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This Article is From Nov 13, 2023

Exclusive: कराची बंदरगाह पर दिखे चीन के वॉरशिप और सबमरीन, भारत के लिए इसके क्या हैं मायने?

सी गार्जियन-3 अभ्यास (Sea Guardian-3 Exercises) ऐसे समय में हो रहा है, जब चीन ने हिंद महासागर के पानी में अपनी समुद्री मौजूदगी का काफी विस्तार किया है. इसमें अफ्रीका के हॉर्न स्थित जिबूती (Djibouti) में एक प्रमुख बेस का निर्माण और क्षेत्रीय नौसेनाओं को कई आधुनिक प्लेटफार्मों की बिक्री भी शामिल है

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नई दिल्ली:

पाकिस्तान की नौसेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की नौसेना साझा अभ्यास कर रही हैं. दोनों नौसेनाओं का साझा अभ्यास सी गार्जियन-2023 (The Sea Guardian-3) की शुरुआत शनिवार को कराची में पाकिस्तानी नौसेना (Pakistan Navy) डॉकयार्ड में किया गया. NDTV ने इस साझा सैन्य अभ्यास की कुछ हाई रिज़ॉल्यूशन वाली सैटेलाइट तस्वीरें एक्सेस की हैं. इसमें कराची पोर्ट पर चीन के कई फ्रंटलाइन युद्धपोत (Warships), एक पनडुब्बी (Submarine) और डॉकयार्ड देखे जा सकते हैं.

सी गार्जियन-3 अभ्यास (Sea Guardian-3 Exercises) ऐसे समय में हो रहा है, जब चीन ने हिंद महासागर के पानी में अपनी समुद्री मौजूदगी का काफी विस्तार किया है. इसमें अफ्रीका के हॉर्न स्थित जिबूती (Djibouti) में एक प्रमुख बेस का निर्माण और क्षेत्रीय नौसेनाओं को कई आधुनिक प्लेटफार्मों की बिक्री भी शामिल है. हाल ही में चीन ने पाकिस्तानी नौसेना को 4 Type-054 A/P फ्रिगेट भी दिए हैं.

किंगदाओ नौसेना बेस के कमांडर, रियर एडमिरल लियांग यांग और पाकिस्तान फ्लीट के कमांडर वाइस एडमिरल मुहम्मद फैसल अब्बासी भी इस मौके पर पहुंचे थे. दोनों ने ही इस साझा अभ्यास को नौसेनाओं के बीच घनिष्ठ और रणनीतिक संबंधों का प्रतीक बताया है.

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पिछले साल हिंद महासागर में कई चीनी सर्विलांस और समुद्र विज्ञान सर्वेक्षण जहाजों (Oceanographic Survey Ships) का भी पता चला है. इस महीने की शुरुआत में चीन का एक महासागर अनुसंधान जहाज (Ocean Research Ship) Shi Yan 6 कोलंबो में रुका था, फिर ये तमिलनाडु के समुद्र तट और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के बीच उत्तर में बंगाल की खाड़ी में चला गया. यह व्यापक रूप से माना जाता है कि चीन पूरे क्षेत्र में व्यापक पनडु्ब्बी ऑपरेशन को सक्षम करने के लिए बंगाल की खाड़ी समेत हिंद महासागर के पानी की सक्रिय रूप से मॉनिटरिंग कर रहा है.

कराची में खड़ी चीनी नौसैनिक जहाजों में टाइप 039 डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी भी शामिल है. इसकी सटीक क्षमता भी चीनी नौसेना के रहस्यों में छिपी हुई है. अरब सागर के पानी में नाव की मौजूदगी अपने घरेलू बंदरगाहों से कई हजार किलोमीटर दूर नौसेना की संपत्ति को तैनात करने में सक्षम होने में बीजिंग के भरोसे को भी दिखाती है.

