कोरोना के इलाज के लिए इस्तेमाल की जा रही दवाएं रिमडिसीविर और फेवीपिराविर के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है. याचिकाकर्ता एडवोकेट एमएल शर्मा ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि ये दोनों दवाई बिना समुचित मंजूरी के ही इस्तेमाल की जा रही हैं. इस याचिका पर CJI ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि हमे अफसोस है कि इसमें नोटिफ भी कैसे काट दिया गया? इस याचिका को खारिज किया जाता है. CJI की इस टिप्पणी पर एमएल शर्मा ने कहा कि फिर तो कुछ भी कहने को नहीं रह गया है.
गौरतलब है कि अक्टूबर 2020 में तत्कालीन सीजेआई एसए बोबडे ने याचिका पर नोटिस जारी किया था. सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने सोमवार को याचिका खारिज करते हुए कहा कि इस मामले में नोटिस कैसे जारी किया गया. एमएल शर्मा ने बिना वैध लाइसेंस के कथित तौर पर COVID-19 रोगियों के इलाज के लिए इन दो दवाओं के निर्माण और बिक्री के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा दस भारतीय दवा कंपनियों के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग की थी. शर्मा ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के प्रावधानों के अलावा धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के अपराधों के लिए भारतीय कंपनियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की भी मांग की थी.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल इस याचिका में कहा गया है कि इन दवाओं को आज तक किसी भी देश द्वारा COVID-19 के उपचार के रूप में प्रमाणित नहीं किया गया है. वे परीक्षण के अधीन हैं और भारत सहित किसी भी देश ने अपने देश में उन्हें बनाने और बेचने के लिए लाइसेंस जारी नहीं किया है. याचिका में आगे कहा गया था कि 300 से अधिक डॉक्टरों की मौत उन अस्पतालों में हुई है जहां इन दो दवाओं की आपूर्ति की गई थी. और यह मौत के डर से जनता का शोषण करने जैसा है.
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