा (अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए कन्नड में सक्षिप्त शब्द) सम्मेलन आयोजित किए. यह संयोग से उस समय हुआ जब देवेगौड़ा के बेटे एच.डी. कुमारस्वामी को पार्टी में उभरते नेता के तौर पर देखा जा रहा था.
सिद्धरमैया को जद (एस) से बर्खास्त कर दिया गया. वह पार्टी में पहले राज्य इकाई प्रमुख के रूप में कार्य कर चुके थे. पार्टी के आलोचकों ने कहा कि उन्हें इसलिए हटा दिया गया क्योंकि देवेगौड़ा कुमारस्वामी को पार्टी के नेता के रूप में बढ़ावा देने के इच्छुक थे.
"बीजेपी और कांग्रेस से मिला था ऑफर, लेकिन..."
अधिवक्ता सिद्धरमैया ने उस वक्त भी ‘राजनीति से सन्यांस' और वकालत के पेशे में लौटने का विचार व्यक्त किया था. उन्होंने अपनी पार्टी के गठन की संभावना को खारिज करते हुए कहा था कि वह धनबल नहीं जुटा सकते. भाजपा और कांग्रेस दोनों ने उन्हें लुभाते हुए पार्टी में पद देने की बात कही थी, लेकिन उन्होंने कहा था कि वह भाजपा की विचारधारा से सहमत नहीं हैं. वह 2006 में समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे. यह एक ऐसा कदम था जिसके बारे में कुछ वर्षों पहले तक सोचा भी नहीं जा सकता था.
कई बार ठेठ देसी अंदाज में नजर आने वाले सिद्धरमैया ने मुख्यमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा को कभी नहीं छुपाया और बार-बार, बिना किसी हिचकिचाहट के इस पर जोर दिया. वह 2004 के अलावा, 1996 में भी मुख्यमंत्री की “गद्दी” से चूक गए थे, जब देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने थे. तब सिद्धरमैया को जे.एच. पटेल ने पछाड़ दिया, जिनके मंत्रिमंडल में वे उपमुख्यमंत्री थे. देवेगौड़ा और पटेल दोनों के अधीन उन्होंने वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया.
राजनीति में करियर बनाने के लिये वकालत का पेशा छोड़ा
जनता के बीच व्यापक प्रभाव रखने वाले सिद्धरमैया वित्त मंत्री के तौर पर 13 बार राज्य का बजट पेश कर चुके हैं. उनके दोस्तों का कहना है कि उनका व्यक्तित्व कुछ हद तक “दबंग” है और वह अपने लक्ष्यों को लेकर दृढ़ रहते हैं. उन्होंने राजनीति में करियर बनाने के लिये वकालत का पेशा छोड़ दिया था.
चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से पहली बार मिली थी जीत
सिद्धरमैया 1983 में लोकदल के टिकट पर चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से जीत कर पहली बार विधानसभा पहुंचे थे. उन्होंने बाद में तत्कालीन जनता पार्टी का दामन थाम लिया था. वह राम कृष्ण हेगड़े के मुख्यमंत्री रहने के दौरान, कन्नड़ के आधिकारिक भाषा के तौर पर उपयोग के लिये बनाई गई निगरानी समिति “कन्नड़ कवालु समिति” के पहले अध्यक्ष बने. बाद में वह रेशम उत्पादन मंत्री बने. दो साल बाद हुए मध्यावधि चुनाव में वह पुन निर्वाचित हुए और हेगड़े सरकार में पशुपालन एवं पशु चिकित्सा सेवा मंत्री बने.
सिद्धरमैया को हालांकि 1989 और 1999 के विधानसभा चुनावों में हार का भी सामना करना पड़ा. वह 2008 में चुनावों की केरल प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रचार समिति के अध्यक्ष थे. उस चुनाव में कांग्रेस की हार के साथ, सिद्धरमैया नेता विपक्ष बने और उन्होंने भ्रष्टाचार व घोटालों, विशेष रूप से अवैध खनन के मुद्दे पर भाजपा सरकार पर करारा प्रहार किया.
उन्होंने 2010 में राज्य में अवैध खनन का पर्दाफाश करने के लिए बेंगलुरु से बेल्लारी तक कांग्रेस की 320 किलोमीटर की पदयात्रा का नेतृत्व भी किया था. पार्टी में कई लोगों के अनुसार, इसने 2013 के विधानसभा चुनावों में स्पष्ट बहुमत से कांग्रेस की जीत की नींव रखी. अपने प्रशासनिक कौशल के लिए जाने जाने वाले, सिद्धरमैया ने 2013-18 के बीच कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल के सफल कार्यकाल का नेतृत्व किया. हालांकि, लोकलुभावन “भाग्य” योजनाओं के कारण लोकप्रिय होने के बावजूद, 2018 में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों और कांग्रेस के भीतर कई लोगों के अनुसार, प्रमुख लिंगायत समुदाय को “धार्मिक अल्पसंख्यक” का दर्जा देने के सिद्धरमैया सरकार के फैसले के परिणामस्वरूप विधानसभा चुनावों में पार्टी को नुकसान हुआ. तब न केवल लिंगायत बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस बुरी तरह हारी, बल्कि “अलग लिंगायत धर्म” आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल अधिकतर प्रमुख नेता भी पराजित हो गए. तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में, सिद्धरमैया खुद मैसूरु के चामुंडेश्वरी में 2018 के चुनाव में जद (एस) के जी.टी. देवेगौड़ा से 36,042 वोटों से हार गए थे. उन्होंने चामुंडेश्वरी सीट से पांच बार जीत हासिल की और तीन बार पराजय का स्वाद चखा. वह तब बगलकोट जिले के बादामी से चुनाव जीत गए जहां उन्होंने भाजपा के बी. श्रीरामुलु को 1,696 मतों से हराया. उन्होंने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था.
राज्य में 2018 के चुनावों के बाद सिद्धरमैया ने कांग्रेस-जद (एस) सरकार की गठबंधन समन्वय समिति के प्रमुख के रूप में कार्य किया. गठबंधन सरकार के पतन और भाजपा के सत्ता में आने के बाद वह नेता विपक्ष बने. वह 2023 के चुनावों को अपना आखिरी चुनाव घोषित करते हुए वरुणा के अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरे व जीत हासिल की. उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि भले ही यह उनका आखिरी चुनाव हो सकता है, लेकिन वह राजनीति में बने रहेंगे.
सिद्धरमैया के बारे में जानिए...
मैसुरू जिले के गांव सिद्धारमनहुंडी में 12 अगस्त, 1948 को जन्मे सिद्धरमैया ने मैसुरू विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री ली और बाद में यहीं से कानून की डिग्री हासिल की. सिद्धरमैया का विवाह पार्वती से हुआ है. उनके पुत्र डॉ. यतींद्र पिछली विधानसभा में वरुणा से विधायक थे. इस बार सिद्धरमैया ने इस सीट से चुनाव जीता है. उनके बड़े बेटे राकेश की 2016 में मृत्यु हो गई, जिन्हें कभी उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी माना जाता था.
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