ऐसा माना जाता है कि 2013 के बाद से चीनी PLAN (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी) के हिंद महासागर में पनडुब्बी तैनात करने के बाद यह आठवां साझा सैन्य अभ्यास है. चीन को हिंद महासागर में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली तेज पनडु्ब्बी के लिए भी जाना जाता है. ये पनडुब्बी समुद्र में सैद्धांतिक रूप से अनिश्चित काल तक डूबे रह सकते हैं, क्योंकि जहाज पर सप्लाई भरने के अलावा उन्हें सतह पर आने की जरूरत नहीं है. हालांकि, ये साफ है कि चीन और पाकिस्तान के साझा नौसेना अभ्यास में भाग लेने वाले चीनी बेड़े के साथ ये पनडुब्बी भी तैनात की गई है या नहीं.

सी गार्जियन-3 (Sea Guardian-3 Exercises)अभ्यास के लिए हिंद महासागर में चीन के युद्धपोत की तैनाती का सर्विलांस करने वाले सूत्रों का कहना है कि मलक्का जलडमरूमध्य के जरिए क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद टाइप -039 पनडुब्बी और उसके साथ आने वाले सहायक जहाजों को नौसेना पी 8 टोही विमान से नियमित रूप से ट्रैक किया गया था.

सूत्रों का कहना है कि यह इस बात का संकेत है कि भविष्य में इस क्षेत्र में चीन की बड़ी उपस्थिति क्या हो सकती है. सूत्रों के मुताबिक, ''यह अगर-मगर का सवाल नहीं है कि चीन हिंद महासागर क्षेत्र में एक कैरियर बैटल ग्रुप (वाहक युद्ध समूह) को तैनात करने का फैसला कब करता है.''

अप्रैल 2015 में पाकिस्तान सरकार कथित तौर पर 5 बिलियन डॉलर के सौदे में टाइप 039 पनडुब्बियों के 8 वेरिएंट खरीदने पर सहमत हुई थी. इनमें से 4 पनडुब्बियों का निर्माण कराची शिपयार्ड एंड इंजीनियरिंग वर्क्स करने वाला था. अभी तक किसी भी पनडुब्बी की डिलीवरी नहीं की गई है.

NDTV ने जो सैटेलाइट तस्वीरें एक्सेस की हैं, उनमें कराची में खड़ी चीनी टाइप 926 पनडुब्बी टेंडर की मौजूदगी का संकेत मिलता है. माना जाता है कि टाइप 926 पनडुब्बियों की उपस्थिति आसपास के क्षेत्र में चीनी पनडुब्बियों की उपस्थिति का एक संकेत है. चीनी युद्ध-समूह में 1 टाइप 52डी विध्वंसक, 2 टाइप 54 फ्रिगेट और 1 टाइप 903 रीप्लेनिशमेंट ऑयलर भी शामिल हैं. ये युद्धपोतों और पनडुब्बी को लंबी दूरी के संचालन को बनाए रखने में मदद करता है.

पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश (रिटायर्ड) ने NDTV से कहा, "हमारे योजनाकारों और निर्णय निर्माताओं को इस तथ्य का स्पष्ट रूप से स्वीकार करना होगा कि हिंद महासागर में चीन की गहरी दिलचस्पी है. खासतौर पर इसके समुद्री मार्ग, जो चीन की ज्यादातर ऊर्जा, व्यापार, कच्चे माल और तैयार माल के लिए प्रमुख रूट हैं. नतीजतन हिंद महासागर में चीन की नौसेना की बढ़ती मौजूदगी देखी जा रही है. चीन ने यहां युद्धपोतों के साथ-साथ पनडुब्बियां भी तैनात कर  रखी हैं."

पूर्व नौसेना प्रमुख ने आगे कहा, "पिछले दो दशकों में चीन ने IOR (Indian Ocean Region) के पार पर्याप्त समुद्री बेस बनाए हैं. इसे 'मोतियों की माला' कहा जाता है. वास्तव में यह चीन के फ्रेंडली पोर्ट की एक सीरीज है, जिन्हें चीन फंडिंग करता है. चीनी की नौसेना जरूरत पड़ने पर इनका इस्तेमाल करती है. साल 2016 में चीन ने जिबूती (अफ्रीका) में अपना पहला विदेशी मिलिट्री बेस तैयार किया था. चीन आगे भी अन्य देशों में ऐसा करता रहेगा."

इस साल अप्रैल में नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार ने कहा था कि भारतीय नौसेना पाकिस्तानी बंदरगाहों पर चीनी नौसेना की प्रॉपर्टी की तैनाती पर 'निगरानी' रख रही है. उन्होंने कहा था, "चीनी जहाजों की बड़ी मौजूदगी है. किसी भी समय हिंद महासागर क्षेत्र में तीन से छह चीनी युद्धपोत होते हैं." चीन इस क्षेत्र में अनुसंधान पोत यानी रिसर्च वॉरशिप भी तैनात करता है.

चीनी नौसेना संपत्तियों पर नज़र रखने की प्रक्रिया भारतीय नौसेना की एक लागातार कोशिश रही है. चीनी जहाज प्रमुख चोक पॉइंट्स, मलक्का जलडमरूमध्य, लोम्बोक या सुंडा जलडमरूमध्य के जरिए हिंद महासागर के पानी में प्रवेश करने के लिए पश्चिम की ओर जाते हैं. भारतीय नौसेना के पी-8 समुद्री टोही विमान और मिशन पर तैनात युद्धपोत अक्सर चीनी जहाजों को रोकने और लंबे समय तक उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए तैनात रहते हैं.

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चीनी युद्धपोतों की आवाजाही पर नज़र रखने में भारत, अमेरिका के साथ मिलकर काम करता है. अमेरिका अक्सर रियल टाइम खुफिया जानकारी के लिए भारत का एक प्रमुख समुद्री भागीदार रहा है. पिछले हफ्ते दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच नई दिल्ली में 2+2 वार्ता हुई थी. इसमें दोनों पक्षों ने 'स्वतंत्र, खुले और समावेशी इंडो-पैसिफिक की सुरक्षा के लिए अपनी मजबूत प्रतिबद्धता' को रेखांकित किया था. चीन का महात्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव इसका आधार था.बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) चीन को बाकी दुनिया से जोड़ने वाले दो नए इकोनॉमिक रूट के निर्माण की एक महत्वाकांक्षी पहल है. चीन ने 2013 में 150 से अधिक देशों में निवेश करने के उद्देश्य से इसकी पहल की थी. बीजिंग खासतौर पर हिंद महासागर क्षेत्र में बढ़ती मजबूत समुद्री उपस्थिति के माध्यम से इस पहल का समर्थन करता है.

वॉशिंगटन ने 8 नवंबर को कोलंबो पोर्ट टर्मिनल में 500 मिलियन डॉलर से ज्यादा के निवेश की घोषणा करके श्रीलंका जैसे देशों में बीजिंग की बढ़ती आर्थिक ताकत को संतुलित करने के भारतीय प्रयासों का समर्थन किया. कोलंबो पोर्ट टर्मिनल को अदाणी ग्रुप की ओर से विकसित किया जा रहा है.

श्रीलंका अपने बंदरगाहों और राजमार्गों से जुड़ी परियोजनाओं के लिए चीन से मिलने वाली फंडिंग पर बहुत ज्यादा निर्भर रहा है. इस देश को अपना कर्ज चुकाने में भी संघर्ष करना पड़ा है. गहरे पानी वाले हंबनटोटा बंदरगाह के मामले में ऐसा ही हुआ था. इसे श्रीलंका ने आर्थिक रूप से विकसित होने के बाद इस बंदरगाह को 99 वर्षों के लिए चीन को पट्टे पर दिया था. 

पिछले साल चीन का एक रिसर्च शिप युआन वांग 5, भारत द्वारा उठाई गई सुरक्षा चिंताओं के बावजूद हंबनटोटा में रुका था. बताया गया है कि ये जहाज ओडिशा के तट पर अब्दुल कलाम द्वीप से भारतीय मिसाइल परीक्षणों पर नज़र रखने के मिशन पर था.

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