रोटोमैक पेन कंपनी के प्रवर्तक विक्रम कोठारी.
नई दिल्ली:
हीरा व्यवसायी नीरव मोदी के बाद अब एक और कारोबारी विक्रम कोठारी विभिन्न बैंकों को 800 करोड़ रुपये का चूना लगाकर कथित तौर पर विदेश भाग गए हैं. कोठारी रोटोमैक पेन कंपनी के प्रवर्तक हैं. सूत्रों के मुताबिक कोठारी पर इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ इंडिया और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया समेत कई सार्वजनिक बैंकों को नुकसान पहुंचाने का आरोप है.
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कानपुर के कारोबारी कोठारी ने पांच सार्वजनिक बैंकों से 800 करोड़ रुपये से अधिक का ऋण लिया था. सूत्रों के अनुसार कोठारी को ऋण देने में इलाहाबाद बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन ओवरसीज बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने नियमों के पालन में ढिलाई की. स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कंपनी के प्रवर्तक ने उनके विदेश भाग जाने की आशंकाओं को आधारहीन करार दिया है.
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कोठारी ने कहा, 'मैं कानपुर का वासी हूं और मैं शहर में ही रहूंगा. हालांकि कारोबारी काम की वजह से मुझे विदेश यात्राएं भी करनी होती हैं.' कोठारी ने यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से 485 करोड़ रुपये और इलाहाबाद बैंक से 352 करोड़ रुपये का ऋण लिया था. उन्होंने ऋण लेने के साल बाद कथित तौर पर ना तो मूलधन चुकाया और ना ही उस पर बना ब्याज.
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पिछले साल ऋण देने वाले बैंकों में शामिल बैंक ऑफ बड़ौदा ने रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड को जानबूझकर ऋणचूक करने वाला (विलफुल डिफॉल्टर) घोषित किया था. इस सूची से नाम हटवाने के लिए कंपनी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की शरण ली थी. जहां मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीबी भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने कंपनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे सूची से बाहर करने का आदेश दिया था.
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न्यायालय ने कहा था कि ऋण चूक की तारीख के बाद कंपनी ने बैंक को 300 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति की पेशकश की थी, बैंक को गलत तरीके से सूची में डाला गया है. बाद में रिजर्व बैंक द्वारा तय प्रक्रिया के अनुसार एक प्राधिकृत समिति ने 27 फरवरी 2017 को पारित आदेश में कंपनी को जानबूझ कर ऋण नहीं चुकाने वाला घोषित कर दिया. यह जानकारी ऐसे समय सामने आई है जब महज एक सप्ताह पहले पंजाब नेशनल बैंक में करीब 11,400 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी खुलासा हुआ है.
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पिछले साल ऋण देने वाले बैंकों में शामिल बैंक ऑफ बड़ौदा ने रोटोमैक ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड को जानबूझकर ऋणचूक करने वाला (विलफुल डिफॉल्टर) घोषित किया था. इस सूची से नाम हटवाने के लिए कंपनी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की शरण ली थी. जहां मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीबी भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने कंपनी की याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे सूची से बाहर करने का आदेश दिया था.
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न्यायालय ने कहा था कि ऋण चूक की तारीख के बाद कंपनी ने बैंक को 300 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति की पेशकश की थी, बैंक को गलत तरीके से सूची में डाला गया है. बाद में रिजर्व बैंक द्वारा तय प्रक्रिया के अनुसार एक प्राधिकृत समिति ने 27 फरवरी 2017 को पारित आदेश में कंपनी को जानबूझ कर ऋण नहीं चुकाने वाला घोषित कर दिया. यह जानकारी ऐसे समय सामने आई है जब महज एक सप्ताह पहले पंजाब नेशनल बैंक में करीब 11,400 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी खुलासा हुआ है.
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