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तेजस्वी यादव तुमसे बड़ी भूल, गायब हो गए, लालू यादव के खास दोस्त शिवानंद तिवारी ने खूब सुना दिया

बिहार चुनाव में आरजेडी की हार के बाद तेजस्वी यादव पर लालू यादव के खास सिपहसलार रहे शिवानंद तिवारी ने बड़ा हमला बोला है. उन्होंने फेसबुक पोस्ट करके तेजस्वी को जमकर सुनाया है.

तेजस्वी यादव तुमसे बड़ी भूल, गायब हो गए, लालू यादव के खास दोस्त शिवानंद तिवारी ने खूब सुना दिया
शिवानंद तिवारी
पटना:

आरजेडी के वरिष्ठ नेता और लालू यादव के बेहद करीब माने जाने वाले शिवानंद तिवारी ने अचानक तेजस्वी यादव पर सीधा और कड़ा हमला बोला है. उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट में वह सारी बातें लिख दी हैं, जो लंबे समय से उनके मन में थीं. जन्मदिन की निजी यादों से शुरू हुआ उनका पोस्ट धीरे-धीरे राजनीतिक आलोचना में बदल गया और अंत में यह तेजस्वी यादव की नेतृत्व क्षमता पर बड़े सवाल के साथ समाप्त होता है. इस पोस्ट में शिवानंद तिवारी ने सिर्फ राजनीतिक बातें नहीं लिखीं, बल्कि तेजस्वी के हालिया व्यवहार, चुनावी परिणामों के बाद उनकी चुप्पी, पार्टी नेतृत्व की कमियों और भीतर के हालात को पूरी बेबाकी से सामने रखा है.

फेसबुक पर शिवानंद का बड़ा हमला 

शिवानंद तिवारी ने लिखा कि 9 दिसंबर उनका जन्मदिन होता है. संयोग से उसी दिन उनकी नातिन शाएबा का विवाह भी हुआ था. वे बताते हैं कि नातिन का विवाह कर्नाटक के एक युवक से हुआ, दोनों जर्मनी में पढ़ते थे और वहीं उन्हें एक-दूसरे से प्यार हुआ. वह बताते हैं कि दूल्हा किस बिरादरी से है, यह उन्हें आज तक नहीं पता क्योंकि लड़का अच्छा है, बस इतनी जानकारी उनके लिए पर्याप्त थी. यही प्रसंग उन्हें तेजस्वी के विवाह की याद दिलाता है, जो 9 दिसंबर 2021 को हुआ था। शिवानंद बताते हैं कि उस समय उन्होंने फोन पर तेजस्वी को बधाई दी थी. कल जब उन्होंने अपनी नातिन और दामाद को सालगिरह की बधाई दी, तभी तेजस्वी का विवाह याद आया और उन्होंने तेजस्वी को संदेश भेजा, जिसका जवाब सिर्फ 🙏 इमोजी में आया. यहां तक पोस्ट बेहद निजी और भावनात्मक था, लेकिन इसके बाद वह सीधे राजनीतिक तल्ख़ी में बदल जाता है.

लालू जी के वे उत्तराधिकारी हैं,लेकिन…

शिवानंद लिखते हैं कि तेजस्वी यादव लालू प्रसाद के बेटे और उनके राजनीतिक वारिस हैं. 2020 और 2025 में उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी घोषित किया गया था. परंतु जब राजनीतिक सफलता नहीं मिली, तब उनके व्यवहार पर सवाल खड़े होते हैं. शिवानंद तिवारी कहते हैं कि हार-जीत राजनीति का हिस्सा है, लेकिन असली सवाल यह है कि नेता हार पर कैसी प्रतिक्रिया देता है. उनका कहना है कि पराजय के बाद अगर नेता मैदान छोड़ देता है तो वह खुद साबित कर देता है कि वह भविष्य की लड़ाई लड़ने लायक नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव परिणाम आने के बाद तेजस्वी गायब हो गए. ना पार्टी कार्यकर्ताओं से मिले, ना सहयोगियों से. इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट गया.

