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This Article is From Aug 27, 2019

RSS के वरिष्ठ नेता ने कहा- इस्लाम के आने से हुई छुआछूत की शुरुआत, प्राचीन भारत में गौमांस खाने वालों को माना जाता था अछूत

आरएसएस के वरिष्ठ नेता कृष्ण गोपाल ने सोमवार को दावा किया कि भारत में छुआछूत की शुरुआत इस्लाम की शुरुआत से हुई.

RSS के वरिष्ठ नेता ने कहा- इस्लाम के आने से हुई छुआछूत की शुरुआत, प्राचीन भारत में गौमांस खाने वालों को माना जाता था अछूत
RSS के वरिष्ठ नेता ने कहा- इस्लाम के आने से हुई छुआछूत की शुरुआत
नई दिल्ली:

आरएसएस के वरिष्ठ नेता कृष्ण गोपाल (Krishna Gopal) ने सोमवार को दावा किया कि भारत में छुआछूत की शुरुआत इस्लाम की शुरुआत से हुई. उन्होंने यह भी कहा कि दलित का कॉन्सेप्ट ब्रिटिश शासन द्वारा फूट डालने और राज करने के लिए लाया गया था. उन्होंने कहा, 'पहली बार छुआछूत का मामला इस्लाम के आने के बाद देखा गया.' उन्होंने अपनी बात को साबित करने के लिए सिंध के आखिरी हिंदू राजा दाहिर के परिवार की कहानी का भी जिक्र किया. जो जौहर करने जा रहा था और उसने सबसे पहले 'मलिच्छा' शब्द का प्रयोग करते हुए कहा था कि उन्हें(परिवार) जल्द जौहर करना होगा वर्ना 'मलिच्छा' उनको छू लेंगे और वह अपवित्र हो जाएंगी. उन्होंने यह भी कहा, 'गौमांस सेवन करने वाले लोगों को प्राचीन भारत में अस्पृश्य  करार दिया जाता था और ''दलित'' शब्द प्राचीन भारतीय साहित्य में मौजूद नहीं था.'

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल ने पुस्तकों के विमोचन कार्यक्रम के दौरान कहा कि संविधान सभा ने भी ''दलित'' की जगह ''अनुसूचित जाति'' शब्द का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा कि यह अंग्रेजों की साजिश थी कि दलित शब्द (समाज में) धीरे-धीरे प्रसारित होता गया.

आरएसएस नेता ने ''भारत का राजनीतिक उत्तरायण'' और ‘भारत का दलित विमर्श' पुस्तकों का विमोचन किया. कार्यक्रम में संस्कृति और पर्यटन मंत्री प्रह्लाद पटेल भी उपस्थित थे. गोपाल ने कहा, ‘‘भारत में अस्पृश्यता का पहला उदाहरण तब आया जब लोग गाय का मांस खाते थे, वे ‘अनटचेबल' घोषित हुए. ये स्वयं (बी आर) आंबेडकर जी ने भी लिखा है.''

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उन्होंने कहा कि धीरे-धीरे यह समाज में प्रसारित होता गया और समाज के एक बड़े हिस्से को अस्पृश्य करार दिया गया. लंबे समय तक उनका उत्पीड़न और अपमान किया गया. गोपाल ने कहा कि रामायण लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि दलित नहीं थे, बल्कि शूद्र थे, और कई महान ऋषि भी शूद्र थे और उनका बहुत सम्मान किया जाता था.

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