"भारतीयों का DNA एक": RSS प्रमुख मोहन भागवत ने की विभिन्न जातियों, संप्रदायों के बीच एकता की वकालत

RSS प्रमुख मोहन भागवत ने बी आर अंबेडकर की 132वीं जयंती के अवसर पर लोगों से उनके विचारों पर चलने का आग्रह किया. साथ ही कहा कि अंबेडकर ने इस बात पर जोर दिया था कि मतभेदों के बावजूद भारतीयों को देश के लिए एकजुट रहने की जरूरत है.

भारत में व्याप्त सभी विविधताओं को स्वीकार और उनका सम्मान करना होगा- मोहन भागवत

नई दिल्‍ली:

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर को याद करते हुए शुक्रवार को कहा कि भारतीयों को देश को आगे ले जाने के लिए जाति विभाजन के 'दुष्चक्र' से बाहर आने की जरूरत है. मोहन भागवत ने देश में विभिन्न जातियों और संप्रदायों के बीच एकता का भी संदेश दिया. भागवत ने यहां जीएमडीसी मैदान में 'समाज शक्ति संगम' नामक एक कार्यक्रम में लगभग 10,000 आरएसएस कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि देश में विविध संस्कृतियां होने के बावजूद सभी भारतीयों का ‘डीएनए' एक ही है.

मोहन भागवत ने अंबेडकर की 132वीं जयंती के अवसर पर कहा, "अंबेडकर ने कहा था कि भारत विदेशियों से इसलिए नहीं हारा, क्योंकि वे मजबूत थे, बल्कि हमने उन्हें अपने देश को चांदी की थाल में सजा कर पेश किया, क्योंकि हम अपने मतभेदों के कारण आपस में लड़ते थे. अन्यथा हमारी आजादी को कोई छीनने में सक्षम नहीं था."

भागवत ने अंबेडकर के भाषणों का उल्लेख करते हुए कहा कि अंबेडकर ने इस बात पर जोर दिया था कि मतभेदों के बावजूद भारतीयों को देश के लिए एकजुट रहने की जरूरत है. आरएसएस प्रमुख ने कहा, "अंबेडकर ने यह भी कहा था कि एक न्यायपूर्ण और समान समाज बनाए बिना, भारत राजनीतिक और आर्थिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर सकता है. इसे हासिल करने के लिए हमें अपने समाज से मतभेदों को खत्म करने की जरूरत है. हम अतीत में एक संयुक्त समाज थे. बाद में हमने इन जातियों और वर्गों का निर्माण किया, जिससे हमारे बीच मतभेद पैदा हुए."

उन्होंने कहा, "अब मैं कह रहा हूं कि विदेशी ताकतों ने उस स्थिति का फायदा उठाया और इस दरार को और चौड़ा किया. हमें इस दुष्चक्र से बाहर आना होगा और एकजुट होना होगा. नहीं तो हम देश को आगे ले जाने के अपने सपनों को कैसे साकार करेंगे."

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भागवत ने कहा, "भारत में व्याप्त सभी विविधताओं को स्वीकार और उनका सम्मान करते हुए हमें यह ध्यान रखना होगा कि हम पहले भारत के हैं. भारतीय संस्कृति, कई लोग इसे हिंदू संस्कृति या सनातन संस्कृति कहते हैं. इसके कई नाम हैं. अलग-अलग भाषाएं, रीति-रिवाज या क्षेत्रीय पहचान होने के बावजूद हमारा डीएनए आखिरकार एक ही है."



(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)