दिल्ली हाईकोर्ट ने आज कहा कि जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी द्वारा अपने पुत्र को नायब इमाम नामित करने से जुड़ा समारोह ‘दस्तारबंदी’ आयोजित करने का मतलब उनकी नियुक्ति नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायमूर्ति आरएस एंडलॉ की पीठ ने यह टिप्पणी केंद्र, दिल्ली वक्फ बोर्ड और याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सुनने के बाद की और कहा कि ऐसी स्थिति में समारोह पर रोक लगाने की कोई जरूरत नहीं है। याचिकाकर्ताओं ने इस समारोह के आयोजन को चुनौती दी थी।
अदालत ने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995 के तहत कानून में केवल वक्फ के एक मुतवल्ली (प्रबंधक) का प्रावधान है और इसमें वक्फ सम्पत्ति के इमाम की नियुक्ति का कोई प्रावधान नहीं है, चाहे वह मस्जिद ही क्यों न हो।
पीठ ने कहा, हमारा यह मत है कि याचिकाकर्ताओं की ओर से यह दलील दिए जाने पर कि मौलाना सैय्यद अहमद बुखारी को कानून या अन्य बातों के तहत अपने पुत्र को नायब इमाम नामित करने का कोई अधिकार नहीं है और जिसका दिल्ली वक्फ बोर्ड ने समर्थन भी किया है, ऐसी स्थिति में 22 नवंबर 2014 को निर्धारित दस्तारबंदी समारोह पर अगर रोक नहीं भी लगती है तब इसका आशय मौलाना सैय्यद अहमद बुखारी के पुत्र को जामा मस्जिद का नायब इमाम नामित या नियुक्त करना नहीं होगा। अदालत ने कहा, इसलिए हम इस पर रोक लगाने की अंतरिम आदेश जारी करना जरूरी नहीं समझते हैं।
अदालत ने बुखारी के जामा मस्जिद में समारोह आयोजित करने पर रोक नहीं लगायी। याचिककर्ताओं ने जामा मस्जिद में समारोह पर रोक लगाने की मांग की थी। उच्च न्यायालय ने कहा कि इमाम और उनका परिवार पिछले कई वषरे से इसे अपने आवास के रूप में उपयोग कर रहा है।
अदालत ने कहा, हालांकि यह स्पष्ट किया जाता है कि समारोह आयोजित करने और मौलाना सैय्यद अहमद बुखारी के छोटे पुत्र या किसी दूसरे व्यक्ति को जामा मस्जिद का नायब इमाम नियुक्त करना इस याचिका में भावी आदेशों का विषय होगा और यह किसी व्यक्ति के पक्ष में कोई अधिकार या विशेष हिस्सेदारी नहीं प्रदान करता है।
अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, दिल्ली सरकार, डीडीए, एमसीडी, नगर पुलिस, वक्फ बोर्ड, सीबीआई के साथ बुखारी को नोटिस जारी किया और उनका जवाब मांगा। इस मामले में अब 28 जनवरी 2015 को सुनवाई होगी। पीठ ने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड की ओर से इस बारे में कोई जवाब नहीं आया है कि उसने जामा मस्जिद पर किसी अधिकार या निरीक्षण का उपयोग नहीं किया और उसने मौलाना सैय्यद अहमद बुखारी को उक्त मस्जिद की आय क्यों लेने दी और कोई कार्रवाई क्यों नहीं की।
पीठ इस बारे में तीन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इनमें इमाम की ओर से अपने पुत्र को नायब इमाम नियुक्त करने को चुनौती दी गई है।
गौरतलब है कि इस संबंध में जनहित याचिकाएं सुहैल अहमद खान, अजय गौतम और वकील वीके आनंद ने दायर की थीं। इनमें कहा गया था कि जामा मस्जिद दिल्ली वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति है और इसके एक कर्मचारी के तौर पर बुखारी अपने पु़त्र को नायब इमाम नामित नहीं कर सकते हैं।
इन तीन याचिकाओं पर कल बहस के दौरान केंद्र और वक्फ बोर्ड ने अदालत में कहा था कि जामा मस्जिद के शाही इमाम की ओर से अपने पुत्र को नायब इमाम और अपना उत्तराधिकारी बनाने को कोई कानूनी मान्यता नहीं है। अदालत द्वारा बोर्ड से इस बारे में कानूनी स्थिति स्पष्ट करने के बारे में कहे जाने पर वक्फ बोर्ड ने कहा कि वह जल्द ही बैठक करेगा और बुखारी ने जो किया है उसके लिए उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
इससे पहले, केंद्र ने कहा था कि मुगल काल की यह मस्जिद वक्फ की सम्पत्ति है और उसे यह निर्णय करना है कि उत्तराधिकार का नियम नए शाही इमाम को नामित करने पर किस तरह लागू होता है जिसे चुनौती दी गई है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने भी अदालत से आग्रह किया है कि जामा मस्जिद के राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए उसे प्राचीन धरोहर घोषित किया जाए। एएसआई ने दलील दी कि इसे संरक्षरण की जरूरत है।
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