विधान परिषद, राजसभा, टिकट बंटवारा तिवारी का बड़ा आरोप

शिवानंद तिवारी ने तेजस्वी पर आरोप लगाया कि वे जिन सिद्धांतों की बात करते हैं, वह टिकट बंटवारे में दिखाई ही नहीं देते. वे लिखते हैं कि क्या समाज के कमजोर तबके, चाहे हिंदू हों या मुसलमान, उन्हें टिकट में जगह मिल रही है? क्या पार्टी के ऊपरी सदन में वही लोग पहुंच रहे हैं जिनका हक है? यदि ऐसा नहीं है, तो तेजस्वी जनता से समर्थन की उम्मीद कैसे रख सकते हैं? इस हिस्से को उन्होंने बेहद सख्त शब्दों में लिखा है और यह इशारा है कि राजद की अंदरूनी राजनीति में असमानता और पक्षपात की शिकायतें मौजूद हैं.

लालू तुमको राजनीति सिखाने के योग्य गुरु नहीं

तिवारी ने कहा कि तेजस्वी को पार्टी का कमान मिलने के समय उन्होंने साफ कहा था कि लालू जी उनके राजनैतिक गुरु नहीं हो सकते. उन्होंने 90 के दशक की राजनीति का ज़िक्र करते हुए कहा कि मंडल आंदोलन और आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद लालू यादव को ऐतिहासिक जनसमर्थन मिला था. लेकिन 2010 आते-आते वही पार्टी 22 सीटों पर सिमट गई. इसका सीधा मतलब यह है कि शिवानंद तिवारी ने लालू यादव के नेतृत्व पर भी प्रश्न चिह्न लगाया और तेजस्वी को आगाह किया कि सिर्फ वंशगत राजनीति से सफलता नहीं मिलती.

तेजस्वी की सबसे बड़ी भूल तुम गायब हो गए!

शिवानंद के शब्दों में नतीजा के बाद तुम गायब हो गए. सहयोगियों से नहीं मिले, कार्यकर्ताओं को नहीं संभाला. यह हिस्सा उनकी पोस्ट का सबसे चर्चित भाग है. राजद कार्यकर्ताओं के बीच यही चर्चा है कि हार के बाद तेजस्वी की गैर-मौजूदगी ने पार्टी को बेहद नुकसान पहुंचाया. तिवारी इसे एक नेता की सबसे बड़ी कमजोरी बताते हैं. शिवानंद तिवारी ने कहा कि समता पार्टी जब पहली बार चुनाव लड़ी थी, तब केवल 7 सीट आई थीं, लेकिन तब भी उन्होंने मैदान नहीं छोड़ा. वह कहते हैं लेकिन तुम दो दिन भी नहीं टिक पाए.

राजद कार्यालय की समीक्षा बैठक और साहब संस्कृति पर हमला

तिवारी ने राजद दफ्तर में हो रही समीक्षा बैठक का भी जिक्र किया और उसमें दो नेताओं संजय और जगता भाई का नाम लेकर कहा कि उन्होंने तेजस्वी की आंखों पर पट्टी बांध दी थी. उनका दावा है कि दोनों ने तेजस्वी को झूठी हरियाली दिखायी और इसके बदले खूब फायदे उठाए. वे कहते हैं कि नेता और साहब में फर्क होता है. कार्यकर्ता साहब से डरते हैं, सम्मान नहीं करते. यह इशारा तेजस्वी की टीम और उनकी कार्यशैली से कार्यकर्ताओं की असंतुष्टि को दिखाता है.

अंत में बड़ी सलाह नेता नहीं, कार्यकर्ता बनकर बिहार घूमो

शिवानंद तिवारी ने अपने पोस्ट के अंत में तेजस्वी को बहुत बड़ी और अर्थपूर्ण सलाह दी तुरंत वापस लौटो. बिहार घूमो. नेता बनकर नहीं, कार्यकर्ता बनकर. लोगों से बराबरी से मिलो. तभी भविष्य बचेगा. समय किसी का इंतजार नहीं करता. यह सलाह राजनीति के अनुभव, उम्र और घटनाओं से जन्मी है. 

लालू परिवार के पुराने साथी की चेतावनी

तिवारी लंबे समय तक लालू-राबड़ी परिवार के विश्वसनीय चेहरे रहे हैं. उनकी यह आलोचना सामान्य असंतोष नहीं, बल्कि भीतर के गंभीर संकट की ओर इशारा करती है. हार के बाद तेजस्वी की चुप्पी पर सवाल पूरे संगठन में है. कार्यकर्ताओं और विपक्ष दोनों के बीच यह चर्चा है कि तेजस्वी ने हार को जिस तरह संभाला, वह राजनीतिक परिपक्वता का संकेत नहीं देता. राजद की अंदरूनी राजनीति खुलकर सामने आई है. 
 

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