
कैश कांड में घिरे जस्टिस यशवंत वर्मा ने संसद में महाभियोग की कार्यवाही के पहले सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उन्होंने आंतरिक जांच पैनल की रिपोर्ट को चुनौती दी है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच कमेटी की रिपोर्ट को अमान्य करार देने की मांग की है. वर्मा ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को 8 मई को दी गई सिफारिश को रद्द करने की मांग की है. जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर SC सुनवाई को तैयार हो गया है. CJI गवई ने कहा है कि वो स्पेशल बेंच का गठन करेंगे. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा ने तीन मई 2025 की इन-हाउस समिति की अंतिम रिपोर्ट और उसके आधार पर की गई सभी कार्यवाही रद्द करने की मांग की है. इस रिपोर्ट को आधार बनाकर उन्होंने कई अन्य बातों पर अदालत का ध्यान दिलाया है.
याचिका में क्या कहा
1. इन-हाउस प्रक्रिया की शुरुआत अनुचित और अमान्य थी, क्योंकि यह याचिकाकर्ता के विरुद्ध किसी औपचारिक शिकायत के अभाव में शुरू की गई थी। यह कार्यवाही केवल 21.03.2025 को उठाए गए अनुमानात्मक प्रश्नों से शुरू हुई थी, जो इस बिना प्रमाण के आरोप पर आधारित थी कि याचिकाकर्ता के पास नकद (जिसकी मात्रा नहीं बताई गई) था और उसके पाए जाने के बाद उसने इसके अवशेष हटवा दिए। इन-हाउस प्रक्रिया इस प्रकार की परिस्थितियों के लिए बनाई ही नहीं गई है, और न ही वह ऐसी स्थितियों में लागू की जा सकती है.
2. 22.03.2025 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रेस रिलीज के माध्यम से इन अप्रमाणित आरोपों को सार्वजनिक करने से याचिकाकर्ता के खिलाफ मीडिया ट्रायल चलने लगा. इससे उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा और न्यायिक अधिकारी के रूप में करियर को अपूरणीय क्षति पहुंची है. यह प्रकटीकरण प्रथमदृष्टया अत्यधिक था और सहारा इंडिया रियल एस्टेट बनाम SEBI (2012) 10 SCC 603 में संविधान पीठ द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन करता है.
3. समिति की कार्यवाही ने प्राकृतिक न्याय अनुच्छेद 14 के तहत उचित प्रक्रिया और निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन किया. समिति ने न तो याचिकाकर्ता को अपनी प्रक्रिया से अवगत कराया, न ही साक्ष्य एकत्र करने पर उनके सुझाव मांगे, गवाहों की उपस्थिति में पूछताछ नहीं की गई और वीडियो रिकॉर्डिंग के बावजूद केवल पुनर्लेखित बयान दिए. केवल "अभियोग लगाने वाले" साक्ष्य ही साझा किए गए, जबकि सीसीटीवी फुटेज जैसे महत्वपूर्ण साक्ष्य की न तो जांच की गई और न ही एकत्र किया गया. याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया. कोई स्पष्ट या संभावित मामला प्रस्तुत नहीं किया गया. बिना किसी सूचना के याचिकाकर्ता पर दोष सिद्ध करने का बोझ आरोपित कर दिया गया.
4. समिति की तथ्यों की जांच के उद्देश्य को अनुचित रूप से सीमित कर दिया गया, और इसे केवल दो गैर-विवादित बिंदुओं तक सीमित कर दिया गया. (1) क्या आउटहाउस में कैश था (2) क्या आउटहाउस आधिकारिक परिसर का हिस्सा था. ये दोनों तथ्य विवादित नहीं थे, क्योंकि याचिकाकर्ता ने नकद की उपस्थिति से इनकार नहीं किया और आउटहाउस की स्थिति दृश्य रूप से स्पष्ट थी.
5. समिति का वास्तविक उद्देश्य था आरोपों की सत्यता की जांच यानी अनुमानित तथ्यों की पुष्टि या खंडन करने हेतु जांच की जानी थी. इन अहम सवालों का जवाब जानना आवश्यक था:
-नकद कब, कैसे और किसके द्वारा आउटहाउस में रखा गया?
-कितनी मात्रा में नकद रखा गया था?
-क्या वह नकदी/मुद्रा असली थी या नकली?
-आग लगने का कारण क्या था?
-क्या 15 मार्च 2025 को नकदी के "अवशेषों की निकासी" में याचिकाकर्ता की कोई भूमिका थी?
कैश किसका और कितनी मात्रा में था, आग कैसे लगी
इन प्रश्नों के उत्तर इस मामले की सच्चाई की कुंजी हैं, चाहे वे याचिकाकर्ता को दोषी सिद्ध करें या निर्दोष. केवल नकद की बरामदगी कोई निर्णायक समाधान नहीं देती. यह आवश्यक है कि यह स्पष्ट किया जाए कि नकद किसका था और कितनी मात्रा में था. इसके अलावा आग का कारण-चाहे जानबूझकर लगाई गई हो या दुर्घटनावश और याचिकाकर्ता की कथित भूमिका, आरोपों की गंभीरता और संभावित साजिश दोनों को प्रभावित करते हैं. 3 मई की अंतिम रिपोर्ट इन प्रमुख सवालों का कोई उत्तर नहीं देती.
6. समिति के निष्कर्ष और टिप्पणियां अनुचित अनुमान पर आधारित हैं, जिनका कोई ठोस साक्ष्य नहीं है और इसलिए अस्वीकार्य हैं.
7. समिति की अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद, मुख्य न्यायाधीश ने उसी दिन इसके निष्कर्षों और सिफारिशों को स्वीकार कर लिया. इसके तुरंत बाद याचिकाकर्ता को यह सलाह दी गई कि वे या तो इस्तीफा दें या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लें और यदि ऐसा नहीं करते हैं, तो उनके खिलाफ 'पद से हटाने' की कार्यवाही शुरू की जाएगी. याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर भी नहीं दिया गया, जो कि इस प्रकार के मामलों में स्थापित परंपरा के विपरीत है.
8. समिति की रिपोर्ट की सामग्री का मीडिया में लीक होना और फिर उसमें की गई विकृत रिपोर्टिंग को नजरअंदाज कर दिया गया, जिससे न केवल इन-हाउस प्रक्रिया की गोपनीयता भंग हुई, बल्कि याचिकाकर्ता की प्रतिष्ठा और गरिमा को और अधिक नुकसान पहुंचा.
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं