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पिता की हत्या ने बदली थी जिंदगी, 11 बार के सांसद, तीन बार CM रहे शिबू सोरेन की पूरी जीवनी

हॉस्टल में पढ़ाई करने के दौरान शिबू सोरेन के पिता की हत्या कर दी गई. पिता की हत्या ने शिबू सोरेन को राजनीति की राह दिखाई. इसके बाद से ही उनके सामाजिक और राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई.

पिता की हत्या ने बदली थी जिंदगी, 11 बार के सांसद, तीन बार CM रहे शिबू सोरेन की पूरी जीवनी
शिबू सोरेन के साथ उनके बेटे झारखंड सीएम हेमंत सोरेन.
  • शिबू सोरेन का जन्म नेमरा गांव में 11 जनवरी 1944 को हुआ और उनके पिता शिक्षक थे
  • पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन ने पढ़ाई छोड़कर आदिवासी समाज के लिए आंदोलन शुरू किया
  • वे धनकटनी आंदोलन के जरिए आदिवासियों को संगठित कर महाजनों के खिलाफ आवाज उठाने लगे
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Shibu Soren Profile: गुरुजी, दिशोम गुरु, झारखंड आंदोलन और राज्य के सबसे बड़े आदिवासी नेता शिबू सोरेन का निधन हो गया है. 81 वर्षीय शिबू सोरेन पिछले डेढ़ महीने से किडनी संबंधी समस्या के चलते डॉक्टरों की देखरेख में थे.  एक सामान्य शिक्षक के घर जन्मे शिबू सोरेन ने पिता की हत्या के बाद राजनीति में प्रवेश किया. फिर झारखंड राज्य के गठन के लिए 40 साल से ज्यादा समय तक संघर्ष किया. 

शिबू सोरेन ने तीन बार संभाली झारखंड की सत्ता

साल 2000 में झारखंड राज्य के गठन के बाद शिबू सोरेन ने तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली. आज उनके पुत्र हेमंत सोरेन राज्य के सत्ता की बागडोर संभाल रहे हैं.

पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन कैसे आंदोलन में कूदे? कैसे उन्होंने पारसनाथ की पहाडि़यों की तलहटी में बसे गांवों में ठिकाना बनाकर आदिवासियों को एकजुट किया? शिबू सोरेन ने कैसे और कब-कब चुनाव लड़ा? कब मंत्री-मुख्यमंत्री बने, कैसे संकट में फंसे और फिर उससे उबरे. आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में. 

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शिबू सोरेन की पूरी जीवनी जानिए 

11 जनवरी, 1944 को रामगढ़ के पास स्थित नेमरा गांव में सोबरन मांझी के घर शिबू सोरेन का जन्म हुआ था. शिबू के पिता सोबरन मांझी पेशे से शिक्षक थे. आस-पास के इलाके में सोबरन की गिनती सबसे पढ़े लिखे आदिवासी शख्स के रूप में होती थी. शिबू सोरेन के दादा चरण मांझी तत्कालीन रामगढ़ राजा कामाख्या नारायण सिंह के टैक्स तहसीलदार थे. 

दादा अंग्रेजों के जमाने के टैक्स तहसीलदार, पिता शिक्षक

शिबू सोरेन के परिवार आर्थिक रूप से संपन्न रहा है. उनके दादा अंग्रेजों के जमाने के टैक्स तहसीलदार थे, जबकि पिता शिक्षक. जमीन-जायदाद की स्थिति बेहतर थी. शिबू सोरेन जब कुछ बड़े हुए तो उनके परिवार ने उन्हें पढ़ने के लिए गांव से दूर एक हॉस्टल में रख दिया. जहां उनके साथ उनके बड़े भाई राजाराम सोरेन भी थे. गोला रोड स्थित हॉस्टल में दोनों भाई पढ़ाई कर रहे थे.  

पिता की हत्या के बाद बदला शिबू सोरेन का जीवन

हॉस्टल में पढ़ाई करने के दौरान शिबू सोरेन के पिता की हत्या कर दी गई. पिता की हत्या ने शिबू सोरेन को राजनीति की राह दिखाई. इसके बाद से ही उनके सामाजिक और राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई. 1957 में शिबू के पिता सोबरन अपने एक सहयोगी के साथ दोनों बेटों के लिए हॉस्टल में चावल और अन्य सामान पहुंचाने जा रहे थे. इसी दौरान लुकरैयाटांड़ गांव के पास उनकी हत्या कर दी गई.

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पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन का पढ़ाई से मन टूट गया. इसके बाद शिबू सोरेन हजारीबाग में रहने वाले फारवर्ड ब्लॉक नेता लाल केदार नाथ सिन्हा के संपर्क में आए. कुछ दिनों तक छोटी-मोटी ठेकेदारी का काम भी किया. पतरातू-बड़काकाना रेल लाइन निर्माण के दौरान उन्होंने कुली का काम भी मिला. लेकिन उन्होंने यह काम छोड़ दिया. 

शिबू सोरेन ने सबसे पहले बड़दंगा पंचायत से मुखिया का चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. बाद में जरीडीह विधानसभा सीट से भी चुनाव लड़े, लेकिन इसमें भी सफलता नहीं मिली.

शिबू सोरेन कैसे बने दिशोम गुरु

शिबू सोरेन की बायोग्राफी लिखने वाले झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार अनुज सिन्हा ने अपनी किताब में लिखा कि पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन ने पढ़ाई छोड़ दी और महजनों के खिलाफ आवाज उठाने की सोची. उन्होंने आदिवासी समाज के एकजुट किया और महाजनों के खिलाफ बिगुल फूंका. तब उन्होंने धनकटनी आंदोलन शुरू किया. जिसमें वे और उनके साथी जबरन महजनों की धान काटकर ले जाया करते थे.

कहा जाता है कि उस समय में जिस खेत में धान काटना होता था उसके चारों ओर आदिवासी युवा तीर धनुष लेकर खड़े हो जाते थे. धीरे धीरे उनका प्रभाव बढ़ने लगा था. आदिवासी समाज के लोगों में इस नवयुवक के चेहरे पर अपना नेता दिखाई देने लगा था, जो उन्हें सूदखोरों से आजादी दिला सकते थे. 

इसी आदोलन के दौरान शिबू सोरेन को दिशोम गुरु की उपाधि मिली. संताली में दिशोम गुरु का मतलब होता है देश का गुरु. बाद में बिनोद बिहारी महतो और एके राय भी आंदोलन से जुड़ते गए. बाद में उन्हें अपनी राजनीतिक पार्टी की जरूरत महसूस हुई.

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साल 1980: दुमका से शिबू सोरेन ने लड़ा लोकसभा चुनाव 

1980 के दशक में शिबू सोरेन झारखंड की राजनीति के जाने-पहचाने नाम हो चुके थे. 1980 के लोकसभा चुनाव में वो दुमका से तीर-धनुष चुनाव चिह्न लेकर मैदान में उतरे. बिहार से अलग झारखंड को राज्य बनाने की मांग के साथ शिबू सोरेन ने पार्टी कार्यकर्ताओं ने दिशोम दाड़ी चंदा उठाने का अभियान शुरू किया. जिसके तहत उन्होंने प्रत्येक गांव के प्रति परिवार से एक पाव (250ग्राम) चावल और तीन रुपया नगद राशि देने की मांग की.

दुमका से 8 बार सांसद बने शिबू सोरेन

इस अभियान से जमा हुए पैसों से शिबू सोरेन से चुनाव लड़ा और जीता. लोकसभा चुनाव जीतने के बाद शिबू सोरेन ने दूमका से चुनाव जीतने का कीर्तिमान ही बना दिया. शिबू सोरेन ने 1980, 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 में दुमका लोकसभा सीट के लिए चुनावी जीत हासिल की. 

केंद्र में मंत्री भी रहे, जेल जाने पर सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी 

इसके अलावा को तीन बार राज्यसभा के लिए भी चुने गए. केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे. 2 मार्च 2005 को शिबू सोरेन पहली बार झारखंड के सीएम बने, लेकिन 11 मार्च 2005 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शशिनाथ हत्याकांड में नाम आने पर उनकी मुश्किलें बढ़ी. 

2009 में तीसरी बार सीएम बने

वो इस मामले में जेल भी गए और फिर ऊपरी अदालत से दोषमुक्त हुए. जिसके बाद 27 अगस्त 2008 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन तमाड़ विधानसभा चुनाव में हार के कारण 11 जनवरी 2009 को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद वर्ष 2009, दिसंबर में तीसरी बाद सीएम बने,लेकिन कुछ ही दिनों में त्यागपत्र देना पड़ा.

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